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Aao Kahani Sune - Neki Ki Raah

 आओ कहानी सुने - नेकी की राह 


*यह कहानी एक प्रसिद्ध महान फकीर संत की है। एक बहुत प्रसिद्ध साधु हुई हैं! उसकी जवानी में वह बहुत ही खूबसूरत थी। 


एक बार चोर उसे उठाकर ले गए और एक वेश्या के कोठे पर ले जाकर उसे बेच दिया। 


अब उसे वही कार्य करना था जो वहाँ की बाक़ी औरतें करती थी। 


इस नए घर में पहली रात को उसके पास एक आदमी लाया गया। उसने तुरन्त बातचीत शुरू कर दी। 


 "आप जैसे भले आदमी को देखकर मेरा दिल बहुत खुश है" वह बोली।


 आप सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ जायें , मैं थोड़ी देर परमात्मा की याद में बैठ लूँ। 


 अगर आप चाहें तो आप भी परमात्मा की याद में बैठ जाएँ। 


 यह सुनकर उस नौजवान की हैरानी की कोई हद न रही। वह भी उस औरत के साथ धरती पर ही बैठ गया। 


फिर वह उठी और बोली ... मुझे विश्वास है कि अगर मैं आपको याद दिला दूँ कि 

एक दिन हम सबको मरना है तो आप बुरा नहीं मानोगे। 


 आप यह भी भली भाँति समझ लें की जो पाप करने का आपके मन में चाह है, वह आपको नर्क की आग में धकेल देगा। 


 अब आप स्वयं ही फैसला कर लें कि आप यह पाप करके नर्क की आग में कूदना चाहते हैं, या इससे बचना चाहते हैं? 


 यह सुनकर नौजवान हक्का बक्का रह गया।उसने संभलकर कहा, 


 ऐ पवित्र औरत! तुमने तो मेरी आँखे खोल दी, जो अभी तक पाप के भयंकर नतीजे की तरफ से बंद थी मै वचन देता हूँ कि फिर कभी कोठे की तरफ कदम नही बढ़ाऊंगा। 


हर रोज नए आदमी उस औरत के पास भेजे जाते। पहले दिन आये नौजवान की तरह उन सबकी जिंदगी भी पलटती गयी। 


उस कोठे के मालिक को बहुत हैरानी हुई की इतनी खूबसूरत और नौजवान औरत है और एक बार आया ग्राहक दोबारा उसके पास जाने के लिए नही आता। जबकि लोग ऐसी सुन्दर लड़कियों के दीवाने होकर उसके इर्दगिर्द घूमते है।


यह राज जानने के लिए उसने एक रात अपनी पत्नी को ऐसी जगह छुपाकर बिठा दिया, जहां से वह उस औरत के कमरे के अंदर सब कुछ देख सकती थी। 


वह यह जानना चाहता था की जब कोई आदमी उस औरत के पास भेजा जाता है तो वह उसके साथ कैसे पेश आती है? 


उस रात उसने देखा कि जैसे ही ग्राहक ने अंदर कदम रखा, औरत उठकर खड़ी हो गई और बोली,आओ भले आदमी, आपका स्वागत है। 

पाप के इस घर में मुझे हमेशा याद रहता है कि परमात्मा हर जगह मौजूद है। 


वह सब कुछ देखता है और जो चाहे कर सकता है।आपका इस बारे में क्या ख्याल है ? 


यह सुनकर वह आदमी हक्का बक्का रह गया 

और उसे कुछ समझ न आया कि क्या करे क्या कहे ? 

आखिर वह कुछ हिचकिचाते हुए बोला, हाँ पंडित और मौलवी भी कुछ ऐसा ही कहते हैं। 


वह कहती चली गई, 'यहाँ पाप से घिरे इस घर में, मैं कभी नही भूलती कि परमात्मा सब पाप देखता है और पूरा न्याय भी करता है। 

वह हर इंसान को उसके पापों की सजा जरूर देता है। जो लोग यहाँ आकर पाप करते हैं, उसकी सजा पाते हैं। 


उन्हें अनगिनत दुःख और मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं। 


मेरे भाई, हमें मनुष्य जन्म मिला है, भजन, बंदगी करने के लिए दुनिया के दुखों से हमेशा के लिए छुटकारा पाने के लिये, परमात्मा से मुलाकात करने के लिए, न की जानवरों से भी बदतर बनकर उसे बर्बाद करने के लिए।


पहले आये लोगों की तरह इस आदमी को भी उस औरत की बातों में छुपी सच्चाई का अहसास हो गया। 


उसे जिंदगी में पहली बार महसूस हुआ की वह कितने घोर पाप करता रहा है और आज फिर करने जा रहा था।वह फूटफूट कर रोने लगा और औरत के पाव पर गिरकर क्षमा मांगने लगा।


औरत के शब्द इतने सहज, निष्कपट और दिल को छू लेने वाले थे कि उस कोठे के मालिक की पत्नी भी बाहर आकर अपने पापो का पश्चाताप करने लगी। 


फिर उसने कहा ऐ पवित्र लड़की, तुम तो वास्तव में साधु हो। हमने कितना बड़ा पाप तुम पर लादना चाहा। इसी वक्त इस पाप की दलदल से बाहर निकल जाओ। 

इस घटना ने उसकी अपनी जिंदगी को भी एक नया मोड़ दे दिया और उसने पाप की कमाई हमेशा के लिए छोड़ दी। 


ईश्वर के सच्चे भक्त जहां कहीं भी हों, जिस हालात में हो, वे हमेशा मनुष्य जन्म के असली उद्देश्य की ओर इशारा करते हैं और भूले भटके जीवों को नेकी की राह पर चलने की प्रेरणा देते हैं। 

...........

 भगवान देख रहा है 

जब तुम किसी को ठगते हो, 

झूठ बोलते हो,

चोरी करते हो, 

हिंसा करते हो,

रिश्वत लेते हो, 

किसी को सताते हो,

पर स्त्री गमन करते हो

तो याद रखो भगवान देख रहा है।

तुम्हें कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ेगा,

तुम दुखी होते हो, 

चिंतित होते हो,

बिमारी से परेशान हो 

तथा परिवार की सुख शांति नष्ट करते हो। 

 तो समझ लो ये सब दुख तुम्हारे ही पाप कर्मों का फल है। 

 स्वर्ग की सीढ़ी 

मारना चाहते हो तो बुरी इच्छाओं को मारो।

जीतना चाहते हो तो क्रोध और तृष्णाओं को जीतो।

खाना चाहते हो तो गुस्से को खाओ।

पीना चाहते हो तो ईश्वर भक्ति का शर्बत पीओ।

देना चाहते हो तो नीची निगाह करके दो और भूल जाओ।

लेना चाहते हो तो माता-पिता और गुरू का आशीर्वाद लो।

जाना चाहते हो तो सत्संगों एवं स्वास्थ्यप्रद स्थानों पर जाओ।

छोडऩा चाहते हो तो पाप, घमण्ड और अत्याचार को छोड़ो।

बोलना चाहते हो तो सत्य और मीठे वचन बोलो।

खरीदना चाहते हो तो प्रेम का सौदा खरीदो।

तोलना चाहते हो तो बात को तोलो और ठीक बोलो।

देखना चाहते हो तो अपनी बुराई को देखो।

सुनना चाहते हो तो ईश्वर की प्रशंसा और दुखियों की पुकार को सुनो। 

भागना चाहते हो तो पराई निंदा और पराई स्त्रियों से भागो।

 इन अच्छाइयां में ही स्वर्ग की सीड़ी है।


सदैव प्रसन्न रहिये। 

जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।।


नित याद करें शिव परमात्मा को🌹🙏🌹💐

Shiv Aur Shankar Me Mahan Antar - शिव और शंकर में महान अन्तर - Brahma Kumaris

Shiv Aur Shankar Me Mahan Antar

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☀ "शिव और शंकर में महान अन्तर" ☀

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अधिकाँश भक्त शिव और शंकर को एक ही मानते हैं, परन्तु वास्तव में इन दोनों में भिन्नता है। आप देखते हैं कि दोनों की प्रतिमायें भी अलग-अलग आकार वाली होती हैं। शिव की प्रतिमा अण्डाकार अथवा अंगुष्ठाकार होती है जबकि महादेव शंकर जी की प्रतिमा शारीरिक आकार वाली होती है।यहाँ उन दोनों का अलग-अलग परिचय, जोकि परमपिता परमात्मा शिव ने अब स्वयं हमे समझाया है तथा अनुभव कराया है स्पष्ट किया जा रहा है । इसे हर किसी को समझने की जरूरत है। इसे समझने के बाद ही श्रद्धालुओं को उसके अनुरूप ही पूजा अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान करना चाहिए।


🌸 परमात्मा शिव ज्योति बिंदु है, जबकि शंकर जी का शारीरिक आकार है। 


🌸 शिव परमात्मा सारी सृष्टि के रचयिता हैं, जबकि शंकर जी स्वयं शिव की रचना है। 


▪जैसे गुजरात में रिवाज है कि बच्चे के साथ बाप का नाम भी जोड़ा जाता है ताकि पता चल जाये कि यह फलाने का बेटा है....जैसे उदाहरण के तौर पर महात्मा गांधी का नाम मोहन दास था। लेकिन पूरा नाम मोहन दास कर्मचंद गांधी कहते हैं क्योंकि कर्मचंद उनके पिता जी का नाम था ताकि पता चल जाये यह फलाने का बेटा है। वैसे शिव शंकर कहते अर्थात शंकर जी भी शिव का बच्चा है..

