Brahmakumaris Murli Manthan 27 July 2018
''मीठे बच्चे - इस ज्ञान में गम्भीरता का गुण धारण करना बहुत जरूरी है, कभी भी अपना अभिमान नहीं आना चाहिए, माताओं का रिगार्ड रखो''
प्रश्न:
सभी बच्चों के प्रति बाप की आश क्या है? वह आश पूरी कब कर सकेंगे?
उत्तर:
बाप की आश है - बच्चे ऐसा पुरुषार्थ करें जो नर से नारायण बनकर दिखायें। इसमें ही बाप का शो होगा। ऐसा शो निकालो जो बाप का भी गायन हो तो बच्चों का भी गायन हो। बाबा कहे - बच्चे, अगर तुम नर से नारायण बनेंगे तो तुम्हारा भी मन्दिर बनेगा और हमारा भी बनेगा। ऐसा पूज्य बनने लिए फॉलो फादर। अपने आपसे प्रण करो - हम पूरा ही फॉलो करेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:
आपस में एकमत होकर रहना है। एक दो को रिगॉर्ड देना है। रूठकर कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
क्रोध बहुत नुकसान-कारक है इसलिए जो बात पसन्द नहीं आती है, उसे एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है। क्रोध नहीं करना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है।
वरदान:
बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त भव
बाह्यमुखता अर्थात् व्यक्ति के भाव-स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और संबंध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के व्यर्थ चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से दूर.....यह बाह्यमुखता के रस भी बाहर से बहुत आकर्षित करते हैं, इसलिए पहले इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं, जब इन बंधनों से मुक्त बनो तब कहेंगे जीवनमुक्त।
स्लोगन:
जो अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बन्धन से मुक्त साक्षी व रहमदिल है वही तपस्वी है।
''मीठे बच्चे - इस ज्ञान में गम्भीरता का गुण धारण करना बहुत जरूरी है, कभी भी अपना अभिमान नहीं आना चाहिए, माताओं का रिगार्ड रखो''
प्रश्न:
सभी बच्चों के प्रति बाप की आश क्या है? वह आश पूरी कब कर सकेंगे?
उत्तर:
बाप की आश है - बच्चे ऐसा पुरुषार्थ करें जो नर से नारायण बनकर दिखायें। इसमें ही बाप का शो होगा। ऐसा शो निकालो जो बाप का भी गायन हो तो बच्चों का भी गायन हो। बाबा कहे - बच्चे, अगर तुम नर से नारायण बनेंगे तो तुम्हारा भी मन्दिर बनेगा और हमारा भी बनेगा। ऐसा पूज्य बनने लिए फॉलो फादर। अपने आपसे प्रण करो - हम पूरा ही फॉलो करेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:
आपस में एकमत होकर रहना है। एक दो को रिगॉर्ड देना है। रूठकर कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़नी है।
क्रोध बहुत नुकसान-कारक है इसलिए जो बात पसन्द नहीं आती है, उसे एक कान से सुन दूसरे से निकाल देना है। क्रोध नहीं करना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है।
वरदान:
बाह्यमुखता के रसों की आकर्षण के बन्धन से मुक्त रहने वाले जीवनमुक्त भव
बाह्यमुखता अर्थात् व्यक्ति के भाव-स्वभाव और व्यक्त भाव के वायब्रेशन, संकल्प, बोल और संबंध, सम्पर्क द्वारा एक दो को व्यर्थ की तरफ उकसाने वाले, सदा किसी न किसी प्रकार के व्यर्थ चिन्तन में रहने वाले, आन्तरिक सुख, शान्ति और शक्ति से दूर.....यह बाह्यमुखता के रस भी बाहर से बहुत आकर्षित करते हैं, इसलिए पहले इसको कैंची लगाओ। यह रस ही सूक्ष्म बंधन बन सफलता की मंजिल से दूर कर देते हैं, जब इन बंधनों से मुक्त बनो तब कहेंगे जीवनमुक्त।
स्लोगन:
जो अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बन्धन से मुक्त साक्षी व रहमदिल है वही तपस्वी है।
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