धर्मराज की अदालत के गंभीर आरोप
1. तुम पर आत्मिक दृष्टि रखने के बजाय दैहिक दृष्टि रखने का आरोप है।
2. पांच विकारों के अंश वंश के वशीभूत होकर विकर्म करने का आरोप है।
3. समय को सेवा में सफल नहीं कर, इधर उधर व्यर्थ की बातों में गंवाने का आरोप है।
4. परचिन्तन, परदर्शन, परमत, प्रपंच में रहकर ब्राह्मण जीवन के महत्व को नहीं समझने का आरोप है।
5. दूसरों को सुख देने के बजाय दुःख देने, कटु वचन बोलने, टोंट कसने का आरोप है।
6. समय होते हुए भी बाप को याद नहीं करने और सेवा नहीं करने का आरोप है।
7. दूसरों का कल्याण करने के बजाय उनका अकल्याण करने का गंभीर आरोप है।
8. मुरली नहीं सुनने और ज्ञान का मनन चिन्तन नहीं करने का आरोप है।
9. बाप की याद के बिना ब्रह्मा भोजन ग्रहण करने का आरोप है।
10. ईश्वरीय मर्यादाओं से अनभिज्ञ होकर उनके अनुकूल नहीं चलने का आरोप है।
11. ईश्वरीय यज्ञ की विभिन्न चीजें चोरी करने का आरोप है।
12. साधना का समय छोड़कर साधनों के वश होकर समय को बर्बाद करने का आरोप है।
13. रूहानी याद की यात्रा छोड़कर घुमने फिरने, मौज मस्ती करने का आरोप है।
14. सर्व सम्बन्धों से एक बाप को याद नहीं करने का आरोप है।
15. स्वराज्य अधिकारी रहने के बजाय कर्मेन्द्रियों के अधीन रहने का आरोप है।
16. यज्ञ में दूसरों की उन्नति व पुरुषार्थ में बाधक बनने का आरोप है।
17. वायुमण्डल को मनसा, वाचा, कर्मणा अशुद्ध बनाने का आरोप है।
18. जो सफल कर सकते थे, वह सफल नहीं करने का आरोप है।
19. दूसरों को बाप का परिचय नहीं देने व उन्हें बाप का नहीं बनाने का आरोप है।
20. बाप के वर्से से दूसरों को वंचित रखने और स्वयं भी वंचित रहने का आरोप है।
21. ईश्वरीय वरदानों को समय पर कार्य में नहीं लगाने का आरोप है।
22. समय होते हुए भी विश्व को सकाश नहीं देने का आरोप है।
23. अपने घर को गीता पाठशाला बना सकते थे, लेकिन नहीं बनाने का आरोप है।
24. कुमार/कुमारी होकर भी ईश्वरीय सेवा में मददगार नहीं बनने का आरोप है।
25. ईश्वरीय खजाने प्राप्त करने के बाद भी खुश नहीं रहने का आरोप है।
26. बार-बार माया के विभिन्न रूपों के अधीन होने का आरोप है।
27. स्वयं के व औरों के पापों को याद के बल से भस्म नहीं करने का आरोप है।
28. सत टीचर द्वारा मिले होमवर्क को समय पर नहीं करने का आरोप है।
29. स्वयं की स्थिति को शक्तिशाली एवं सम्पूर्ण निर्विकारी नहीं बनाने का गंभीर आरोप है।
30. अमृत वेला उठकर बाप को याद नहीं करने का आरोप है।
31. देहधारी से प्यार करने का आरोप है।
32. कलियुगी क्षणिक सुख की चाहना रखने का आरोप है।
ऐसे अनेक आरोपों से बचने के लिए अपने आपको चेक और चेंज करना है. स्वयं ही स्वयं का साक्षी बनकर स्वयं के ऊपर आरोप लगाकर स्वयं ही उसका निदान करना है ताकि हम स्वयं को धर्मराज की सजाओं से छुड़ा सकें।
JUST CHECK FOR CHANGE
NOW OR NEVER
ॐ शांति
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