Brahma Kumaris Avyakt Murli Manthan 16-02-86 Revised Dated 21-06-20
गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प
Baba Kehte mithe mithe parmatma ke ati bhagyawan bachche, multi multi multi millionaire bacche, golden jubilee me kya karna hai, golden jubilee me baccho ke har sankalp golden ho. Golden jubilee mana rahe hai golden dunia me jane ke liye. Isliye ham bacche kahte hai golden morning, golden evening and golden night. Golden jubilee ke baad kya manana hai, diamond jubilee, yaha hi manana hai ki apne rajya me manana hain. Baba golden jubilee ki bahut bahut badhaiyan de rahe hai aur baccho par sneh ke pusp ki varsha kar rahe hain. Sewadhariyon ka utsah badha rahe hain. Sabhi sewadhari dance kar rahe hai, dance karne se thakawat dur ho jati hain.
नम्बरवार भाग्यवान होते हुए भी दुनिया के आजकल के श्रेष्ठ भाग्य के आगे लास्ट नम्बर भाग्यवान बच्चा भी अति श्रेष्ठ है इसलिए बेहद के बापदादा को सभी बच्चों के भाग्य पर नाज़ है।
Baba ek ek baccho ko bhagyawan dekh rahe hai. Last number wala baccha bhi bhagyawan hai.
बापदादा भी सदा वाह मेंरे भाग्यवान बच्चे, वाह एक लगन में मगन रहने वाले बच्चे- यही गीत गाते रहते हैं।
बापदादा के पास आपकी साकार दुनिया से न्यारी शक्तिशाली टी.वी. है।
Baba kahte hai bap-dada ke paas aisi tv hai jo bahut shaktishali hain, jisme baba tan ke sath sath sabhi baccho ke man ki gatividhiyon ko bhi jan sakte hain. Baba hamare brahman vatso ke har sankalp ko golden banate hain.
Phir baba ne 10 points bataye ki kaise ham 108 ke vaijayanti mala me aa sakte hain:
108 रत्नों की वैजयन्ती माला में आने के लिए संस्कार मिलन की रास करो
1) कोई भी माला जब बनाते हैं तो एक दाना दूसरे दाने से मिला हुआ रहता है। वैजयन्ती माला में भी चाहे कोई 108 वां नम्बर हो लेकिन दाना दाने से मिला होता है। तो सभी को यह महसूसता आये कि यह तो माला के समान पिरोये हुए मणके हैं। वैरायटी संस्कार होते भी समीप दिखाई दें।
2) एक दो के संस्कारों को जान करके, एक दो के स्नेह में एक दो से मिलजुल कर रहना - यह माला के दानों की विशेषता है। लेकिन एक दो के स्नेही तब बनेंगे जब संस्कार और संकल्पों को एक दो से मिलायेंगे, इसके लिए सरलता का गुण धारण करो।
3) अभी तक स्तुति के आधार पर स्थिति है, जो कर्म करते हो उसके फल की इच्छा रहती है, स्तुति नहीं मिलती तो स्थिति नहीं रहती। निंदा होती है तो धनी को भूल निधनके बन जाते हो। फिर संस्कारों का टकराव शुरू हो जाता है। यही दो बातें माला से बाहर कर देती हैं। इसलिए स्तुति और निंदा दोनों में समान स्थिति बनाओ।
4) संस्कार मिलाने के लिए जहाँ मालिक हो चलना है वहाँ बालक नहीं बनना है और जहाँ बालक बनना है वहाँ मालिक नहीं बनना। बालकपन अर्थात् निरसंकल्प। जो भी आज्ञा मिले, डायरेक्शन मिले उस पर चलना। मालिक बन अपनी राय दो फिर बालक बन जाओ तो टकराव से बच जायेंगे।
5) सर्विस में सफलता का आधार है नम्रता। जितनी नम्रता उतनी सफलता। नम्रता आती है निमित्त समझने से। नम्रता के गुण से सब नमन करते हैं। जो खुद झुकता है उसके आगे सभी झुकते हैं। इसलिए शरीर को निमित्त मात्र समझकर चलो और सर्विस में अपने को निमित्त समझकर चलो तब नम्रता आयेगी। जहाँ नम्रता है वहाँ टकराव नहीं हो सकता। स्वत: संस्कार मिलन हो जायेगा।