👉🏻 एक बात ध्यान देने योग्य है कि शास्त्रो 📘में सभी देवी-देवता के मात- पिता दिखाये गए। लेकिन परमपिता परमात्मा शिव के कोई मात-पिता नहीं दिखाये गए क्योंकि स्वयं शिव पूरे जगत के खुद मात-पिता हैं उनका एक और बहुत प्यारा नाम शम्भू है यानि स्वयं धरा पर आने वाले....


▪ शिव परमात्मा को कल्याणकारी कहते हैं, जबकि शंकर जी को प्रलयकारी कहते हैं। 


▪ परमात्मा शिव परमधाम(ब्रह्मलोक) वासी हैं, लेकिन शंकर जी सूक्ष्मवतन(सूक्ष्म देवलोक) वासी हैं। 


▪परमात्मा शिव की प्रतिमा शिवलिंग के रूप में बताते हैं जबकि शंकर जी की प्रतिमा शारीरिक आकार की।


▪ शिव परमात्मा तो स्वयं रचयिता हैं, दाता हैं, उन्हें किसी की तपस्या करने की आवश्यकता नहीं, जबकि शंकर जी को सदा तपस्वी रूप में दिखाते हैं।


▪ शिव (परमात्मा) की प्रतिमा शिवलिंग सदा शंकर जी की प्रतिमा के आगे ही दिखाया जाता है। इसका अर्थ है शंकर जी सदा शिव की तपस्या करते थे। क्योंकि यदि शिव व शंकर एक होते तो क्या शंकर जी खुद की ही तपस्या कर रहे हैं। क्या कभी कोई स्वयं, स्वयं की ही तपस्या करेगा क्या ? यदि शंकर जी स्वयं परमात्मा हैं तो उन्हें किसी की तपस्या करने की क्या जरूरत?


▪परमात्मा शिव की प्रतिमा को शिवलिंग कहते हैं, शंकर लिंग नहीं कहते हैं। 


▪परमात्मा शिव के अवतरण को शिवरात्रि कहते हैं न कि शंकर रात्रि।


▪ इसमें एक और अंतर है- ब्रह्मा

देवाए नम:, विष्णु देवाए नम:, शंकर देवाए नम: लेकिन परमात्मा शिव के लिये सदा शिव परमात्माए नम: कहा जाता है, कभी भी शिव देवताये नम: नहीं कहते। सदा शिव कहते, सदा शंकर नहीं कहते हैं।


▪ जब भी कोई मंत्र देते हैं तो वह 'ओम नमः शिवाय' का मंत्र देते हैं कभी 'ओम नमः शंकराय' का उच्चारण नहीं करते।


▪ शास्त्रों के अनुसार बताया गया है कि अमरनाथ में शंकर जी ने पार्वती जी को अमरनाथ की अमर कथा सुनाई थी ।अब शंकर जी ने पार्वती जी को कौन से अमरनाथ की कथा सुनाई कहने का भाव यह है कि अमरनाथ और शंकर जी एक है या अलग ।उस कथा के साक्षी रूप में वह दो कबूतर दिखाते हैं। अब अगर शंकर जी ने भी पार्वती जी को अमरनाथ की अमर कथा सुनाई तो इसका मतलब शंकर जी और अमरनाथ अलग हैं तभी तो कथा सुनाई ,नहीं तो पार्वती जी को तो पता ही होना चाहिए था ना? फिर सुनाने का मतलब ही क्या। अमरनाथ अर्थात वह अमर शिव परमात्मा।


▪ स्वयं शिव परमात्मा इन तीनों देवताओं द्वारा अपने तीन कर्तव्य कराते हैं। इसमें प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि की स्थापना, विष्णु द्वारा नई सतयुगी सृष्टि की पालना तथा शंकर जी के द्वारा पुरानी कलयुगी सृष्टि का विनाश। इससे जाहिर होता है कि शिव परमात्मा इन तीनों आकारी देवताओं के भी रचयिता हैं। इसलिए शिव परमात्मा को त्रिमूर्ति भी कहा जाता है। 


▪ शिवपुराण में भी जब परमात्मा शिव के बारे में बताया जाता है तो उनको निराकार ज्योति स्तंभ स्वरूप ही बताया जाता है और सदाशिव नाम से ही पुकारा जाता है न की सदाशिव शंकर के नाम से।


▪ इससे स्पष्ट है कि शिव और शंकर में महान अंतर है।


 शंकर का आध्यात्मिक रहस्य क्या है ❓❓

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▪▪ वास्तव में शंकरजी हम मनुष्यों का ही प्रतीकात्मक है। शंकर शब्द को English में hybrid कहते हैं। अर्थात हम मनुष्यों के अच्छे व बुरे कर्मों का प्रतीक है।


▪ शंकरजी का परिवार दिखाया है पार्वती गणेश कार्तिकेय, वैसे ही हमारा भी परिवार होता है।


▪ पांच सर्प विकारों  काम, क्रोध ,लोभ, मोह ,अहंकार का प्रतीक है जिन्होंने मनुष्य को ही काट कर नीला पीला कर दिया है।फिर सर्पों को गले की माला दिखाया है जिन विकारों को हम ही तपस्या द्वारा वश में कर गले की माला बना देते हैं।


▪ आज तांडव कौन मचा रहा है?

मनुष्य ही ना। विनाश का कारण मनुष्य स्वयं बना हुआ है। मनुष्य-मनुष्य का खून बहा रहा है। यही तांडव नृत्य है।


▪ शंकर की तीसरी आँख खुलना अर्थात आत्म ज्ञान द्वारा बुराइयों का विनाश होना है।

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🌸 भक्ति में परमात्मा शिव की पूजा विधि का आध्यात्मिक रहस्य : 


   परमात्मा शिव पर अक धतूरा के कड़वे फूल चढ़ाने का अर्थ है मनुष्य अपने अंदर की कड़वाहट विकारों को प्रभु को अर्पण कर दे। विषय विकारों का जो विष है उसे सहन करने की सामर्थ्य केवल शिव पिता में ही है। 

दूध चढ़ाने का अर्थ परमात्म आज्ञा पर पवित्रता को धारण करना है।

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 "शिव का जन्मोत्सव रात्रि में क्यों?"

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       🌌‘रात्रि’ वास्तव में अज्ञान, तमोगुण अथवा🗿 पापाचार की निशानी है।अत: द्वापरयुग और कलियुग के समय को ‘रात्रि’ कहा जाता है। कलियुग के अन्त में जबकि 🎅🏻साधू, सन्यासी, गुरु, आचार्य इत्यादि सभी मनुष्य 👥पतित तथा दुखी होते हैं और अज्ञान-निंद्रा में सोये पड़े होते हैं, जब धर्म की ग्लानी होती है और जब यह भारत विषय-विकारों के कारण वेश्यालय बन जाता है, तब पतित-पावन परमपिता परमात्मा 🌟शिव इस सृष्टि में दिव्य-जन्म लेते हैं इसलिए अन्य सबका जन्मोत्सव तो ‘जन्म दिन’ के रूप में मनाया जाता है परन्तु परमात्मा शिव के जन्म-दिन को ‘शिवरात्रि’ (Birth-night) ही कहा जाता है।


       ज्ञान-सूर्य 🌟शिव के प्रकट होने से सृष्टि से अज्ञान-अन्धकार तथा विकारों का 🌋नाश होता है।जब इस प्रकार अवतरित होकर ज्ञान-सूर्य परमपिता परमात्मा शिव ज्ञान-प्रकाश देते हैं तो कुछ ही समय में ज्ञान का प्रभाव सारे विश्व🌍में फ़ैल जाता है और कलियुग तथा तमोगुण के स्थान पर संसार में सतयुग और सतोगुण की स्थापना हो जाती है और अज्ञान-अन्धकार का तथा विकारों का विनाश हो जाता है।सारे कल्प में परमपिता परमात्मा शिव के एक अलौकिक जन्म से थोड़े ही समय में यह सृष्टि वेश्यालय से बदल कर शिवालय बन जाती है और नर को श्री नारायण पद तथा नारी को श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति हो जाती है ।इसलिए शिवरात्रि 💎हीरे तुल्य है।


