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राजयोग अर्थात इस ब्रह्मांड के राजा से योग

"राजयोग अर्थात इस ब्रह्मांड के राजा से योग"

✪ ईश्वर अर्थात निराकार ज्योति बिन्दु शिव ही इस ब्रह्मांड का राजा है,उसकी प्रचंड पवित्र उर्जा से ही यह धरा चलती है यदि वह न हो तो समय का चक्र भी नहीं होता!

✪ यदि दुख है तो सुख भी आना ही है यह बात निश्चित है अर्थात संसार सुख - दुख के खेल का चक्र है, ईश्वर को भूल जाने से दुख और वह जब अपनी स्मृति दिलाए तो हम मनुष्य आत्माएं पुनः सुख की ओर मुड़ने लगती हैं, परंतु यदि भगवान न हो तो सुख के बाद दुख और फिर सब समाप्त, इसलिए भगवान हर निराशा के लिए आशा है, हर हार के लिए जीत है, हर विनाश के लिए पुनर्स्थापना है, हर असम्भव के लिए सम्भव है, हर अवरोध के लिए गति है!

✪ इस संसार को यदि ध्यान से देखा जाए तो सब उर्जा का खेल है, जो पवित्र से अपवित्र और पुनः पवित्र में परवर्तित होती रहती है परंतु इस परिवर्तन का आधार ईश्वर है, हम आत्माएं केवल पवित्र से अपवित्र बन सकती हैं, अपवित्र से पवित्र तब तक नहीं हो सकती जब तक कि ईश्वर बीच में न आए इसिलिए उसे पतित पावन कहा जाता है, सोचो यदि ईश्वर न हो तो अपवित्रता हमारा इतना दम घोट दे कि एक एक क्षण मुश्किल हो  जाए बिताना, इसलिए कोटि कोटि धन्यवाद है उस परम पवित्र सर्वोच्च सत्ता को कि वह है और हम आत्मायों कि पुकार सुनकर वह धरती पर अवतरित हो जाता है हमें बचाने!

✪ आत्मा पवित्रता के बिना नहीं रह सकती परंतु अज्ञान वश वह अपवित्र हो जाती है जैसे जैसे वह अपवित्र होती है वैसे ही वह ढूढने लगती है पवित्रता के परम स्रोत को और संसार में भक्ति आरम्भ होती है, पवित्रता का वह परम स्रोत परम पिता परमात्मा के बिना और कोई नहीं इस बात की धुँधली सी याद लिये वह शिव लिंग की पूजा आरम्भ करती है।

✪ परंतु जब शिवलिंग का वास्तविक अर्थ भी तामसिक हो जाता है तो देवी देवतायों, ऋषी मुनियों की पूजा से मन बहलाया पर फिर भी नीचे ही गिरे,जब सब स्रोत सुख और शान्ति के समाप्त हो गए तो पिता को आना ही पड़ा अपने बच्चों को बचाने, तो सोचिए यदि वो न होता तो हमारा क्या होता इसलिए धन्यवाद है उस प्रेम के सागर,दया के सागर,को जिसने हम सबकी डूबती नाव को सहारा दिया,कितना भी गुणगान करें उसकी इस कृपा का कम है! 

✪ आपको अनुभव चाहे हो या न हो परंतु स्वयं के व आध्यात्मिक जीवन के लम्बे काल के अन्य महारथियों के अनुभव से यह निश्च्चित हुआ है कि हम अपवित्रता के कारण ही दुखी हैं।

✪ काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इर्ष्या, घृणा, झूठ, चुगली, आलस्य आदि किसी भी विकार की फीलिंग आत्मा को अपवित्र बनाती है, और अपवित्र आत्मा ही शरीर से चिपक जाती है और अनुभव करती है कि मैं शरीर हूँ इसके इलावा मेरा कोई अस्तित्व नहीं, शरीर को बचाने व उसे सवारने में ही उसे आनन्द अनुभव होता है!

✪ और धीरे धीरे यह संसार शरीर के ही इर्द गिर्द घूमना शुरु कर देता है, हर चीज़ शरीर के लिए कमाना संसार का नियम बन जाता है, ज़ाहिर है शरीर पांच तत्वों का है तो इसकी तृप्ति के लिए भी पांच तत्व ही चाहिए इसलिए संसार के सारे भौतिक संसाधन जिनको कभी हम देखते भी नहीं थे वे मूल्यवान अनुभव होना शुरु हो जाते हैं और उसी बल पर पूरा संसार देशों और देश राज्यों में बंट जाते हैं, मनुष्य अमीर व गरीब में और मन ऊंच - नीच में बँट जाता है, यह बंटवारा संसार का आम नियम बन जाता है, परंतु इन नियमों में दम घुटता है संसार की कुछ  गिनी चुनी आत्मयोँ का और वे ईश्वर की शरण को पाने का प्रयास करती हैं,उन्हीं की पुकार सुन कर प्यारा पिता धरा पर अवतरित होता है, क्योंकि कहीं न कहीं उनके मन में यह आश थी कि कोई तो परम शक्ति है जो झूठ से छुड़ा कर सत्य की ओर ले जाएगी! शुक्र है कि वो है नहीं तो जीवन की  नीरसता नहीं मिटती! तो गुणों के भंडार, शक्तियों के सागर से जुड़ने का नाम है राजयोग!

✪ राजयोग कोई मुश्किल प्रक्रिया नहीं बहुत ही सरल है,बस अपने आप को आत्मा समझो और उसे परम आत्मा! दोनो का स्वरूप एक जैसा है, बिन्दु रूप दोनों के अंग एक से हैं, मन और बुद्धि!

✪ मन से संकल्प करना और बुद्धि से उस संकल्प क चित्र बनाना, यही एकाग्रता है और ज्ञान के संकल्पों को बुद्धि से देखना ही योग है!

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About Me - BK Ravi Kumar

I am an MCA, IT Professional & Blogger, Spiritualist, A Brahma Kumar at Brahmakumaris. I have been blogging here.