सब कुछ आपके अंदर ही है।
एक आदमी बहुत बड़े संत-महात्मा के पास गया और बोला, ‘हे मुनिवर! मैं राह भटक गया हूँ, कृपया मुझे बताएँ कि सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता कैसे मिलेगी ?
संत ने एक नज़र आदमी को देखा, फिर कहा, "अभी मेरा साधना करने का समय हो गया है। सामने उस तालाब में एक मछली है, उसी से तुम यह सवाल पूछो, वह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे देगी।"
वह आदमी तालाब के पास गया। वहाँ उसे वह मछली दिखाई दी, मछली आराम कर रही थी। जैसे ही मछली ने अपनी आँख खोली तो उस आदमी ने अपना सवाल पूछा।
मछली बोली, "मैं तुम्हारे सवाल का जवाब अवश्य दूँगी किन्तु मैं सोकर उठी हूँ, इसलिए मुझे प्यास लगी है। कृपया पीने के लिए एक लौटा जल लेकर आओ।"
वह आदमी बोला, "कमाल है! तुम तो जल में ही रहती हो फिर भी प्यासी हो?’
मछली ने कहा, "तुमने सही कहा। यही तुम्हारे सवाल का जवाब भी है। *सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता तुम्हारे अंदर ही है। तुम उसे यहाँ-वहाँ खोजते फिरोगे तो वह सब नही मिलेगी, अतः स्वयं को पहचानो।
उस आदमी को अपने सवाल का जवाब मिल गया|
कथा-सार
सुख-शांति, ईमानदारी, पवित्रता व सच्चाई इत्यादि की खोज में मानव कहाँ-कहाँ नही भटकता...क्या..क्या जतन नही करता, फिर भी उसे निराशा ही हाथ लगती है| वह नही जानता, जिसकी खोज में वह भटक रहा है, वह तो उसके भीतर ही मौजूद है| उसकी स्थिति
‘पानी में रहकर मीन प्यासी’,
"कस्तूरी कुंडल बसै मृग ढूंढे वन माहि"
जैसी हो जाती है|
Om shanti 🙏🏻
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