परमात्मा ऊपर परमधाम से आते हैं इसका यादगार भक्ति मार्ग में यह है कि जब शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना होती तो शिव पिंडी को दरवाजे से प्रवेश नहीं कराते बल्कि ऊपर गुम्बज से नीचे लाते है, बाद में गुम्बज का निर्माण किया जाता है।

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Aaj Ki Kahani - 27-11-2022 - तेनालीराम

 Aaj Ki Kahani - 27-11-2022 - तेनालीराम 

💐💐 कुछ नहीं💐💐


तेनालीराम राजा कृष्ण देव राय के निकट होने के कारण बहुत से लोग उनसे जलते थे। उनमे से एक था रघु नाम का ईर्ष्यालु फल व्यापारी। उसने एक बार तेनालीराम को षड्यंत्र में फसाने की युक्ति बनाई। उसने तेनालीराम को फल खरीदने के लिए बुलाया। जब तेनालीराम ने उनका दाम पूछा तो रघु मुस्कुराते हुए बोला,


“आपके लिए तो इनका दाम ‘कुछ नहीं’ है।”


यह बात सुन कर तेनालीराम ने कुछ फल खाए और बाकी थैले में भर आगे बढ़ने लगे। तभी रघु ने उन्हें रोका और कहा कि मेरे फल के दाम तो देते जाओ।


तेनालीराम रघु के इस सवाल से हैरान हुए, वह बोले कि अभी तो तुमने कहा की फल के दाम ‘कुछ नहीं’ है। तो अब क्यों अपनी बात से पलट रहे हो। तब रघु बोला की, मेरे फल मुफ्त नहीं है। मैंने साफ-साफ बताया था की मेरे फलों का दाम कुछ नहीं है। अब सीधी तरह मुझे ‘कुछ नहीं’ दे दो, वरना मै राजा कृष्ण देव राय के पास फरियाद ले कर जाऊंगा और तुम्हें कठोर दंड दिलाऊँगा।


तेनालीराम सिर खुझाने लगे। और यह सोचते-सोचते वहाँ से अपने घर चले गए।


उनके मन में एक ही सवाल चल रहा था कि इस पागल फल वाले के अजीब षड्यंत्र का तोड़ कैसे खोजूँ। इसे कुछ नहीं कहाँ से लाकर दूँ।


अगले ही दिन फल वाला राजा कृष्ण देव राय के दरबार में आ गया और फरियाद करने लगा।नवनीत वह बोला की तेनाली ने मेरे फलों का दाम ‘कुछ नहीं’ मुझे नहीं दिया है।


राजा कृष्ण देव राय ने तुरंत तेनालीराम को हाज़िर किया और उससे सफाई मांगी। तेनालीराम पहले से तैयार थे उन्होंने एक रत्न-जड़ित संदूक लाकर रघु फल वाले के सामने रख दिया और कहा ये लो तुम्हारे फलों का दाम।


उसे देखते ही रघु की आँखें चौंधिया, उसने अनुमान लगाया कि इस संदूक में बहुमूल्य हीरे-जवाहरात होंगे… वह रातों-रात अमीर बनने के ख्वाब देखने लगा। और इन्ही ख़यालों में खोये-खोये उसने संदूक खोला।


संदूक खोलते ही मानो उसका खाब टूट गया, वह जोर से चीखा, ” ये क्या? इसमें तो ‘कुछ नहीं’ है!”


तब तेनालीराम बोले, “बिलकुल सही, अब तुम इसमें से अपना ‘कुछ नहीं’ निकाल लो और यहाँ से चलते बनो।”


वहां मौजूद महाराज और सभी दरबारी ठहाका लगा कर हंसने लगे। और रघु को अपना सा मुंह लेकर वापस जाना पड़ा। एक बार फिर तेनालीराम ने अपने बुद्धि चातुर्य से महाराज का मन जीत लिया था।


💐💐शिक्षा💐💐


मित्रों,हमेशा कोई भी कार्य करे उसे अपने विवेकानुसार करें ताकि आप कभी भी किसी मुसीबत में ना फसें।


सदैव प्रसन्न रहिये।

जो प्राप्त है, पर्याप्त है।। ओम शांति

Dua Do Dua Lo - Brahma Kumaris - दुआएं दो, दुआएं लो

 *दुआएं दो, दुआएं लो*


हम सभी जन्मदिन पर आशीर्वाद के रूप में दुआएं देते हैं, शादी पर दुआएं देते हैं, पार्टी में दुआएं देते हैं, किसी को सर्विस के लिए आशीर्वाद के रूप में दुआएं देते हैं, किसी को परीक्षा में पास होने के लिए आशीर्वाद के रूप में दुआएं देते हैं .... आदि प्रकार से हम दुआएं देते हैं।


हमें शुभ कार्य के साथ-साथ खास उनको दुआएं देना है - जो हम पर क्रोध करते हैं, अपशब्द बोलते हैं, गाली देते हैं, बुरा भला कहते हैं, बेज्जती करते हैं, अपमान करते हैं ..... आदि देने वालों को दुआएं देने की शक्ति दिखानी है, उसके लिए दो शब्द - सभी को *क्षमा* कर देना है, सभी से *शिक्षा* लेनी है।


 *दुआएं* अर्थात सबसे बड़े ते बड़ा तीव्र गति के आगे उड़ने का तेज यंत्र दुआएं हैं।

 *दुआएं* अर्थात स्वयं संतुष्ट रह सबको संतुष्ट करने वाले को दुआएं मिलती हैं।

 *दुआएं* अर्थात हर कदम बाप की श्रीमत पर चलने पर हर कदम में दुआएं मिलती हैं।

 *दुआएं* अर्थात क्रोध आने पर याद दिलाया कि 'मैं परवश हूं' आप मास्टर सर्वशक्तिमान हो, तो दुआएं दो।

*दुआएं* अर्थात गुलाब का पुष्प बदबू से खुशबू लेता है आपको क्रोधी से दुआएं लेना है।

 *दुआएं लेना और दुआएं देना बीज है* , इसमें झाड़ स्वत: ही समाया हुआ है।

 *दुआएं देना दुआएं लेने के लिए दो शब्द* सभी से शिक्षा लेनी है और सभी को क्षमा, रहम करना है।


*इस प्रकार से दुआएं देना और दुआएं* 


सबका कल्याण हो!


सभी हों सुखी और सबका भला हो!


सभी सदा खुश रहें!


सबकी रक्षा हो!


सभी निरोगी हो!


सभी निर्विघ्न हों!


सभी के जीवन में सुख, शांति, पवित्रता, कुशलता, मधुरता की प्राप्ति हो!


सभी को सुख दो और सुख लो!


हर समय खुश रहो!


हंसते रहो और सभी को हंसाते रहो!


आप और आपका पूरा परिवार सदा खुश रहें!


सभी को अपना शुभ, श्रेष्ठ लक्ष्य प्राप्त हो!


सभी को अपना सत्य परिचय प्राप्त हो!


सभी को ईश्वर (परमात्मा) की प्राप्ति हो!


दुनिया में सभी का सत्य मार्ग हो!


सभी की शुभ भावनाएं पूरी हो!


सभी स्वस्थ हो!


सभी की आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, प्राकृतिक समस्याएं समाप्त हो!


सभी पवित्र हो!


विश्व में शांति हो!


सबका आपस में प्रेम हो!


सभी घर, परिवार, संसार में सुखी हो!


सभी ज्ञानवान, समझदार हो!


सभी के शुभ, श्रेष्ठ, पवित्र संकल्प, विचार हों!


प्रकृति के पांच तत्व सुखदाई हो!


यह दुःख की दुनिया बदल सुख की श्रेष्ठ दुनिया हो!


हम बदलेंगे तो जग बदलेगा!