6) मन में जो भी संकल्प उत्पन्न होते हैं उसमें सच्चाई और सफाई चाहिए। अन्दर कोई भी विकर्म का किचरा नहीं हो। कोई भी भाव-स्वभाव, पुराने संस्कारों का भी किचरा नहीं हो। जो ऐसी सफाई वाला होगा वो सच्चा होगा और जो सच्चा होगा वह सबका प्रिय होगा। सबके प्रिय बन जाओ तो संस्कार मिलन की रास हो जायेगी। सच्चे पर साहब राज़ी होता है।
7) संस्कार मिलन की रास करने के लिए अपनी नेचर को इज़ी और एक्टिव बनाओ। इज़ी अर्थात् अपने पुरुषार्थ में, संस्कारों में भारीपन न हो। इज़ी है तो एक्टिव है। इज़ी रहने से सब कार्य भी इज़ी, पुरुषार्थ भी इज़ी हो जाता है। खुद इज़ी नहीं बनते तो मुश्किलातों का सामना करना पड़ता है। फिर अपने संस्कार, अपनी कमजोरियां मुश्किल के रूप में देखने में आती हैं।
8) संस्कार मिलन की रास तब हो जब हर एक की विशेषता देखो और स्वयं को विशेष आत्मा समझ विशेषताओं से सम्पन्न बनो। यह मेरे संस्कार हैं, यह मेरे संस्कार शब्द भी मिट जायें। इतने तक मिटना है जो कि नेचर भी बदल जाये। जब हरेक की नेचर बदले तब आप लोगों के अव्यक्ति फीचर्स बनेंगे।
9) बापदादा बच्चों को विश्व महाराजन बनाने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। विश्व महाराजन बनने वाले सर्व के स्नेही होंगे। जैसे बाप सर्व के स्नेही और सर्व उनके स्नेही हैं, ऐसे एक-एक के अन्दर से उनके प्रति स्नेह के फूल बरसेंगे। जब स्नेह के फूल यहाँ बरसेंगे तब जड़ चित्रों पर भी फूल बरसेंगे। तो लक्ष्य रखो कि सर्व के स्नेह के पुष्प पात्र बनें। स्नेह मिलेगा सहयोग देने से।
10) सदैव यही लक्ष्य रखो कि हमारी चलन द्वारा कोई को भी दु:ख न हो। मेरी चलन, संकल्प, वाणी और हर कर्म सुखदाई हो। यह है ब्राह्मण कुल की रीति, यही रीति अपना लो तो संस्कार मिलन की रास हो जायेगी।
वरदान:-
ईश्वरीय रॉयल्टी के संस्कार द्वारा हर एक की विशेषताओं का वर्णन करने वाले पुण्य आत्मा भव
सदा स्वयं को विशेष आत्मा समझ हर संकल्प वा कर्म करना और हर एक में विशेषता देखना, वर्णन करना, सर्व के प्रति विशेष बनाने की शुभ कल्याण की कामना रखना-यही ईश्वरीय रॉयल्टी है। रॉयल आत्मायें दूसरे द्वारा छोड़ने वाली चीज़ को स्वयं में धारण नहीं कर सकती इसलिए सदा अटेन्शन रहे कि किसी की कमजोरी वा अवगुण को देखने का नेत्र सदा बंद हो। एक दो के गुण गान करो, स्नेह, सहयोग के पुष्पों की लेन-देन करो-तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
स्लोगन:-
वरदान की शक्ति परिस्थिति रूपी आग को भी पानी बना देती है।
सूचनाः- आज अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस तीसरा रविवार है, सायं 6.30 से 7.30 बजे तक सभी भाई बहिनें संगठित रूप में एकत्रित हो योग अभ्यास में अनुभव करें कि मैं भ्रकुटी आसन पर विराजमान परमात्म शक्तियों से सम्पन्न सर्वश्रेष्ठ राजयोगी आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत, विकर्माजीत हूँ। सारा दिन इसी स्वमान में रहें कि सारे कल्प में हीरो पार्ट बजाने वाली मैं सर्वश्रेष्ठ महान आत्मा हूँ।
गोल्डन जुबली का गोल्डन संकल्प
Baba Kehte mithe mithe parmatma ke ati bhagyawan bachche, multi multi multi millionaire bacche, golden jubilee me kya karna hai, golden jubilee me baccho ke har sankalp golden ho. Golden jubilee mana rahe hai golden dunia me jane ke liye. Isliye ham bacche kahte hai golden morning, golden evening and golden night. Golden jubilee ke baad kya manana hai, diamond jubilee, yaha hi manana hai ki apne rajya me manana hain. Baba golden jubilee ki bahut bahut badhaiyan de rahe hai aur baccho par sneh ke pusp ki varsha kar rahe hain. Sewadhariyon ka utsah badha rahe hain. Sabhi sewadhari dance kar rahe hai, dance karne se thakawat dur ho jati hain.
