Amazon

Spiritual Significance : Why Rakshabandhan? - Brahma Kumaris

Why Rakshabandhan?
The Spiritual Significance Of Rakhi, Rakshabandhan?

Rakshabandhan Ka Sandesh - Pavitra Bano Yogi Bano
Rakshabandhan Ka Sandesh - Pavitra Bano Yogi Bano

Pavitra Bano, Yogi Bano

Pavitra bano, yogi bano ka sandesh dete yah rakshabandhan ka parv. Pavitra bandhan, pavitra rishta. Iss sansar me bhai-bahan ka rishta pavitra mana jata hain. Ek bhai apne bahan se pavitrata ki pratigya karta hai aur yeh wada karta hai ki wo hamesha uske raksha karega. Iss parv ka bada hi guhya aadhyatmik rahashya hain. Yeh parv pavitrata ki nishani hai ki ham sab aatmaye Jab apavitra ban jate hain, dukhi ho jate hain iss sansar me toh bhagwan aate hain aur ham aatmao ko adopt karte hain aur hame sabse pehla vardan yahi dete hain ki pavitra bano, yogi bano. Parmatma ham aatmao ko pavitrata ki rakhi bandhte hain. Isliye sabhi aatmaye brahmano se bhi rakhi bandhwate hain aur aajkal sabhi aatmaye rakhi bandhte hain. 

Aaj kal mahilao par kitna aatyachar ho raha hai, ham sab jante hai. Kitna crime badh gaya hai. Aur yeh apvitrata ke karan hi aisa samjh banta ja raha hain. Yeh parab hame yeh sikhata hai ki ham sabhi ko apna bahan samjhe. Ham sab brahma ki santan, bhai-bahan hai aur shiv baba(bhagwan) ki santan sabhi aatmaye bhai-bhai hai. Yeh tayohar hamare samaj me yeh awareness failata hain ki ham sabhi bahno ki raksha kare, repect every women. Yeh puri dunia hi ek parivar hain aur ham sab aatmaye bhai-bahan hain. Kewal apne bahan nahi, pura sansar me hi ham sab bhai-bahan hain. 

Ham sab ek parampita ki santan hain. Shiv Shaktiyan aur pandav sena. Hame phir se aisa bharat banana hain jaha nariyon ki puja hoti hain. Nari par aatyachar hona, yeh aatma me kam, krodh, lobh, moh, ahankar vikaro ke karan badh raha hain. Jaha, Durga, Kali, Lakshmi, Saraswati ki puja hoti hain waise desh me ham rahte hain. Bhagwan kahte hain, tum sab aapas me bhai bhai ho, bhagwan aayeh hai ham sabhi aatmao ko pavitra banane aur vardan dete hain, pavitra bano, yogi bano.

Ham iss pawan parv me pavitra ki rakhi bandhe. Pavitrata ki rakhi hai toh sabhi aatmaye safe hain. Bhagwan ki aagya hai ki ham pavitra bane. Isliye rakhi bandhne wada karne ka parb hain. Ham bhagwan se wada karte hai, vrat karte hain ki pavitra jarur banege aur phir pavitra(kam, krodh, lobh, moh, ahankar par vijay) bankar dilkhush mithai khate hai aur sukhi aur shant bante hain. 

Bhagwan pahle hame aatmik swarup ka tilak lagate hain, aur hamari aatma rupi dipak jaga dete hain. Matlab hamari budhi me laga tala khol dete hain. Hamari buddhi pavitra banate hain. Yahi ek tayohar hain jisme sabhi aatmaye vrat leti hain aur wada karte hain bhagwan se ki ham patit se pawan jarur banege. Patit, aapavitra buddhi ke karan hi sari dunia me pap hi pap, dukh hi dukh, aashanti hi aashanti aa jati hain. Jaha pavitrata hai waha sukh aur shanti hai. Iss tayohar ke spiritual significance ko hame samjhne ki jarurat hain. Ek parmatma hi sabhi aatmao ko aatmik tilak dete hain aur bacche baba se pratigya karte hain ki ham pavitra banege baba, chahe kuch bhi ho jaye ham pavitrata ko aapnayege. 

raksha bandhan ka adhyatmik rahashya


❖ “राखी मज़बूत करती है मर्यादाओं की डोर” ❖

(Part:~1)

➳ रक्षाबंधन का त्योहार भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। चिरातीत काल से ही बहनें भाई की कलाई पर श्रावणी पूर्णिमा को राखी बांधती चली आ रही हैं। 