यह दुआएं रोज देनी है, तब बदले में सभी से हमें भी दुआएं मिलेंगी। प्रकृति का नियम है - जो हम देंगे वह हमें कई गुना होकर वापस मिलेगा। तो क्यों न हम अच्छी दुआएं दें तब हमें अच्छी दुआएं मिलेंगी।



*दुआएं दो, दुआएं लो*

धर्मराज की अदालत के गंभीर आरोप - Brahma Kumaris

धर्मराज की अदालत के गंभीर आरोप



1. तुम पर आत्मिक दृष्टि रखने के बजाय दैहिक दृष्टि रखने का आरोप है।


2. पांच विकारों के अंश वंश के वशीभूत होकर विकर्म करने का आरोप है।


3. समय को सेवा में सफल नहीं कर, इधर उधर व्यर्थ की बातों में गंवाने का आरोप है।


4. परचिन्तन, परदर्शन, परमत, प्रपंच में रहकर ब्राह्मण जीवन के महत्व को नहीं समझने का आरोप है।


5. दूसरों को सुख देने के बजाय दुःख देने, कटु वचन बोलने, टोंट कसने का आरोप है।


6. समय होते हुए भी बाप को याद नहीं करने और सेवा नहीं करने का आरोप है।


7. दूसरों का कल्याण करने के बजाय उनका अकल्याण करने का गंभीर आरोप है।


8. मुरली नहीं सुनने और ज्ञान का मनन चिन्तन नहीं करने का आरोप है।


9. बाप की याद के बिना ब्रह्मा भोजन ग्रहण करने का आरोप है।


10. ईश्वरीय मर्यादाओं से अनभिज्ञ होकर उनके अनुकूल नहीं चलने का आरोप है।


11. ईश्वरीय यज्ञ की विभिन्न चीजें चोरी करने का आरोप है।


12. साधना का समय छोड़कर साधनों के वश होकर समय को बर्बाद करने का आरोप है।


13. रूहानी याद की यात्रा छोड़कर घुमने फिरने, मौज मस्ती करने का आरोप है।


14. सर्व सम्बन्धों से एक बाप को याद नहीं करने का आरोप है।


15. स्वराज्य अधिकारी रहने के बजाय कर्मेन्द्रियों के अधीन रहने का आरोप है।


16. यज्ञ में दूसरों की उन्नति व पुरुषार्थ में बाधक बनने का आरोप है।


17. वायुमण्डल को मनसा, वाचा, कर्मणा अशुद्ध बनाने का आरोप है।


18. जो सफल कर सकते थे, वह सफल नहीं करने का आरोप है।


19. दूसरों को बाप का परिचय नहीं देने व उन्हें बाप का नहीं बनाने का आरोप है।


20. बाप के वर्से से दूसरों को वंचित रखने और स्वयं भी वंचित रहने का आरोप है।


21. ईश्वरीय वरदानों को समय पर कार्य में नहीं लगाने का आरोप है।


22. समय होते हुए भी विश्व को सकाश नहीं देने का आरोप है।


23. अपने घर को गीता पाठशाला बना सकते थे, लेकिन नहीं बनाने का आरोप है।


24. कुमार/कुमारी होकर भी ईश्वरीय सेवा में मददगार नहीं बनने का आरोप है।


25. ईश्वरीय खजाने प्राप्त करने के बाद भी खुश नहीं रहने का आरोप है।


26. बार-बार माया के विभिन्न रूपों के अधीन होने का आरोप है।


27. स्वयं के व औरों के पापों को याद के बल से भस्म नहीं करने का आरोप है।


28. सत टीचर द्वारा मिले होमवर्क को समय पर नहीं करने का आरोप है।


29. स्वयं की स्थिति को शक्तिशाली एवं सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं बनाने का गंभीर आरोप है।


30. अमृत वेला उठकर बाप को याद नहीं करने का आरोप है।


31. देहधारी से प्यार करने का आरोप है।


32. कलियुगी क्षणिक सुख की चाहना रखने का आरोप है।


ऐसे अनेक आरोपों से बचने के लिए अपने आपको चेक और चेंज करना है. स्वयं ही स्वयं का साक्षी बनकर स्वयं के ऊपर आरोप लगाकर स्वयं ही उसका निदान करना है ताकि हम स्वयं को धर्मराज की सजाओं से छुड़ा सकें।


JUST CHECK FOR CHANGE

NOW OR NEVER

ॐ शांति

Jawalamukhi Yog - Brahma Kumaris

 Jawalamukhi Yog - Brahma Kumaris

31-12-2011

“नये वर्ष में तीव्र पुरुषार्थी भव के वरदान द्वारा अपने चेहरे से फरिश्ता रूप दिखाओ, लाइट माइट स्वरूप ज्वालामुखी योग से व्यर्थ को जलाओ, दु:खी अशान्त आत्माओं को शक्तियों का दान दो” ।

ं क्योंकि अभी समय दिन प्रतिदिन नाज़ुक आना ही है। तो ऐसे समय पर अभी ज्वालामुखी योग चाहिए। वह ज्वालामुखी योग की आवश्यकता अभी आवश्यक है। ज्वालामुखी योग अर्थात् लाइट माइट स्वरूप शक्तिशाली, क्योंकि समय प्रमाण अभी दु:ख, अशान्ति, हलचल बढ़नी ही है इसलिए अपने दु:खी, परेशान आत्माओं को विशेष ज्वालामुखी योग द्वारा शक्तियां देने की आवश्यकता पड़ेगी। दु:ख अशान्ति के रिटर्न में कुछ न कुछ शक्ति, शान्ति अपने मन्सा सेवा द्वारा देनी पड़ेगी। जो आपने इस समय की टॉपिक रखी है एक परिवार, उसके प्रमाण जब एक परिवार है, तो अशान्त आत्माओं को कुछ तो अंचली देंगे इसीलिए बापदादा अगला वर्ष जो आया कि आया उसके लिए विशेष अटेन्शन खिंचवा रहे हैं कि अभी ज्वालामुखी योग की आवश्यकता है। ज्वालामुखी योग द्वारा ही जो भी संस्कार रहे हुए हैं वह भी भस्म होने हैं।

हे थे कि अभी हमारे तरफ से, जो भी दादियां गई हैं सब मिलके कह रही थी अब ज्वालामुखी योग की बहुत आवश्यकता है, चाहे औरों को शक्ति देने के लिए, चाहे अपने ब्राह्मण परिवार को सम्पन्न बनाने के लिए। अभी समय को समीप लाने वाले आप निमित्त हो इसलिए आने वाले वर्ष में क्या करेंगे? विशेष क्या करेंगे? एक दो के स्नेही सहयोगी बन हर एक सेन्टर, सेवास्थान ज्वालामुखी योग का वायब्रेशन और कर्म में एक दो के स्नेही सहयोगी बन, हर एक के प्रति अटेन्शन रखते जो भी कमी है उसमें सहयोग दो। मन्सा द्वारा अन्य आत्माओं की सेवा करो और अपने सहयोग द्वारा ब्राह्मण साथियों की विशेष सेवा करो, तभी हम लोगों की दिल की आश पूरी होगी।

फलानी हूँ, फलाना हूँ नहीं। फरिश्ता अनुभव में आवे, इसके लिए ज्वालामुखी योग, कोई व्यर्थ नहीं। लाइट और माइट स्वरूप योग से व्यर्थ को जलाओ

वेला। विदेश के भी सेन्टर पर बापदादा चक्र लगाता है लेकिन अभी एडीशन ज्वालामुखी योग। यह ज्वालामुखी योग सभी को समीप लायेगा क्योंकि शक्ति मिलेगी ना। आप भी लाइट माइट रूप बनेंगे। चलते फिरते भी लाइट माइट स्वरूप होंगे तो लोगों को भी वायब्रेशन आयेगा। फिर मेहनत कम और फल ज्यादा निकलेगा। जैसे भारत में अनुभव किया कि अभी जगह-जगह जो भी फंक्शन किये हैं, उसमें रिजल्ट पहले से अच्छी निकली है। और बाप बच्चों को जो भी निमित्त बनी हैं दादियां या दीदियां उन्हों को विशेष मुबारक देते हैं कि बापदादा के संग साथी बनकरके 75 वर्ष पूरे करके मैदान पर आये हैं, इसकी बहुत-बहुत-बहुत-बहुत मुबारक है। दादे भी हैं, सिर्फ दीदियां दादियां नहीं, दादे भी हैं। अच्छा।

29/5/2021

Q : हर मुरली में शिवबाबा याद करने पर जोर देते हैं, सिर्फ याद करने से ही विकर्म विनाश कैसे होता है कृपया स्पष्ट करें ? जैसे स्थूल कीचड़े को भस्म करने के लिए अग्नि का इस्तेमाल होता है अथवा सूर्य के किरणों को lens के माध्यम से एकाग्र करते हैं वैसे ही आत्मा द्वारा जन्मजन्मान्तर के विकर्मों द्वारा निर्मित संस्कार रूपी कीचड़े को भस्म करने के लिए परमात्मा रूपी ज्ञान सूर्य की आवश्यकता होती है । आत्मा के विकर्म रूपी कीचड़े का विनाश किसी भी स्थूल सूक्ष्म साधन द्वारा संभव नहीं क्योंकि कोई भी साधन महातत्व अर्थात भौतिक पञ्च तत्वों के अंतर्गत आता है जिसे उर्जात्मक इथर कहते हैं यहाँ तक कि ब्रह्मतत्व जो स्वयं प्रकाशित इथर है उससे भी आत्मा के विकर्म विनाश नहीं होंगे । चैतन्य आत्मा जो दिव्य लाइट से निर्मित है एक अविनाशी सत्ता है और वह अति सूक्ष्म होने के कारण जब उसका कनेक्शन डायरेक्ट परमधाम में हाईएस्ट चैतन्य दिव्य ज्योति से होता है जो सदा सत्य सदा पावन सदा सर्वशक्तिमान है तब उससे उत्पन्न योगाग्नि ही जन्मजन्मान्तर के पाप व विकर्मों को भस्म करने में समर्थ होती है । जब आत्मा परमधाम में केवल एक विचार में स्थित रहती है तो highest stable state में रहती है जिसे ही delta state भी कहते हैं । इस अवस्था में आत्मा supreme power house परमात्मा से अधिकतम ऊर्जा ग्रहण करती है जिससे विकर्म विनाश होता है । इसे ही ज्वालामुखी योग भी कहते हैं ।