नम्बरवार भाग्यवान होते हुए भी दुनिया के आजकल के श्रेष्ठ भाग्य के आगे लास्ट नम्बर भाग्यवान बच्चा भी अति श्रेष्ठ है इसलिए बेहद के बापदादा को सभी बच्चों के भाग्य पर नाज़ है।
Baba ek ek baccho ko bhagyawan dekh rahe hai. Last number wala baccha bhi bhagyawan hai.
बापदादा भी सदा वाह मेंरे भाग्यवान बच्चे, वाह एक लगन में मगन रहने वाले बच्चे- यही गीत गाते रहते हैं।
बापदादा के पास आपकी साकार दुनिया से न्यारी शक्तिशाली टी.वी. है।
Baba kahte hai bap-dada ke paas aisi tv hai jo bahut shaktishali hain, jisme baba tan ke sath sath sabhi baccho ke man ki gatividhiyon ko bhi jan sakte hain. Baba hamare brahman vatso ke har sankalp ko golden banate hain.
Phir baba ne 10 points bataye ki kaise ham 108 ke vaijayanti mala me aa sakte hain:
108 रत्नों की वैजयन्ती माला में आने के लिए संस्कार मिलन की रास करो
1) कोई भी माला जब बनाते हैं तो एक दाना दूसरे दाने से मिला हुआ रहता है। वैजयन्ती माला में भी चाहे कोई 108 वां नम्बर हो लेकिन दाना दाने से मिला होता है। तो सभी को यह महसूसता आये कि यह तो माला के समान पिरोये हुए मणके हैं। वैरायटी संस्कार होते भी समीप दिखाई दें।
2) एक दो के संस्कारों को जान करके, एक दो के स्नेह में एक दो से मिलजुल कर रहना - यह माला के दानों की विशेषता है। लेकिन एक दो के स्नेही तब बनेंगे जब संस्कार और संकल्पों को एक दो से मिलायेंगे, इसके लिए सरलता का गुण धारण करो।
3) अभी तक स्तुति के आधार पर स्थिति है, जो कर्म करते हो उसके फल की इच्छा रहती है, स्तुति नहीं मिलती तो स्थिति नहीं रहती। निंदा होती है तो धनी को भूल निधनके बन जाते हो। फिर संस्कारों का टकराव शुरू हो जाता है। यही दो बातें माला से बाहर कर देती हैं। इसलिए स्तुति और निंदा दोनों में समान स्थिति बनाओ।
4) संस्कार मिलाने के लिए जहाँ मालिक हो चलना है वहाँ बालक नहीं बनना है और जहाँ बालक बनना है वहाँ मालिक नहीं बनना। बालकपन अर्थात् निरसंकल्प। जो भी आज्ञा मिले, डायरेक्शन मिले उस पर चलना। मालिक बन अपनी राय दो फिर बालक बन जाओ तो टकराव से बच जायेंगे।
5) सर्विस में सफलता का आधार है नम्रता। जितनी नम्रता उतनी सफलता। नम्रता आती है निमित्त समझने से। नम्रता के गुण से सब नमन करते हैं। जो खुद झुकता है उसके आगे सभी झुकते हैं। इसलिए शरीर को निमित्त मात्र समझकर चलो और सर्विस में अपने को निमित्त समझकर चलो तब नम्रता आयेगी। जहाँ नम्रता है वहाँ टकराव नहीं हो सकता। स्वत: संस्कार मिलन हो जायेगा।
6) मन में जो भी संकल्प उत्पन्न होते हैं उसमें सच्चाई और सफाई चाहिए। अन्दर कोई भी विकर्म का किचरा नहीं हो। कोई भी भाव-स्वभाव, पुराने संस्कारों का भी किचरा नहीं हो। जो ऐसी सफाई वाला होगा वो सच्चा होगा और जो सच्चा होगा वह सबका प्रिय होगा। सबके प्रिय बन जाओ तो संस्कार मिलन की रास हो जायेगी। सच्चे पर साहब राज़ी होता है।