➳ भारत का यह त्योहार विश्व भर में अपनी प्रकार का एक अनूठा ही त्योहार है। भाई को स्नेह के सूत्र में बांधने वाली यह एक बहुत ही मर्मस्पर्शी और भावभीनी भस्म है। यह त्योहार बहन और भाई के पारस्परिक स्नेह और सम्बन्ध के रूप में मनाया जाता है। 

➳ इस दिन बहनें भाई को राखी बांधती है और उनका मुख मीठा कराती है। कैसी है भारत की यह अद्भुत परम्परा कि भाई अपने हृदय में अपनी बहन के प्रति स्नेह-समुद्र को बटोरे हुए सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लेता है। 

➳ 4-10 मिनट की इस रस्म में भारतीय संस्कृति की वह झलक देखने को मिलती है कि किस प्रकार यहाँ बहन और भाई में एक मासूम उम्र से लेकर जीवन के अंत तक एक-दूसरे से प्यार का यह सम्बन्ध अटूट बना रहता है। यह धागा तो एक दिन टूट भी जाता है, परंतु मन को मिलाने वाला स्नेह के सूक्ष्म सूत्र नहीं टूटते। 

➳ यदि वह तार किसी पारिवारिक तूफान के झटके से टूट भी जाता है, तो फिर अगली राखी पर फिर से नया सूत्र उस स्नेह में एक नयी ज़िंदगी और एक नयी तरंग भर देता है। इस प्रकार यह स्नेह की धारा जीवन के अंत तक ऐसे ही बहती रहती है जैसे कि गंगा, अपने उद्गम स्थल से लेकर सागर के संगम तक कहीं तीव्र और कहीं मधुर गति से प्रवाहित होती रहती है। 

➳ रक्षाबंधन को केवल कायिक अथवा आर्थिक रक्षा का प्रतीक मानना इस त्योहार के महत्व को कम कर देने के बराबर है। 

➳ भारत एक मुख्यतः एक आध्यात्मिक प्रधान देश है। यहाँ मनाए जाने वाला हर त्योहार आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को लिए हुए है। 

➳ यदि उसी परिपेक्ष्य में देखा जाए तो रक्षाबंधन का भी आध्यात्मिक महत्व है। भारत में सूत्र सदा किसी आध्यात्मिक भाव को लेकर ही बाँधे जाते हैं। 

➳ दूसरों शब्दों में कहें, सूत्र बांधने की रस्म शुद्ध धार्मिक है और हर धार्मिक कार्य को शुरू करने के समय कुछ व्रतों अथवा नियमों को ग्रहण करने के लिए यह रस्म अदा की जाती है। जब भी किसी व्यक्ति से कोई संकल्प कराया जाता है तो उसे सूत्र बांधा जाता है और तिलक भी दिया जाता है। 

➳ सूत्र बांधना और संकल्प करना तथा तिलक देना - इन तीनों का सहचर्य आध्यात्मिक संकल्प का ही प्रतीक है क्योंकि यह रस्म सदा किसी धार्मिक अथवा पवित्र व्यक्ति द्वारा ही कराई जाती है और सूत्र बँधवाने वाला व्यक्ति संकल्प करने वाले को दक्षिणा भी देता है- इसी का रूपांतर यह ‘रक्षा बंधन’ त्योहार है। यह त्योहर एक धार्मिक त्योहार है और यह इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के संकल्प का सूचक है, अर्थात भाई और बहन के नाते में जो मन, वचन कर्म की पवित्रता समाई हुई है, यह उसका बोधक है। 


➳ पुनश्च, यह ऐसे समय की याद दिलाता है, जब परमपिता परमात्मा ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा कन्याओं-माताओं को ब्राह्मण पद पर आसीन किया, उन्हें ज्ञान का कलश दिया और उन द्वारा भाई-बहन के सम्बन्ध की पवित्रता की स्थापना का कार्य किया जिसके फलस्वरूप सतयुगी पवित्र सृष्टि की स्थापना हुई। उसी पुनीत कार्य की आज पुनरावृति हो रही है।

❖ “राखी मज़बूत करती है मर्यादाओं की डोर” ❖

(Part:~2)

➳ यदि ज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो रक्षाबंधन एक बहुत ही रहस्ययुक्त पर्व है। यदि इसकी पूरी जानकारी हो और ज्ञान-युक्त रीति से इस बंधन को निभाया जाए तो मनुष्य को मुक्ति और जीवन मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। 