जिम्मेवारी और ज्वालामुखी स्थिति       

 आपकी जिम्मेवारी क्या है ? बाप के बजाए अपनी जिम्मेवारी समझ लेते हैं तो माथा भारी होता है। बाप सर्व शक्तिवान मेरा साथी है तो क्या भारीपन होगा। छोटी सी गलती कर देते हो, मेरी जिम्मेवारी समझते हो तो माथा भारी होता है। तो ब्राह्मण जीवन ही नाचो गाओ और मौज करो। सेवा चाहे वाचा है चाहे कर्मणा। यह सेवा भी एक खेल है। दिमाग के खेल में दिमाग भारी होता है क्या। तो यह सब खेल करते हो। तो चाहे कितना भी बड़ा सोचने का काम हो, अटेन्शन देने का काम हो लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा के लिए सब खेल है।

▪️ अभी निर्भय ज्वालामुखी बन प्रकृति और आत्माओं के अंदर जो तमोगुण है उसे भस्म करो। तपस्या अर्थात ज्वाला स्वरूप याद, इस याद द्वारा ही माया व प्रकृति का विकराल रूप शीतल हो जाएगा। आपका तीसरा नेत्र, ज्वालामुखी नेत्र माया को शक्तिहीन कर देगा।

▪️ ज्वाला स्वरूप याद के लिए मन और बुद्धि दोनों को एक तो पावरफुल ब्रेक चाहिए और मोड़ने की भी शक्ति चाहिए। इसमें बुद्धि की शक्ति वा कोई भी एनर्जी वेस्ट ना होकर जमा होती जाएगी। जितनी जमा होगी उतना ही परखने की, निर्णय करने की शक्ति बढ़ेगी। इसके लिए अब संकल्पों का बिस्तर बंद करते चलो अर्थात समेटने की शक्ति धारण करो।

Om Shanti...



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Jwalamukhi Yog (Hindi) - PlayList


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लवलीन स्थिति का अनुभव करो - Lavleen Sthithi Ka Anubhaw - Brahma Kumaris - Avyakt Ishare

लवलीन स्थिति का अनुभव करो



बाबा कहते, यह स्नेह में समाना भी समान बनना है। भक्तों ने इस स्नेह में समाने की स्थिति के लिए ही कहा है कि आत्मा परमात्मा में समा जाती है। तो आओ, हम सभी पूरा ही मास उस लवलीन स्थिति में समाने का अनुभव करें

1. प्यार के सागर बाप के साथ मिलन मनाते प्यार से बाबा कहो और उसी प्यार में समा जाओ। लगन में मगन हो जाओ। यह लवलीन स्थिति और सब बातों को सहज समाप्त कर देगी।


2. आप लवलीन बच्चों का संगठन ही बाप को प्रत्यक्ष करेगा। संगठित रूप में अभ्यास करो, मैं बाबा का, बाबा मेरा। सब संकल्पों को इसी एक शुद्ध संकल्प में समा दो। एक सेकण्ड भी इस लवलीन अवस्था से नीचे नहीं आओ।


3. आपके नयनों में और मुख के हर बोल में बाप समाया हुआ हो। तो आपके शक्तिशाली स्वरूप द्वारा सर्वशक्तिवान नज़र आयेगा। जैसे आदि स्थापना में ब्रह्मा रूप में श्रीकृष्ण दिखाई देता था, ऐसे अभी आप बच्चों द्वारा सर्वशक्तिवान् दिखाई दे।


4. बाप के प्यार में ऐसे समा जाओ जो मैं पन और मेरा पन समाप्त हो जाए। नॉलेज के आधार से बाप की याद में समाये रहो तो यह समाना ही लवलीन स्थिति है, जब लव में लीन हो जाते हो अर्थात् लगन में मग्न हो जाते हो तब बाप के समान बन जाते हो।


5. जैसे कोई सागर में समा जाए तो उस समय सिवाय सागर के और कुछ नज़र नहीं आयेगा। ऐसे आप बच्चे सर्व-गुणों के सागर में समा जाओ। बाप में नहीं समाना है, लेकिन बाप की याद में, स्नेह के सागर में समा जाना है।


6. देह की स्मृति से ऐसे खोये हुए रहो जो देह-भान का, दिन-रात का, भूख और प्यास का, सुख के, आराम के साधनों का किसी भी बात के आधार पर जीवन न हो, तब कहेंगे लव में लवलीन स्थिति। जैसे शमा ज्योति-स्वरूप है, लाइट माइट रूप है, ऐसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रूप बन जाओ।


7. त्यागी और तपस्वी आत्मायें सदा बाप की लगन में मगन रहती हैं। वे प्रेम के सागर, ज्ञान, आनन्द, सुख, शान्ति के सागर में समाई हुई रहती हैं। ऐसे समाने वाले बच्चे ही सच्चे तपस्वी हैं। उनसे हर बात का त्याग स्वत: हो जाता है।


8. जैसे लौकिक रीति से कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है, आशिक है। ऐसे आपके अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज हो तो आपके बोल औरों को भी स्नेह में घायल कर देंगे।


9. यह परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में सदा झूलते रहो, परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती।


10. परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है – न्यारा बनना। जितना न्यारा बनेंगे उतना परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त होगा। ऐसी न्यारी प्यारी आत्मायें ही लवलीन स्थिति का अनुभव कर सकती हैं।


11. जितना बेहद की प्राप्तियों में मगन रहेंगे उतना हद की आकर्षण से परे रह परमात्म प्यार में समाने का अनुभव करेंगे। आपकी यह लवलीन स्थिति वातावरण में रूहानियत की खुशबू फैलायेगी।


12. बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो रोज़ प्यार का रेसपान्ड देने के लिए इतना बड़ा पत्र लिखते हैं। यादप्यार देते हैं और साथी बन सदा साथ निभाते हैं, तो इस प्यार में अपनी सब कमजोरियां कुर्बान कर समान स्थिति में स्थित हो जाओ।


13. बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो सदा कहते बच्चे जो हो, जैसे हो – मेरे हो। ऐसे आप भी सदा प्यार में लवलीन रहो, दिल से कहो बाबा जो हो वह सब आप ही हो। कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में नहीं आओ, अपने सत्य स्वरूप में स्थित रहो।


14. जो प्यारा होता है, उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है। सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा – तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। और नि:स्वार्थ प्यार सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता इसलिए कभी मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो।


15. परमात्म-प्यार के अनुभव में सहजयोगी बन उड़ते रहो। परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन है। उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते। माया का कितना भी आकर्षित रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती।


16. यह परमात्म प्यार ऐसा सुखदाई प्यार है जो इस प्यार में एक सेकण्ड भी खो जाओ तो अनेक दु:ख भूल जायेंगे और सदा के लिए सुख के झूले में झूलने लगेंगे।


17. बाप का आप बच्चों से इतना प्यार है जो जीवन के सुख-शान्ति की सब कामनायें पूर्ण कर देते हैं। बाप सुख ही नहीं देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं। साथ-साथ श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी देते हैं, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो – यही परमात्म प्यार है। इसी प्यार में समाये रहो।


18. बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो अमृतवेले से ही बच्चों की पालना करते हैं। दिन का आरम्भ ही कितना श्रेष्ठ होता है! स्वयं भगवन मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रुहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! बाप की मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं – मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ…..। तो इस प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप ‘सहज योगी जीवन’ का अनुभव करो।


19. परमात्म प्यार में सदा लवलीन, खोये हुए रहो तो चेहरे की झलक और फ़लक, अनुभूति की किरणें इतनी शक्तिशाली होंगी जो कोई भी समस्या समीप आना तो दूर लेकिन आंख उठाकर भी नहीं देख सकती। किसी भी प्रकार की मेहनत अनुभव नहीं होगी।


20. जिससे प्यार होता है, उसको जो अच्छा लगता है वही किया जाता है। तो बाप को बच्चों का अपसेट होना अच्छा नहीं लगता, इसलिए कभी भी यह नहीं कहो कि क्या करें, बात ही ऐसी थी इसलिए अपसेट हो गये… अगर बात अपसेट की आती भी है तो आप अपनी स्थिति अपसेट नहीं करना।


