गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक रहश्य - Brahma Kumaris
आज दीपोत्सव के चौथे दिन आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं ।
दीपावली की अगली सुबह अर्थात् कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है । गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई । इसे लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं । साथ ही आज से नववर्ष भी शुरू होता है ।
प्रसंगानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के कोप से बचाने के लिए स्वयं एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और सारे ब्रजवासियों को तथा गायों को सुरक्षित रखा । उस समय ब्रजवासियों गोप-गोपियों ने भी अपनी उंगली से सहयोग दिया था ।
इसका वास्तविक अर्थ यह है कि परमपिता परमात्मा शिव धरती पर आ चुके हैं और उनका कर्तव्य सभी आत्माओं को सुख शांति प्रदान कर इस गोवर्धन पर्वत रूपी विश्व का कल्याण करना है । इस कलयुग में विकारी संसार को उठाने में हम अपने पवित्र जीवन रूपी उंगली देकर, स्वर्ग की स्थापना के पहाड़ सरीखे कार्य में सहयोगी बनते हैं । यह त्यौहार हमें आपसी सहयोग की भावना व एकता के गुण को सिखाता है । सहयोग से कठिन से कठिन कार्य भी सहज रुप से हो जाते हैं ।
पुरानी और नई दुनिया के संगम पर नववर्ष का नई दुनिया की नई स्मृतियों को ताजा कर रहा है । आज और कल इन दो शब्दों में समाए हुए इस सृष्टि चक्र में आज हम संगमयुग पर हैं और कल सतयुग में होंगे । भारत फिर से सच्चे अर्थों में (भा = प्रकाश + रत = संपन्न) प्रकाशमान बनेगा जहां हर नर नारी चरित्र संपन्न, गुण संपन्न और प्रसन्नता संपन्न होंगे ।
ऐसे स्वर्णिम भारत को भू पर साकार करने के लिए हम मुश्किलों के बीच मुस्कुराना सीखें । परिस्थितियों को स्वस्थिति से जीते । हम यह न कहें कि किसने ऐसा किया है बल्कि स्वयं करके दिखाएं ।
सृष्टि के महापरिवर्तन से पहले के समय स्थापना का कार्य स्वयं भगवान धूमधाम से करवा रहे हैं इसीलिए एक के हैं और एक हैं एकता की इस दृढ़ भावना के साथ असंभव को संभव कर दिखाएं । संस्कार मिलन की रास द्वारा अलौकिक प्रेम को प्रत्यक्ष करें और कमजोर को भी शक्तियों के पंख देकर ऊंचाइयों की ओर ले चलें ।
परिवर्तन की इस वेला में आप सभी को नववर्ष की, नवयुग की, पुरुषार्थ में नवीनता की, सेवा की नवीन योजनाओं की बहुत-बहुत मुबारक हो ।
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