छठ पूजा का आध्यात्मिक रहश्य- Brahma Kumaris
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?
☆~☆~☆ छठ पूजन - ज्ञान सूर्य शिव का यादगार ☆~☆~☆
दीपावली के छठे दिन आता छठ पूजा त्योहार
सूर्य की उपासना का पर्व सदाबहार
चार दिन चलने वाला यह उत्सव शानदार
सूर्य की उपासना ज्ञान सूर्य परमात्मा का यादगार
सूर्य कहलाएँ शक्ति और पवित्रता के प्रतीक
जीवन बनाते रोगमुक्त, सशक्त, खुशहाल, स्फटीक
आइए, छठ पूजन के पीछे के जानें रहस्य आध्यात्मिक
और बनाएँ जीवन खुशनुमा, अनुकरणीय एवं स्वर्गिक
धर्म ग्लानि के समय जब छा जाते मानव में पाँच विकार
दिन प्रतिदिन करुणामय होने लगती प्रभु के प्रति हमारी पुकार
तब आना पड़ता परमपिता परमात्मा को एक गुप्त वेश में
धर्म-भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट आत्माओं को बनाने पावन भारत देश में
राजयोग के द्वारा वो मिटाते सर्वव्याप्त पाँच विकार
करते उजियारा विश्व भर में तो दूर हो जाता अंधकार
आत्म ज्योति जागकर, घर-घर में आ जाती सच्ची दीपावली
लक्ष्मी नारायण का होता सुखकारी राज्य, ऋतु भी बड़ी मनभावनी
उनके इन दिव्य कर्तव्यों के कारण, सभी हृदय से व्यक्त करते आभार
उसी ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव के सुंदर कर्तव्यों का छठ पूजन यादगार
आइए, बुराइयों से से रखकर सच्चा उपवास, करें सच्चा ज्ञान स्नान
स्वयं को बनाकर निर्विकारी एवं पवित्र, जागृत करें अपना स्वमान
ज्ञानसूर्य परमात्मा के इस धरती पर साकार रूप में अवतरण और सभी मनुष्य आत्माओं को छठी इंद्री अर्थात जिसको तीसरा नेत्र अथवा दिव्य नेत्र या आत्मिक दृष्टि भी कहते है के मिलने का यादगार है यह छठ महापर्व।
८.दुनिया मे सिर्फ यही एक पर्व है जो शाम से शुरू होकर सुबह तक चलता है।
९.दुनिया मे एकमात्र यह पर्व है जिसमे उगते सूरज के साथ अस्ताचल अर्थात डूबते सूरज की भी पूजा होती है।
१०.यह पर्व परमात्मा के इस साकार सृष्टि पर अवतरण (उगतेसूर्य)का भी यादगार है तो परमात्मा के इस सृष्टि से अपने धाम परमधाम वापस जाने का (ढलते सूर्य)का भी यादगार है।
११.परमपिता परमात्मा शिव बाबा जब इस सृष्टि पर साकार रूप में अवतरित होते है जिसका यादगार शिवरात्रि अथवा शिव जयंती मनाते है। जैसे कि गीता में कहा गया है यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानि भवति भारतः..... अथार्त गीता में परमात्मा ने हम बच्चों से वायदा किया है की इस सृष्टि में जब जब धर्म की अति ग्लानि होगी तब तब मैं सत धर्म की स्थापना और विकर्म और अधर्म का विनाश करने के लिए खुद इस सृष्टि में कल्प-कल्प अर्थात हर 5000 वर्ष के बाद साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा (बूढ़े ब्राह्मण) के तन में प्रवेश कर फिर से इस सृष्टि पर सत धर्म अर्थात सतयुगी दुनिया नई दुनिया की,स्वर्ग की दुनिया की स्थापना करता हूँ, और आत्माओं को पवित्र देवता और इस दुनिया को पावन स्वर्ग बना देता हूं।
तो परमात्मा शिव अर्थात ज्ञान सूर्य परमात्मा अपने उसी वायदे के अनुसार इस सृष्टि पर आकर इस सृष्टि से अज्ञान अर्थात विकारों रूपी कलियुगी रूपी अंधेरी रात्रि,काल रात्रि और रावण राज्य में आकर हम आत्मा रूपी बच्चों को परम ज्ञान अथवा सच्चा गीता ज्ञान सुनाकर दिव्य नेत्र अर्थात 'छठी इन्द्रिय' प्रदान करते हैं।इसलिए ही शास्त्रों में गायन है--ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अंधेर विनाश.....
