प्यारे बापदादा की 108 श्रीमत
2. देह सहित देह के सर्व सम्बन्धों को भूल एक बाप को ही याद करना है ।
3. ब्राह्मण कुल की मर्यादाओं का पालन करना है ।
4. कभी भी संगदोष में नहीं आना है ।
5. सदा श्रेष्ठ संग, ईश्वरीय संग में रहना है ।
6. सब को सुख ही देना है ।
7. किसी को भी मन्सा, वाचा, कर्मणा से दुःख नहीं देना है ।
8. सदा शान्तचित, हर्षितचित, गंभीर और एकान्तप्रिय बनकर रहना है ।
9. सबको बाप का परिचय देना है, सुख, शान्ति का रास्ता बताना है ।
10. किसी भी देहधारी से दिल नहीं लगाना है ।
11. सभी को आत्मिक दृष्टि से देखने का अभ्यास करना है ।
12. अपनी चलन देवताओं जैसी बड़ी रॉयल रखनी है ।
13. कभी भी मुरली मिस नहीं करनी है ।
14. कभी भी रूठना नहीं है ।
15. कभी भी मूड ऑफ नहीं करना है ।
16. सदा रूहानी खुशी में रहना है ।
17. सबको सुखदायी वरदानी बोल से उमंग-उत्साह में लाकर आगें बढाना है ।
18. सदा ईश्वरीय याद में रह रूहानी नशे में रहना है ।
19. विश्वकल्याण की सेवा में तत्पर रहना है ।
20. अमृतवेले उठ विचार सागर मंथन का विश्व सेवा के नए नए प्लान बनाने हैं ।
21. अमृतवेले उठ बाप को बडे, प्यार से, दिल से याद करना है ।
22. किसी भी आत्मा पर क्रोध नहीं करना हे ।
23. बहुत-बहुत मीठा बन सबको मीठा बनाने की सेवा करनी है ।
24. कभी भी विकारों में नहीं जाना है ।
25. आत्म अभिमानी बन बाप को याद करना है ।
26. कोई भी विकर्म नहीं करना है ।
27. दैवी गुण धारण करने हैं ।
28. आसुरी अवगुणों को निकाल देना है ।
29. स्वदर्शनचक्र फिराते रहना है ।
30. आपस में ज्ञान की ही लेन देन करनी है ।
31. आपस में कभी भी लूनपानी नहीं होना है ।
32. माया से कभी भी हार नहीं खानी है ।
33. इस मायावी संसार के आकर्षण में नहीं आना है ।
34. लोभवृत्ति नहीं रखनी है ।
35. चोरी नहीं करनी है ।
36. झूठ नहीं बोलना है ।
37. बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है ।
38. बाप के भण्डारे से जो भी मिले उसमें ही सदा सन्तुष्ट रहना है ।
39. सचखण्ड की स्थापना के कार्य में बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है ।
40. संगठन को मजबूत बनाने के लिए सदा एकमत होकर रहना है ।
41. सदा ज्ञान का सिमरन करते रहना है ।
42. व्यर्थ की बातों में समय बर्बाद नहीं करना है ।
43. सभी की विशेषताओं को ही देखना है ।
44. किसी से भी पैसे की लेन-देन का अब हिसाब-किताब नहीं रखना है ।
45. एक दो के स्नेही सहयोगी बनकर रहना है ।
46. न्यारा प्यारा कमल पुष्प समान बनकर रहना है ।
47. बीमारी में भी सदा खुश रहना है ।
48. किसी की भी निन्दा अथवा परचिन्तन नहीं करना है ।
49. सबको शान्तिधाम, सुखधाम की राह दिखानी है ।
50. निन्दा-स्तुति , मान-अपमान में एकरस स्थिति रखनी है ।
51. कभी भी झरमुहीं- झंगमुहीं नहीं होना है ।
52. ट्रस्टी होकर रहना है ।
53. सिवाए एक बाप के किसी से भी मोह नहीं रखना है ।
54. योगयुक्त अवस्था में रहकर ही हर कर्म करना है ।
55. ज्ञान की टिकलू-टिकलू, भूं- भूं और शंखध्वनि करते रहना है ।
56. भोजन की एक-एक गीटटी बाप की याद में रहकर बाप के साथ खानी है ।
57. किसी की मी विशेषताओं के ऊपर प्रभावित नहीं होना है ।
58. सदैव सात्विक भोजन ही स्वीकार करना है ।