➳  इसके बारे में एक जगह यह भी वर्णन आता है कि जब असुरों से हारकर इंद्र ने अपना राज्य-भाग्य गंवा दिया था तो उसने भी इंद्राणी से यह रक्षाबंधन बंधवाया था और इसके फलस्वरूप उसने अपना खोया हुआ स्वराज्य पुनः प्राप्त कर लिया था। 

➳ इसी प्रकार, एक दूसरे आख्यान में यह वर्णन मिलता है कि यम ने भी अपनी बहन यमुना से यह रक्षाबंधन बंधवाया था और कहा था कि इस बंधन को बांधने वाले मनुष्य यमदूतों से छूट जाएंगे। 

➳ स्पष्ट है कि ऐसा रक्षाबंधन जिससे कि स्वर्ग का स्वराज्य प्राप्त हो अथवा मनुष्य यम के दंडों से बच जाए, पवित्रता का ही बंधन हो सकता है, अन्य कोई बंधन नहीं। अब प्रश्न उठता है कि इस त्योहार से इतनी बड़ी प्राप्ति कैसे होती है? इसका उत्तर हमें इस त्योहार के अन्यान्य नामों से ही मिल जाता है। 

➳ रक्षा बंधन को ‘विष तोड़क पर्व’ ‘पुण्य प्रदायक’ पर्व भी कहा जाता है, जो इसके अन्य- अन्य नाम हैं उससे यह सिद्ध होता है कि यह त्योहार रक्षा करने, पुण्य करने और विषय-विकारों की आदत को तोड़ने की प्रेरणा देने वाला त्योहार है।

➳ सचमुच भारत-भूमि की मर्यादायें और यहाँ की रस्में एक बहुत ही गहरे दर्शन को स्वयं में छिपाये हुए है। यह स्वयं में एक जागृति का प्रतीक है और एक महान संस्कृति का द्योतक है

➳ यह वृतांत विश्व ज्ञात है कि शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में जहां हर धर्म के प्रतिनिधि श्रोताओं को ‘प्रिय भाइयों’ कहकर संबोधित कर रहे थे, तब भारतीय संस्कृति और परम्परा के प्रतिनिधि स्वामी विवेककानंद ने सम्बोधन में कहा था- ‘प्रिय भाइयों और बहनों’ तब वहाँ का हाल (Hall) तालियों से गूंज उठा था और चहुं ओर से आवाज़ आई “वाह! वाह!” 

➳ क्योंकि निश्चय ही बहन और भाई के सम्बन्ध में जो स्नेह है, वह एक अपनी ही प्रकार का निर्मल स्नेह है जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं। इसमें एक विशेष प्रकार की आत्मीयता का भाव है, निकटता है और एक दूसरे के प्रति हित की भावना है।

 ➳ “प्रिय बहनों और भाइयों”- इन शब्दों में वहाँ के विश्व धर्म सम्मेलन के श्रोताओं ने सब प्रकार के झगड़ों का हल निहित महसूस किया था। इन शब्दों ने ही भारतीय संस्कृति के झंडे को सबके समक्ष बुलंद किया था। परंतु स्नेह-सिक्त शब्दों में, जिनमें बड़े-बड़े दार्शनिकों ने गूढ़ दर्शनिकता पायी थी और धार्मिक नेताओं ने धर्म का सार पाया था। 

➳ बहन और भाई के निर्मल स्नेह का स्वरूप था, जो इस त्योहार का मूल था, वे अपने अनादि स्थान भारत से प्रायः लुप्त होते जा रहे हैं। अतः आज के संदर्भ में राखी की पुरानी रस्म की बजाय एक नए दृष्टिकोण से इस त्योहार को मनाने की ज़रूरत है। 


➳ दूसरे शब्दों में कहें, अर्थ-बोध के बिना राखी मनाने की बजाय अब राखी के मर्म को समझकर इसे मानते हुए, वातावरण को बदलने की आवश्यकता है। तभी इसकी सार्थकता सिद्ध होगी।


The True Significance Of Raksha Bandhan

Raksha Bandhan Song | Raksha Bandhan Special | Brahmakumaris


रक्षाबंधन : Rakshabandhan


Rakshabandhan Ka Adhyatmik Rahasya by BK Suraj Bhai


अनोखा रक्षाबंधन - परमात्म रक्षासूत्र आपके लिए - पावर ऑफ सकाश मधुबन




No comments:

Post a Comment

About Me - BK Ravi Kumar

I am an MCA, IT Professional & Blogger, Spiritualist, A Brahma Kumar at Brahmakumaris. I have been blogging here.