अर्थात ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव बाबा जब इस सृष्टि पर अवतरित होते है तो आत्माओं को तीसरा नेत्र या छठी इन्द्रिय प्रदान करते है तब इस मनुष्यसृष्टि से अज्ञान का नाश होता है और सद्ज्ञान की या सतयुग की पुनः स्थापना होती है। उसी ज्ञानसूर्य परमात्मा के अवतरण का यादगार है यह *छठ का महापर्व।
इसलिए हम सभी भक्ति मार्ग में परमात्मा का सच्चा परिचय नही होने के कारण अज्ञानता वश ज्ञानसूर्य परमात्मा को भूलकर स्थूल प्रकृति के सूर्य की पूजा आराधना करने लगते हैं और वही हमारी परंपरा बन जाती है। जब परमात्मा इस सृष्टि पर साकार में अवतरित होकर सब धर्मों का विनाश कर एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते है।और उस कार्य को पूरा करने के लिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थापना करते है क्योंकि परमात्मा की इस साकार सृष्टि में इस दुनिया को बदलने के लिए एक साकार माध्यम की आवश्यकता होती है।तब परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा को अपना साकार माध्यम बनाते है जिसका यादगार भक्ति में कहते है कि ब्रह्मा ने सृष्टि रची और ब्रह्मा को ही भागीरथी भी कहते है और कहते है कि भागीरथ ने गंगा लाया, या शिव की जटा से गंगा निकली जिसको भागीरथ ने धरती पे लाया।वास्तव में ये कोई स्थूल पानी की गंगा की बात नही है,इसका आध्यात्मिक रहस्य है कि ज्ञानसूर्य परमात्मा शिव बाबा जब इस धरती पर आते है तब अपने साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा को बनाते है और ब्रह्मा के द्वारा ज्ञान सुनाकर ब्रह्ममुखवंसवाली ब्राह्मण बनाते है और उसी ज्ञान को ब्रह्मकुमारियाँ धारण कर पूरी दुनिया मे परमात्मा का ज्ञान सुनाने का माध्यम अर्थात ज्ञान की गंगा बनती है और प्रजापिता ब्रह्मकुमारि ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थापना होती है और इसके माध्यम से सारे विश्व मे परमात्मा का सच्चा गीता ज्ञान दिया जाता है।परमात्मा के दिये संदेश को ब्रह्मकुमारियाँ अर्थात चैतन्य ज्ञान गंगाओं के द्वारा मानव को पहुचता है।
और पूरे विश्व मे प्रजापिता ब्रह्मकुमारि ही एक ऐसी संस्था है जहाँ आने वाले लोगो को सबसे पहले सात दिन का कोर्स कराया जाता है अर्थात परमात्मा के द्वारा दिया हुआ गीता ज्ञान तीसरा नेत्र प्रदान करने का ज्ञान दिया जाता है।जो मनुष्य इस ज्ञान को 6 छः दिन तक सुन लेता है या जो इस ज्ञान की गंगा में छः दिन डुबकी लगा लेता हैउसका तीसरा नेत्र अथवा छठी इंद्री खुल जाती है,दिव्य नेत्र मिल जाता है जिससे कि उसको आत्मा और *परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है।स्वयं का परिचय हो जाता है और परमात्मा का भी सच्चा परिचय हो जाता है,ज्ञानसूर्य की ज्ञान की रौशनी आत्मा को मिल जाती है।उसके जीवन मे उजाला आ जाता है।उसके बाद फिर सातवें दिन उसे पवित्रता का ज्ञान दिया जाता है क्योंकि परमात्मा कहते है बिना पवित्र बने तुम मेरे स्थापन किये हुए स्वर्ग में नही जा सकते हो। तो इसी के यादगार स्वरूप द्वापर युग से इस पर्व की शुरुआत होती है।
