Brahmakumaris Murli Manthan 10 August 2018
"मीठे बच्चे - जिस मात-पिता से तुम्हें बेहद का वर्सा मिलता है उस मात-पिता का हाथ कभी छोड़ना नहीं, पढ़ाई छोड़ी तो छोरा-छोरी बन जायेंगे"
Baba ne aaj kha ki bacche tum baap ke bane ho, baap tumeh khud dhund liya hai koto main koi aur koi main koi se. Aur ham bacche ko baba khub varsha de rahe hai. Ham baccho ka bhi farj hai ki ham bacche ma-baap ka hath kabhi nahi chode nahi toh ham bhi anath ban jayege.
Q- खुशनसीब बच्चों का पुरुषार्थ क्या रहता, उनकी निशानी सुनाओ?
A- जो खुशनसीब बच्चे हैं - वह देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करते हैं। जो सुनते हैं उसका औरों को दान देते हैं। वह शंखध्वनि करने बिगर रह नहीं सकते। धारणा भी तब हो जब दान करें। खुशनसीब बच्चे दिन-रात सेवा में फर्स्टक्लास मेहनत करते हैं। कभी भी धर्मराज से डोंट केयर नहीं रहते। सिर्फ अच्छा-अच्छा खाया, अच्छा-अच्छा पहना, सर्विस नहीं की, श्रीमत पर नहीं चले तो माया बहुत बुरी गति कर देती है।
D- 1) कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को बुद्धि में रख श्रेष्ठ कर्म करने हैं। पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी है।------2) ज्ञान दान करने से ही धारणा होगी इसलिए दान जरूर करना है। कभी भी बाप की आज्ञाओं को डोंटकेयर नहीं करना है।
V- अटेन्शन और चेकिंग की विधि द्वारा व्यर्थ के खाते को समाप्त करने वाले मा. सर्व-शक्तिमान् भव------ब्राह्मण जीवन में व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म बहुत समय व्यर्थ गंवा देते हैं। जितनी कमाई करने चाहो उतनी नहीं कर सकते। व्यर्थ का खाता समर्थ बनने नहीं देता इसलिए सदा इस स्मृति में रहो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ। शक्ति है तो जो चाहे वो कर सकते हैं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन दो। जैसे क्लास के समय वा अमृतवेले की याद के समय अटेन्शन देते हो, ऐसे बीच-बीच में भी अटेन्शन और चेकिंग की विधि अपना लो तो व्यर्थ का खाता समाप्त हो जायेगा।
S- राजऋषि बनना है तो ब्राह्मण आत्माओं की दुआओं से अपनी स्थिति को निर्विघ्न बनाओ।
09-08-2018-Hin
"मीठे बच्चे - बाप आये हैं कलियुग की महफिल में, यह बहुत बड़ी महफिल है, इस महफिल में तुम परवाने शमा पर फिदा हो पावन बनते हो"
Q- यदि बच्चों का पुरुषार्थ अब तक भी चींटी मार्ग का है तो उसका कारण क्या?
A- कई बच्चों में रूठने की आदत है, बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं तो माया नाक-कान से पकड़ लेती है इसलिए पुरुषार्थ आगे नहीं बढ़ता। चींटी मार्ग का ही रह जाता है। बच्चों को मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। सुनकर औरों को सुनाना है। रिज़ल्ट देनी है। जो बच्चे मुरली मिस करते हैं, जिन्हें पढ़ाई का कदर नहीं, वह कभी बख्तावर नहीं बन सकते।
D- 1) शरीर में होते सबसे तैलुक (नाता) तोड़ अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना है। बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है।-----2) पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। मुरली सुननी व पढ़नी है - धारण करने के लिए। एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है।
V- निमित्त और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फास्ट और फर्स्ट नम्बर लेने वाले सफलतामूर्त भव-----सेवा में आगे बढ़ते हुए यदि निमित्त और नम्रचित की विशेषता स्मृति में रहती है तो सफलता स्वरूप बन जायेंगे। जैसे सेवाओं की भाग-दौड़ में होशियार हो ऐसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो, इससे सेवा में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहकर, स्वयं को रूहानी सेवाधारी समझकर सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
S- जो बुद्धि द्वारा सदा ज्ञान रत्नों को धारण करते हैं वही सच्चे होलीहंस हैं।
"मीठे बच्चे - जिस मात-पिता से तुम्हें बेहद का वर्सा मिलता है उस मात-पिता का हाथ कभी छोड़ना नहीं, पढ़ाई छोड़ी तो छोरा-छोरी बन जायेंगे"
Baba ne aaj kha ki bacche tum baap ke bane ho, baap tumeh khud dhund liya hai koto main koi aur koi main koi se. Aur ham bacche ko baba khub varsha de rahe hai. Ham baccho ka bhi farj hai ki ham bacche ma-baap ka hath kabhi nahi chode nahi toh ham bhi anath ban jayege.