21. बापदादा का बच्चों से इतना प्यार है जो समझते हैं हर एक बच्चा मेरे से भी आगे हो। दुनिया में भी जिससे ज्यादा प्यार होता है उसे अपने से भी आगे बढ़ाते हैं। यही प्यार की निशानी है। तो बापदादा भी कहते हैं मेरे बच्चों में अब कोई भी कमी नहीं रहे, सब सम्पूर्ण, सम्पन्न और समान बन जायें।


22. आदिकाल, अमृतवेले अपने दिल में परमात्म प्यार को सम्पूर्ण रूप से धारण कर लो। अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियाँ, परमात्म ज्ञान फुल होगा तो कभी और किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता।


23. बाप से सच्चा प्यार है तो प्यार की निशानी है – समान, कर्मातीत बनो। ‘करावनहार’ होकर कर्म करो, कराओ। कर्मेन्द्रियां आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ। कभी भी मन-बुद्धि वा संस्कारों के वश होकर कोई भी कर्म नहीं करो।


24. जिस समय जिस सम्बन्ध की आवश्यकता हो, उसी सम्बन्ध से भगवान को अपना बना लो। दिल से कहो मेरा बाबा, और बाबा कहे मेरे बच्चे, इसी स्नेह के सागर में समा जाओ। यह स्नेह छत्रछाया का काम करता है, इसके अन्दर माया आ नहीं सकती।


25. सेवा वा स्वंय की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है – एक बाप से अटूट प्यार। बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे। संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ, ऐसी लवलीन स्थिति में रह एक शब्द भी बोलेंगे तो वह स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बाँध देंगे। ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू मंत्र का काम करेगा।


26. किसी भी बात के विस्तार में न जाकर, विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो, बिन्दी बन जाओ, बिन्दी लगा दो, बिन्दी में समा जाओ तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी और समय बच जायेगा, मेहनत से छूट जायेंगे। बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे। कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो।


27 लवलीन स्थिति वाली समान आत्मायें सदा के योगी हैं। योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन। अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे! स्वत: याद है ही। जहाँ साथ होता है तो याद स्वत: रहती है। तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है, समाये हुए रहने की है।


28. जब मन ही बाप का है तो फिर मन कैसे लगायें! प्यार कैसे करें! यह प्रश्न ही नहीं उठ सकता क्योंकि सदा लवलीन हैं, प्यार स्वरूप, मास्टर प्यार के सागर बन गये, तो प्यार करना नहीं पड़ता, प्यार का स्वरूप हो गये। जितना-जितना ज्ञान सूर्य की किरणें वा प्रकाश बढ़ता है, उतना ही ज्यादा प्यार की लहरें उछलती हैं।


29. परमात्म प्यार इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म का आधार है। कहते भी हैं प्यार है तो जहान है, जान है। प्यार नहीं तो बेजान, बेजहान है। प्यार मिला अर्थात् जहान मिला। दुनिया एक बूँद की प्यासी है और आप बच्चों का यह प्रभु प्यार प्रापर्टी है। इसी प्रभु प्यार से पलते हो अर्थात् ब्राह्मण जीवन में आगे बढ़ते हो। तो सदा प्यार के सागर में लवलीन रहो।


30. कर्म में, वाणी में, सम्पर्क व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में लवलीन रहना है, जो जितना लवली होगा, वह उतना ही लवलीन रह सकता है। अभी आप बच्चे बाप के लव में लवलीन रह औरों को भी सहज आप-समान व बाप-समान बना देते हो।


31. समय प्रमाण लव और लॉ दोनों का बैलेन्स चाहिए। लॉ में भी लव महसूस हो, इसके लिए आत्मिक प्यार की मूर्ति बनो तब हर समस्या को हल करने में सहयोगी बन सकेंगे। शिक्षा के साथ सहयोग देना ही आत्मिक प्यार की मूर्ति बनना है। 

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Jeevan Me Kya Kya Vikaram Hota Hain? - जीवन में क्या क्या विकर्म होता है ?

 जीवन में क्या क्या विकर्म होता है ? 


🙈 व्यर्थ ओर नेगेटिव चीज़े देखना।


🙉 व्यर्थ, परचिन्तन ओर नेगेटिव बाते सुनना।


🙊 व्यर्थ, परचिन्तन ओर नेगेटिव बाते करना।


  • कटुवचन ओर झूट बोलना।
  • बाबा से कुछ भी छिपाना।
  • बाबा को उल्हना देना।
  • अपना दोष दूसरों पर लगाना।
  • स्वचिन्तन के बदले परचिन्तन ओर स्वदर्शन के बदले परदर्शन करना।
  • अपनी गलती को किसी भी तरह से सही साबित करना। स्तय को छिपाना।
  • दूसरों को शारीरिक दृष्टि से देखना, आत्मिक दृष्टि से न देखना।
  • थोड़ा बहुत झूट तो चलता है यह सोचना।
  • दूसरों को आगे बढ़ते हुए देख जलना।
  • दूसरों को बद्दुआ देना।
  • किसी को दुख देना और दुख लेना।
  • बाबा के घर से कुछ भी बिन कहे उठा लेना।
  • व्यर्थ चिंतन और बाते करते हुए भोजन करना।
  • अमृतबेला न करना।
  • मुरली मिस करना या मुरली में रुचि न रखना।
  • स्वार्थ वश सेवा करना।
  • बाबा को धन्यवाद कर खिलाए बिना कुछ भी खा लेना।
  • सगे संबंधियों में मोह रखना।
  • बाबा को सारा दिन का चार्ट न देना।
  • बात बात पर फिलिंग में आना।
  • ज्ञान चिंतन न करना।
  • बाबा के निमित्त को सम्मान न करना।
  • दूसरों की ग्लानि करते रहना।
  • ज्ञान की धारणा न करना।
  • क्रोध करना।
  • दूसरों को मैनिपुलेट करना अर्थात दूसरों को अपने जरूरत के अनुसार इस्तेमाल करना।
  • लोभ करना।
  • हद की इच्छाएं रखना।
  • मन, वचन और कर्म भिन्न रूप होना।
  • दुनियावी चीज़ों के प्रति आकर्षित होना।
  • बाबा को डोंट केअर करना।
  • श्रीमत को न मानना।
  • झरमुई झंगमुई में समय बिताना।
  • बाबा से न कर मनुष्यों से मन की बाते शेयर करना।

Hindi Diwas Ka Mahatwa - Hindi Diwas 2022

 ☆~☆~☆ आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई ☆~☆~☆







Early Morning Good Thoughts For Happy Days - Subah Ke Chhah Sankalp - Positive Thoughts

 "अमृतवेले" या आंख खुलते ही तुरन्त अपने को यह स्मृति दिलाये



1. मैं आत्मा पदमा पदम सौभाग्यशाली हू।

2. स्वयं भगवान मेरा है ।

3. सारे संसार मे मेरे जैसा भाग्यवान और कोई नही है ।

4. मैं सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मणकुल भूषण हु ।

5. स्वयं भगवान ने मुजे एडॉप्ट किया है ।

6. मैं इस संसार मे सबसे खुश नशीब आत्मा हू ।

7. मैं बाबा के गले का हार हू ।

8. मैं बाबा का दिलरुबा बच्चा हू ।

9. स्वयं भगवान ने मुजे पसन्द किया है ।

10. जो भगवान का है वह मेरा है । मेरा उनपर अधिकार है ।

11. मैं स्वयं भगवान के नयनो का नूर हू।

12. मैं इस जहाँ को रोशनी देने वाला लाईट हाउस हू ।

13. स्वयं भगवान की मुझे डाइरेक्ट पालना मिल रही है ।

14. मैं राजेश्वर अश्वमेघ अविनाशी रुद्र यज्ञ से उत्तपन्न हुई द्रौपदी हू ।

15. मैं ही शिव की सच्ची-सच्ची पार्वती हू।

16. मैं आत्मा स्वयं भगवान की छत्रछाया के नीचे हू।

17. 2500 साल तक मैने देवी देवता का पार्ट प्ले किया ।

18. मंदिरों मे जिनकी पूजा होती है वह मैं हू ।

19. स्वयं भगवान के साथ हर कल्प मे साकार मे मिलन मनाया है ।

20. मैं बाबा का Right Hand हू ।


🔆आप ऐसे ऐसे अपने को याद दिलाये ,अपनी ऐसी बातों को स्मृति मे लाकर बिल्कुल नशे मे आ जाये।अमृतवेले का पूरा सुख ले । अमृतवेला पावरफुल है तो सब कुछ पावरफुल है ।