59. भोजन पर एक दो को बाप और वर्से की ही याद दिलानी है ।
60. कोई मी उल्टी चलन नहीं चलनी है ।
61. सर्विस में कभी भी बहाना नहीं देना है ।
62. बड़ों को रिगार्ड और छोटो को स्नेह देना है ।
63. संगम पर अपना तन-मन-धन सबकुछ सफल करना है ।
64. चलते-फिरते, उठते-बैठते भी बाप की याद में रहकर दूसरों को भी बाप की याद दिलानी है ।
65. सदा श्रेष्ठ से श्रेष्ठ स्वमान में रहना है ।
66. ट्राफिक कंट्रोल का उल्लंघन नहीं करना है ।
67. रात्रि सोने से पूर्व भी बाप को अपना सच्चा पोतामेल देना है ।
68. ज्यादा से ज्यादा अशरीरी बनने की प्रेक्टिस करनी है ।
69. सर्ब सम्बन्ध एक बाप से ही रखने हैं ।
70. सर्विस में अपनी हड्डियां स्वाहा करनी हैं ।
71. कभी भी ईश्वरीय कुल का नाम बदनाम नहीं करना है ।
72. खाने-पीने की चीजों में भी अनासक्त वृति रखनी है ।
73. अपने स्वीटहोम, शान्तिधाम को याद करना है ।
74. ज्यादा हंसी मजाक में नहीं आना है ।
75. जरुरत से ज्यादा चीजें संग्रह नहीं करनी हैं ।
76. विनाश के पहले पहले अपना सबकुछ सफल कर लेना है ।
77. अपनी विशेषताओं पर कभी भी अहंकार नहीं करना है ।
78. देह-अभिभान वश कोई भी विकर्म नहीं करना है ।
79. किसी भी बात में संशयबुद्धि नहीं बनना है ।
80. याद की फांसी पर लटके रहना है ।
81. ब्रह्मा बाप समान बनने का पुरूषार्थ करना है ।
82. पढ़ाई में रेग्युलर, पंक्चुअल बनना है ।
83. न बुरा देखना, न बुरा बोलना, न करना, न सोचना और न ही बुरा सुनना है ।
84. सबको मुक्ति, जीवनमुक्ति का रास्ता बताना है ।
85. सेवा में विघ्न रूप नहीं बनना है ।
86. कोई भी नया कर्मबन्धन नहीं बनाना है ।
87. सम्बन्ध सम्पर्क में आते सदा रूहानियत में रहना है ।
88. अशरीरी बनने का अभ्यास करते ही रहना है ।
89. पतितों को पावन बनाने की सेवा करनी है ।
90. वायुमण्डल में शान्ति, शक्ति, खुशी, उमंग-उत्साह के वायब्रेशन फैलाने की सेवा करनी है ।
91. मम्मा बाबा को फालो करना है ।
92. सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना है ।
93. इस पुरानी दुनिया से बेहद के वैरागी बनना है ।
94. साक्षी अवस्था में रह अपनी स्थिति को मजबूत बनाना है ।
95. सच्ची दिल से बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है ।
96. दैवी मैनर्स धारण करने और कराने हैं ।
97. किसी के भी नाम, रूप में नहीं फंसना है ।
98. कांटों को फूल बनाने की सेवा करनी है ।
99. और सब संग तोड एक बाप के संग में रहना है ।
100. योगबल से अपने पुराने सब हिसाब-किताब चुक्तु करने हैं ।
101. अपना स्वभाव सरल बनाकर सबसे मिलनसार होकर रहना है ।
102. योग-ज्वाला से अपने पुराने अवगुणी स्वभाव-संस्कार को जड़ से निकाल भस्म
103. सर्व आत्माओं को सुख देकर दुआओं का पात्र बन, अविनाशी खाता जमा करना है ।
104. अपना बोल, चाल बहुत-बहुत मीठा रखना है सबको उमंग-उत्साह में लाने वाले बोल बोलने हैं ।
105. सदैव बाबा को अपना साथी बनाकर रखना है ।
106. बाप समान बन सबको शीतलता के छीटें डालकर शीतल बनाना है ।
107. पवित्रता के बल पर श्रीमत द्वारा विश्व को पावन बनाने की निरंतर सेवा करते रहना है ।
108. बाबा को इतना प्यार से, दिल से याद करना है जो आंखों से प्रेम के आंसू आ जायें ।
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