Q- खुशनसीब बच्चों का पुरुषार्थ क्या रहता, उनकी निशानी सुनाओ?
A- जो खुशनसीब बच्चे हैं - वह देही-अभिमानी रहने का पुरुषार्थ करते हैं। जो सुनते हैं उसका औरों को दान देते हैं। वह शंखध्वनि करने बिगर रह नहीं सकते। धारणा भी तब हो जब दान करें। खुशनसीब बच्चे दिन-रात सेवा में फर्स्टक्लास मेहनत करते हैं। कभी भी धर्मराज से डोंट केयर नहीं रहते। सिर्फ अच्छा-अच्छा खाया, अच्छा-अच्छा पहना, सर्विस नहीं की, श्रीमत पर नहीं चले तो माया बहुत बुरी गति कर देती है।
D- 1) कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को बुद्धि में रख श्रेष्ठ कर्म करने हैं। पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी है।------2) ज्ञान दान करने से ही धारणा होगी इसलिए दान जरूर करना है। कभी भी बाप की आज्ञाओं को डोंटकेयर नहीं करना है।
V- अटेन्शन और चेकिंग की विधि द्वारा व्यर्थ के खाते को समाप्त करने वाले मा. सर्व-शक्तिमान् भव------ब्राह्मण जीवन में व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ कर्म बहुत समय व्यर्थ गंवा देते हैं। जितनी कमाई करने चाहो उतनी नहीं कर सकते। व्यर्थ का खाता समर्थ बनने नहीं देता इसलिए सदा इस स्मृति में रहो कि मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ। शक्ति है तो जो चाहे वो कर सकते हैं। सिर्फ बार-बार अटेन्शन दो। जैसे क्लास के समय वा अमृतवेले की याद के समय अटेन्शन देते हो, ऐसे बीच-बीच में भी अटेन्शन और चेकिंग की विधि अपना लो तो व्यर्थ का खाता समाप्त हो जायेगा।
S- राजऋषि बनना है तो ब्राह्मण आत्माओं की दुआओं से अपनी स्थिति को निर्विघ्न बनाओ।
09-08-2018-Hin
"मीठे बच्चे - बाप आये हैं कलियुग की महफिल में, यह बहुत बड़ी महफिल है, इस महफिल में तुम परवाने शमा पर फिदा हो पावन बनते हो"
Q- यदि बच्चों का पुरुषार्थ अब तक भी चींटी मार्ग का है तो उसका कारण क्या?
A- कई बच्चों में रूठने की आदत है, बाप से रूठकर पढ़ाई छोड़ देते हैं तो माया नाक-कान से पकड़ लेती है इसलिए पुरुषार्थ आगे नहीं बढ़ता। चींटी मार्ग का ही रह जाता है। बच्चों को मुरलीधर बनने का शौक चाहिए। सुनकर औरों को सुनाना है। रिज़ल्ट देनी है। जो बच्चे मुरली मिस करते हैं, जिन्हें पढ़ाई का कदर नहीं, वह कभी बख्तावर नहीं बन सकते।
D- 1) शरीर में होते सबसे तैलुक (नाता) तोड़ अशरीरी बनने का पुरुषार्थ करना है। बुद्धि से सब कुछ भूल जाना है।-----2) पुरुषार्थ कर सर्विस का सबूत देना है। मुरली सुननी व पढ़नी है - धारण करने के लिए। एक कान से सुन दूसरे से निकालना नहीं है।
V- निमित्त और नम्रचित की विशेषता द्वारा सेवा में फास्ट और फर्स्ट नम्बर लेने वाले सफलतामूर्त भव-----सेवा में आगे बढ़ते हुए यदि निमित्त और नम्रचित की विशेषता स्मृति में रहती है तो सफलता स्वरूप बन जायेंगे। जैसे सेवाओं की भाग-दौड़ में होशियार हो ऐसे इन दो विशेषताओं में भी होशियार बनो, इससे सेवा में फास्ट और फर्स्ट हो जायेंगे। ब्राह्मण जीवन की मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहकर, स्वयं को रूहानी सेवाधारी समझकर सेवा करो तो सफलतामूर्त बन जायेंगे। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।
S- जो बुद्धि द्वारा सदा ज्ञान रत्नों को धारण करते हैं वही सच्चे होलीहंस हैं।
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