Subah Subah Ke Chhah Sankalp



Parivar Ko De Aache Vibration

 परिवार के सभी सदस्यों को अच्छे वाइब्रेशन दे, दिल से दुआएं दे।👑

🌸मेरे परिवार के सभी सदस्य परमात्मा के बच्चे है।

🌸मेरे परिवार के सभी सदस्य शांत स्वरूप आत्माएं है।

🌸मेरे परिवार के सभी सदस्य शक्तिशाली बहुत सुखी आत्माएं है।

🌸मेरे परिवार के सभी सदस्य भाग्यशाली आत्माएं है।

🌸मेरे परिवार के सभी सदस्यों के साथ आज से सब कुछ अच्छा होगा।

🌸मेरे परिवार में सब निरोग स्वस्थ आत्माएं है।

🌸मेरे परिवार के सभी सदस्य सदा खुशियों से भरपूर है।

🌸मेरे परिवार परमात्मा दुआओं की छत्रछाया के नीचे सुरक्षित है।

🌸मेरे परिवार के सभी सदस्य दैविगुणो से भरपूर देव आत्माएं है।

🌸मेरा घर स्वर्ग बन चुका है।


याद रखे यह परिवार परमात्मा का बनाया हुआ गार्डन है, हम माली बन कर अच्छे संकल्पों से पानी डालते दे रहे, यह परिवार में जो जैसे भी है प्यार से स्वीकार कर ले और सबको निस्वार्थ प्यार, खुशियां और शुभ भावना देते रहे, आपकी दुआओं से आपका परिवार सदा सुखी स्वर्ग बन जायेगा। आपके अच्छे वाइब्रेशन से कोई विघ्न आने वाला होगा वह भी रुक जायेगा और सभी सदस्य को आंतरिक शक्ति मिलेगी। यह संकल्प ब्रह्मांड में परमात्मा के पास पहुंच जाता है और वही आपके पास लौट कर वापस आता है।

अच्छा ॐ शांति

Sab kuch Aapke Ander Hi Hain - Ek Kahani

 सब कुछ आपके अंदर ही है।



एक आदमी बहुत बड़े संत-महात्मा के पास गया और बोला, ‘हे मुनिवर! मैं राह भटक गया हूँ, कृपया मुझे बताएँ कि सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता कैसे मिलेगी ?

संत ने एक नज़र आदमी को देखा, फिर कहा, "अभी मेरा साधना करने का समय हो गया है। सामने उस तालाब में एक मछली है, उसी से तुम यह सवाल पूछो, वह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे देगी।"

वह आदमी तालाब के पास गया। वहाँ उसे वह मछली दिखाई दी, मछली आराम कर रही थी। जैसे ही मछली ने अपनी आँख खोली तो उस आदमी ने अपना सवाल पूछा।

मछली बोली, "मैं तुम्हारे सवाल का जवाब अवश्य दूँगी किन्तु मैं सोकर उठी हूँ, इसलिए मुझे प्यास लगी है। कृपया पीने के लिए एक लौटा जल लेकर आओ।"

वह आदमी बोला, "कमाल है! तुम तो जल में ही रहती हो फिर भी प्यासी हो?’

मछली ने कहा, "तुमने सही कहा। यही तुम्हारे सवाल का जवाब भी है। *सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता तुम्हारे अंदर ही है। तुम उसे यहाँ-वहाँ खोजते फिरोगे तो वह सब नही मिलेगी, अतः स्वयं को पहचानो।

उस आदमी को अपने सवाल का जवाब मिल गया|

कथा-सार

सुख-शांति, ईमानदारी, पवित्रता व सच्चाई इत्यादि की खोज में मानव कहाँ-कहाँ नही भटकता...क्या..क्या जतन नही करता, फिर भी उसे निराशा ही हाथ लगती है| वह नही जानता, जिसकी खोज में वह भटक रहा है, वह तो उसके भीतर ही मौजूद है| उसकी स्थिति
‘पानी में रहकर मीन प्यासी’, 
"कस्तूरी कुंडल बसै मृग ढूंढे वन माहि" 
जैसी हो जाती है|
          Om shanti 🙏🏻

Aatma Aur Sharir Ke 50+ Sambandh

 आत्मा और शरीर के 50+ सम्बन्ध



50+ Differences between Body and Soul

आत्म अभिमानी (SOUL conscious) बनने के लिए आत्मा और शरीर का सम्बन्ध (वा अन्तर) अच्छे से समझना बहुत आवश्यक है… तो आज 52 पॉइन्ट्‍स आत्मा और शरीर के अन्तर पर देखते हैं!


आत्मा और शरीर का मुख्य अन्तर


मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है !

मैं आत्मा रूहानी हूँ, शरीर जिस्मानी है ! 

मैं  एक हूँ, शरीर अनेक लिए हैं !

मैं ऊपर से आई हूँ, शरीर यहाँ बना है !

मैं सूक्ष्म हूँ, शरीर स्थूल है !

मैं चैतन्य हूँ, शरीर जड़ है !

मैं निराकार हूँ, शरीर साकार है !

मैं बिन्दी हूँ, शरीर बड़ा है !

मैं हल्की हूँ, शरीर का वज़न है !

मैं ऊर्जा हूँ, शरीर 5 तत्वों से बना है !

मैं शक्ति (पुरुष) हूँ, शरीर प्रकृति है !

मैं अजर हूँ, शरीर बूढ़ा होता है!

मैं अमर हूँ, शरीर की मृत्यु होती है !

मैं अविनाशी हूँ, शरीर विनाशी है ! 

मैं शाश्वत (Permanent) हूँ, शरीर Temporary है !


*शरीर है निवास स्थान*


मैं मकान मालिक हूँ… शरीर मकान है! 

मैं मूर्ति हूँ… शरीर मन्दिर है !

मैं लाइट हूँ, शरीर House है (अर्थात साथ में Light House) 

मैं मेहमान हूँ, शरीर Temporary Address है !

मैं Actor हूँ, शरीर Costume (चोला) है !

मैं Showpiece हूँ, शरीर Showcase है !

मैं हीरा हूँ, शरीर डिब्बी है !

मैं अमूल्य हूँ, शरीर का फिर भी मूल्य है ! 

मैं फूल हूँ, शरीर गमला है ! 

मैं गुणवान हूँ, शरीर जैसे कि निर्गुण है !

मैं ज्योति हूँ, शरीर मिट्टी का दीपक है !

मैं पंछी हूँ, शरीर घोसला है !


शरीर है वाहन और instrument (यंत्र)


मैं driver हूँ, शरीर car है !

मैं सारथी (वा रथी) हूँ, शरीर रथ है !

मैं करावनहार हूँ, शरीर करनहार है ! 

मैं राजा हूँ, कर्मेन्द्रीयां मन्त्री है !

मैं सेठ हूँ, कर्मेन्द्रीयां कर्मचारी है! 

मैं मालिक हूँ, कर्मेन्द्रीयां नौकर-चाकर है! 

मैं user हूँ, शरीर साधन (मोबाइल आदि) है,!

मैं programmer हूँ, शरीर computer है! 

मैं operator हूँ, शरीर robot है !

मैं बिजली हूँ, शरीर यंत्र है! 

मैं दृशता हूँ, आँखें खिड़की है ! 

मैं speaker हूँ, मुख mic हैं ! 

मैं सुनने वाला हूँ, कान sound-receiver हैं ! 


और पॉइंट्स


मैं आत्मा rocket हूँ |

मैं स्टार (सितारा) हूँ ! 

मैं तिलक-स्वरूप हूँ


***शरीर से ममत्व मिटाने लिए*,*


शरीर पुरानी जुत्ती है !

 शरीर मिट्टी है ! 

शरीर सर्प है, !

मैं उसके सिर पर मणि हूँ !


शरीर दूम्ब है शरीर मुर्दा है शरीर पुराना, विकारी, तमोप्रधान, जड़जड़ीभूत है !


**इस लिस्ट से प्राप्ति****


इन सभी पॉइन्ट्‍स को एक के बाद एक दोहराने से… बहुत अच्छी आत्म-अभिमानी स्थिति बनती है!सारा दिन नैचुरल देही-अभिमानी स्थिति रहतीं हैं ! सेकंड में अशरीरी बन सकते हैं ! देह-भान से बचे रहते हैं ! पुरुषार्थ मैं नवीनता मिलती है


@@##*सार*@@##


तो चलिए आज सारा दिन… इन सभी points को स्मृति में रख नैचुरल आत्म-अभिमानी स्थिति (अर्थात शान्ति, प्रेम और आनन्द के निरन्तर अनुभव!) में स्थित रहे… जिससे हमारा बाबा से कनेक्शन भी मजबूत रहेगा, और हम सबके साथ इन गुणों का अनुभव बांटते रहेंगे… जिससे सहज ही यह संसार स्वर्ग बन जाएगा… 


          **ओम् शान्ति***

भगवान का वायदा! - Bhagwan Ka Wada

 भगवान का वायदा! 