7) संस्कार मिलन की रास करने के लिए अपनी नेचर को इज़ी और एक्टिव बनाओ। इज़ी अर्थात् अपने पुरुषार्थ में, संस्कारों में भारीपन न हो। इज़ी है तो एक्टिव है। इज़ी रहने से सब कार्य भी इज़ी, पुरुषार्थ भी इज़ी हो जाता है। खुद इज़ी नहीं बनते तो मुश्किलातों का सामना करना पड़ता है। फिर अपने संस्कार, अपनी कमजोरियां मुश्किल के रूप में देखने में आती हैं।
8) संस्कार मिलन की रास तब हो जब हर एक की विशेषता देखो और स्वयं को विशेष आत्मा समझ विशेषताओं से सम्पन्न बनो। यह मेरे संस्कार हैं, यह मेरे संस्कार शब्द भी मिट जायें। इतने तक मिटना है जो कि नेचर भी बदल जाये। जब हरेक की नेचर बदले तब आप लोगों के अव्यक्ति फीचर्स बनेंगे।
9) बापदादा बच्चों को विश्व महाराजन बनाने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। विश्व महाराजन बनने वाले सर्व के स्नेही होंगे। जैसे बाप सर्व के स्नेही और सर्व उनके स्नेही हैं, ऐसे एक-एक के अन्दर से उनके प्रति स्नेह के फूल बरसेंगे। जब स्नेह के फूल यहाँ बरसेंगे तब जड़ चित्रों पर भी फूल बरसेंगे। तो लक्ष्य रखो कि सर्व के स्नेह के पुष्प पात्र बनें। स्नेह मिलेगा सहयोग देने से।
10) सदैव यही लक्ष्य रखो कि हमारी चलन द्वारा कोई को भी दु:ख न हो। मेरी चलन, संकल्प, वाणी और हर कर्म सुखदाई हो। यह है ब्राह्मण कुल की रीति, यही रीति अपना लो तो संस्कार मिलन की रास हो जायेगी।
वरदान:-
ईश्वरीय रॉयल्टी के संस्कार द्वारा हर एक की विशेषताओं का वर्णन करने वाले पुण्य आत्मा भव
सदा स्वयं को विशेष आत्मा समझ हर संकल्प वा कर्म करना और हर एक में विशेषता देखना, वर्णन करना, सर्व के प्रति विशेष बनाने की शुभ कल्याण की कामना रखना-यही ईश्वरीय रॉयल्टी है। रॉयल आत्मायें दूसरे द्वारा छोड़ने वाली चीज़ को स्वयं में धारण नहीं कर सकती इसलिए सदा अटेन्शन रहे कि किसी की कमजोरी वा अवगुण को देखने का नेत्र सदा बंद हो। एक दो के गुण गान करो, स्नेह, सहयोग के पुष्पों की लेन-देन करो-तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
स्लोगन:-
वरदान की शक्ति परिस्थिति रूपी आग को भी पानी बना देती है।
सूचनाः- आज अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस तीसरा रविवार है, सायं 6.30 से 7.30 बजे तक सभी भाई बहिनें संगठित रूप में एकत्रित हो योग अभ्यास में अनुभव करें कि मैं भ्रकुटी आसन पर विराजमान परमात्म शक्तियों से सम्पन्न सर्वश्रेष्ठ राजयोगी आत्मा कर्मेन्द्रिय जीत, विकर्माजीत हूँ। सारा दिन इसी स्वमान में रहें कि सारे कल्प में हीरो पार्ट बजाने वाली मैं सर्वश्रेष्ठ महान आत्मा हूँ।
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