इस पर्व में पवित्रता ,स्वच्छता का विशेष महत्व इसलिए भी है कि परमात्मा जो हमे पवित्रता का पाठ पढ़ाते है और हम बच्चों को पवित्र दुनिया का मालिक बनाते है इसके यादगार में इस पर्व में पवित्रता का भी बड़ा महत्व है।
1.इस पर्व में पवित्रता स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है जैसे कि -इस पर्व में जो भी वस्तु उपयोग में लाया जाता है जैसे कि सुपली आदि सब नया लिया जाता है पुराना उपयोग नही करते है। पकवान के लिए जो भी अन्न होता है उसे पहले कुएँ के पानी से धुलाई करके पीसने वाले मशीन को भी अच्छे से धुलाई सफाई करके ही यूज़ किया जाता है।
2. और स्थूल वस्तु के साथ साथ मन और तन की भी विशेष पवित्रता का ध्यान रखा जाता है जितना किसी और पर्व में नही रखा जाता है। पर्व में व्रत रखने वाली व्रती या व्रत रखने वाला व्रता 3 दिन पूरी तरह उपवास रखते है।इस पर्व में स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से व्रत रखते और आराधना करते हैं।
2.पहले दिन नहाकर खाने से शुरू होता है और अंतिम दिन तो पूरी तरह अन्न और जल दोनों का उपवास रखती है।और घर के कोई भी सदस्य व्रत के पकवान को नही बना सकता है और नही छू सकता है जबतक सूर्य देवता को भोग न यानी अर्ध्य न दे दिया जाय तब तक न कोई खाते हैं और न ही छूते हैं।
3.और इस पर्व में सीजन के सभी फल डाली में डालकर फिर पानी मे खड़े होकर सुर्य देवता को पहले दिन शाम को और अगले दिन सुबह में अर्पण करने के बाद ही वह प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
परमात्मा ने जो मन की और तन की पवित्रता बतलाई है और इस पर्व में सब ध्यान रखा जाता है।जो व्रती होती है वो बिना लहसुन प्याज और बिना नमक का खाना खाती है।
इस पर्व में अस्ताचल यानी डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है क्योंकि परमात्मा जब इस सृष्टि पर नई दुनिया की स्थापना करके वापस अपने परमधाम जाते है तो उसका भी यादगार के रूप में डूबते हुए सूरज की भी पूजा होती है।
इस पर्व में जो लोग अपने कार्य-व्यवहार, धन कमाने या किसी भी कारण से अपने घर से दूर रहते है वो जहाँ तक संभव हो सके अपने पैतृक गांव या घर आकर छठ मनाना चाहते है,छठ करते हैं।
इसका मतलब ये है कि जब इस सृष्टि का या इस कल्प का अंतिम समय होता तब ज्ञान सूर्य परमात्मा स्वयं धरती पर आकर सभी आत्मिक रूपी बच्चों को ज्ञान सूर्य अपने साथ हम आत्माओं का अपना घर परमधाम अपने साथ वापस ले जाते है इसलिए इस पर्व में अपने घर वापस आकर खुशी मनाने की परंपरा है।
वास्तव में यह पर्व ज्ञानसूर्य परमात्मा के अवतरण का यादगार है लेकिन लोग इसको प्रकृति के सूर्य की उपासना के साथ स्थूल रूप में मनाते है।
तो मेरा आप सभी भाई बहनों और माताओं से निवेदन है कि इस पर्व का सच्चा -सच्चा आध्यात्मिक रहस्य जानने के किये अपने नजदीकी ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेंद्र पर अवश्य पहुँचे और ज्ञानसूर्य परमात्मा से अपना सुख- शांति और समृद्धि का वर्सा अवश्य प्राप्त करें।।
पुनः आप सभी भाई बहनों को और आपके परिवार को छठ महापर्व की हार्दिक हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
और आपके सुखमय,सुस्वास्थ मंगलमई जीवन की शुभकामना।
धन्यवाद....
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