01) चिंता मत करो, मैं सर्व शक्तिमान हूँ, मैं असम्भव को सम्भव बना सकता हूँ | 


02) मेरी नज़र तुम पर गयी, मैं समझता हूँ, तुम्हारे सारे दर्द संघर्ष सब कुछ ठीक हो जायेगा | 


03) किसी भी बात के लिए, परिस्थितियों के कारण खुद को नीचे मत आने दो, क्योंकि परिस्थितियाँ तो थोड़े समय के लिए हैं, लेकिन मैं तो सदा के लिए तुम्हारे साथ हूँ | 


04) एक कदम हिम्मत का बढ़ाओ, मैं तुम्हारी तरफ हज़ार कदम बढ़ाऊंगा | 


05) जो कुछ भी होना था, हो चूका अब आगे बढ़ो मैं तुम्हे शक्ति दूंगा | 


06) तुम कोई भी बोझ लेकर मत चलना, सारे बोझ मुझे देकर तुम हल्के बन जाओ | 


07) हर बात मुझे सौंप निश्चिंत हो जाओ, जिसे तुम हल नहीं कर सकते, मैं सब ठीक कर दूंगा | 


09) रोज़ मुझ से शांति में बैठकर बातें करो, मैं तुम्हे सुनूंगा और तुम्हारी बातों का जवाब भी दूंगा | 


10) अपने सिर पर बोझा लेकर मत चलो, मैं तुम्हारे सारे बोझ संभालूंगा, तुम हल्के हो जाओ | 


11) अगर तुम्हे कोई नहीं समझता है, तो चिंता मत करो क्योंकि मैं तुम्हे समझता हूँ, तुम कभी भी अकेले नहीं हो | 


12) मैं सदा तुम्हारा साथी हूँ, तुम्हे कभी अकेला नहीं छोडूंगा, दूसरों के बारे में कभी नहीं सोचना | 


13) तुम्हारा जीवन आसान बनाने के लिए मैं हमेशा अपने आशीर्वाद तुम तक पहुंचाता रहता हूँ | 


14) कभी भी निराश मत होना, क्योंकि मैं तुम्हे हमेशा, दुसरो में आशा जगाते देखता हूँ | 


15) अपनी पुरानी गलतियों को लेकर शोक मत मनाओ! उन्हें ठीक करके तुम्हारा रास्ता साफ कर दूंगा, मुझ पर विश्वास करो | 


16) मैं खुद तुम्हें गाइड करूंगा और पार ले जाऊंगा, अतः विघ्नों से घबराना नहीं, वो तो सिर्फ रास्ते के पत्थर है, हमें सफलता की ओर ले जाने के लिए | 


17) तुम किसी भी बात का फ़िक्र नहीं करना! मैं सर्व शक्तिवान सदा तुम्हारे साथ हूँ!  तुम्हें जो असम्भव लगता है उसे भी मैं तुम्हारे लिए सम्भव कर दूंगा | 


18) तुम्हारा हर वो बोझ, हर वो फ़िक्र मुझे सौंप दो - जो तुम संभाल नहीं पा रहे हो! मैं सब संभाल लूंगा | 


19) मेरा सुरक्षा का हाथ सदा तुम पर है और तुम सुरक्षित रहोगे ही! इसलिए किसी बात का डर नहीं रखना | 


20) मेरी शक्ति सदा तुम्हारे साथ है ओर मैं तुम्हारे मार्ग को सहज, सरल, सफल कर दूंगा | 


21) तुम्हारा भविष्य बहुत ही सुंदर ओर उज्ज्वल है! मेरा हाथ पकङ कर साथ चलते रहना | 


22) कोई तुम्हारी अच्छाई की पहचाने व न पहचाने, मैं ज़रूर पहचानता हूँ! तुम धीरज रखो, तुम्हारी अच्छाई का फल जरूर मिलेगा | 


23) कोई कुछ भी कहे तुम्हारी ख़ुशी जाने न देना, कल की बातें दिल में नहीं रखना! क्योंकि मैं ही हूँ तुम्हारा भविष्य सुनहरा बनाने वाला | 


24) मैं तुम्हारा सदा का साथी हूँ, तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूगा, इसलिए तुम दूसरों के बारे में सोचो ही नहीं | 




Nashtomoha Smrtisvaroop - नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप - The Last Paper Question

Nashtomoha Smrtisvaroop - नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप - The Last Paper Question

Yeh antim paper ka question, jo baba ne out kar diya hain. Hame check karna hain, ki hamara kha kha moh hain.

Baba ne kha hain, "Nimit hain, jo mila, jaisa mila, jaha bithayege, jo khilayege, jo karayege wahi karege. yeh pahla-pahla sabhi ka wayda hain"

List of 28 baten(Sone ki mahin zanzire) - jisko baba ne second me chhodne ko kha hain.

1.Mera Centre - Nahi - Baba ka centre

2. Mere Student - Nahi - Bebe Ke Students

3. Mere zigyasu - Nahi - Baba ke Zigyasu

4. Mere Madadgar - Nahi - Baba ke Madadgar

5. Mere Ananya - Nahi - Baba ke ananya

6. Mere Sewa Sathi - Nahi - Baba Ke Sewa Sathi

7. Mere Rishte - Nahi - Baba Ke Rishte

8. Meri Area - Nahi - Baba ki Area

9. Mera Yahi Sthan - Nahi - Baba Ka Sthan

10. Mera Naya Makan - Nahi - Baba Ka Naya Makan

11. Mere Bahut Centres - Nahi - Baba Ke Bahut Centres

12. Meri Chiz-Vastu - Nahi - Baba Ki chiz-vastu

13. Mere Sarwa Sadhan - Nahi - Baba Ke Sarwa Sadhan

14. Meri Madogari - Nahi - Baba ki Madogari

15. Meri Dyuti - Nahi - Baba ki Dyuti

16. Mera Hi Kaam - Nahi - Baba Ka Kaam

17. Meri Jimmewari - Nahi - Baba ki Jimmewari

18. Mera Daftar - Nahi - Baba ka Daftar

19. Mera Hi Adhikar - Nahi - Baba ka Adhikar

20. Mera Kamra - Nahi - Baba Ka Kamra

21. Meri Khatiya - Nahi - Baba Ki Khatiya

22. Meri Almari - Nahi - Baba Ki Almari

23. Meri Visheshta - Nahi - Baba Ki Visheshta

24. Mera Gunn - Nahi - Baba Ke Gunn

25. Mera Sewa - Nahi - Baba Ki Sewa

26. Main Hi Kar Raha Hu - Nahi - Baba Hi Kara Raha hain

27. Meri Teacher - Nahi - Baba Ki Bachi(Teacher)

28. Mera Sharir - Nahi - Baba Ka Sharir


29. Mera Bike - Nahi - Baba Ka Bike

30. Mere Bache - Nahi - Baba Ke Bache

31. Mera Ghar - Nahi - Baba Ka Ghar

32. Mera Laptop - Nahi - Baba Ka Laptop

33. Mera Pen - Nahi - Baba Ka Pan

32. Mera Batch - Nahi - Baba Ka Batch

33. Mera Dairy - Nahi - Baba ka Dairy

34. Mera Pencil - Nahi - Baba ka Pencil

35. Mera Printer - Nahi - Baba ka Printer

36. Mera Book - Nahi - Baba Ka Book

37. Mera Business - Nahi - Baba ka Business

38. Mera Cooler - Nahi - Baba ka Cooler

39. Mera Fan - Nahi - Baba Ka Fan

40. Mera Kitchen - Nahi - Baba Ka Kitchen

41. Mera Kanghi - Nahi - Baba ki Kanghi

42. Mera File - Nahi - Baba Ka File

43. Meri Dawa - Nahi - Baba ki dawa

44. Mera Kapra - Nahi - Baba ka Kapra, baba ne diya

45. Mera rumal - Nahi - Baba ka Ruman, baba ne diya

46. Mera ring - nahi - baba ka ring

47. Mera Juta - Nahi - Baba ka juta

48. Mera book - nahi - baba ka book

49. Mera Swabhaw - Nahi - Baba ka Swabhaw

50. Mera Sanskar - Nahi - Baba ke Sanskar

51. Meri Rahan-Sahan - Nahi - Baba ke Rahan-sahan

52. Meri Aadat - Nahi - Baba Ke Aadat

53. Aaram Se Rahna - Nahi - Baba jaise rakhege

54. Aaaram se khana - nahi - baba jo khilayege, jaise khilayege

55. Aaram se chalna - nahi - baba jaise chalayege, jaha le jayege

56. Mera Chappal - Nahi - Mere Baba Ka Chappal

57. Mere Sambandh - Nahi - Mere Baba Ka Sambandh

58. Mera Rishta - Nahi - Mere Baba Ka Rishta


"Achanak order denge aa jao, bas.



About Me - BK Ravi Kumar

I am an MCA, IT Professional & Blogger, Spiritualist, A Brahma Kumar at Brahmakumaris. I have been blogging here.