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Yogi food - Food For Spirituality

Yogi food - Food For Spirituality

I just wondered to watch these three videos of a Rajyogi Dr. BK Sachin Bhai who is from Brahma Kumaris. He is telling about a yogi food. What should a yogi eat?

There is a very easy food for yogi. There is no labor for yogi food. 

एक योगी का भोजन || Part-1 || Bhojan ke 4 Dosh || भोजन के ४ दोष || Class on food by BK Dr Sachin bhai



एक योगी का भोजन || Part-2 || RAW diet || Powerful Class on Food by BK Dr Sachin Bhai



एक योगी का भोजन || Part-3 || स्वास्थ्य और भोजन || Powerful Class on Food by BK Dr Sachin Bhai





10 Pearls Of Meditation

Meditation is a link with God to become pure and powerful. It is also an inner introspection and visualization of the spiritual self or soul and the Supreme Being or God. We become stable, more loving and completely peaceful by learning to meditate and practicing it regularly in the day and everyday.


We are sharing in this message a beautiful collection of 10 different pearls of meditation. Every pearl is a rich inner experience that will bring us closer to the Supreme and make our life valuable and filled with goodness and strength.


1. Experience for 1 minute every hour with the inner eye of wisdom, the soul - a beautiful sparkling star of radiant light just above the eyebrows and radiate the qualities of peace, love and joy in the form of white light to everyone.

2. Remind yourself 10 times in the day – I am the child of God - the sun of spiritual wisdom. I travel into his rays, I connect, I absorb and I radiate his light and might into the universe and remove the darkness of negativity.

3. Sit with God every morning in the world of pure and deep silence – the soul world and experience the deep peace of God - the Ocean of peace and stillness. Clean the soul of inner hurt and pain and make it powerful.

4. Talk to yourself a few times in the day – I am a being of bliss and contentment. I look upwards and feel God’s rays of bliss falling on me. I bathe in these rays and they wash away my impurities like hatred and jealousy for others.

5. Look in the mirror of God’s remembrance everyday and make yourself beautiful with all qualities and powers. You are a reflection of God’s goodness. Look at others with the vision of this goodness and they will also become beautiful.

6. Talk to God all the time. Tell him – You are my most valuable friend and companion. You are with me at every step. I hold your hand, I experience your blessings, I feel I am in your heart and I forget all my sorrows and difficulties.

7. Whenever you feel stressed, call God down from the soul world. Experience the Supreme Being of Light in your home, at your workplace, radiating his rays of power all around and making the atmosphere charged with positivity.

8. Every hour travel to God in the vehicle of soul consciousness and sit in front of him in the soul world. Unburden yourself, tell him your problems, take his guidance and experience his love. Become light and relaxed.

9. Your remembrance of God is a light house for the world. Visualize every evening for a few minutes – I am an angel of goodness and strength. I travel the entire world with God, radiating his light of qualities to everyone.

10. Express your love to God before sleeping. Write a letter to him. Connect with him through different relationships and sleep in his lap of the light of love, completely secure and protected from the world’s negativity.

बच्चे खाना नहीं खा रहे है तो क्या वाइब्रेशन दे? - Bk Shivani

 ❉ ज़ब लोग और परिस्थिति हमारे समान नहीं होती तो हमें गुस्सा आता हैं हमारा मन उदास होता हैं ज़ब ये हमारे अनुसार होते हैं तो हम खुश होते हैं।

❉ आज Parents अपने बच्चों को सब कुछ देना चाहते हैं दे रहे हैं वो बच्चे ज़ब बड़े होते हैं वो तो ये सोच भी नहीं सकते कि लोग और परिस्थितियाँ एक समय पर हमारे साथ भी हो सकती हैं और किसी समय नहीं भी क्योंकि उन्हें तो हमेशा सब कुछ मिलता रहा हैं और फिर ये आगे चलकर एक बीमारी का रूप ले लेती हैं।

❉ ज़ब वो बच्चा ऐसे वातावरण मे जाता हैं जहाँ लोग और परिस्थितियाँ उसके अनुसार नहीं होंगी तो वो बाहर तो कुछ नी कर पायेगा और अंदर अपने मन को शांत नहीं कर पायेगा क्योंकि उसे तो इन सबकी आदत ही नहीं हैं।

❉ आज हम बच्चों को वो दे रहे हैं जो वो चाहते हैं पर Parents को ध्यान देने कि जरूरत हैं उसे जीवन में हर चीज वो नहीं मिलेगी जो वो चाहते हैं ये हम अपने जीवन मे देख सकते हैं।

❉ हमारे जीवन में हर रोज वो परिस्थितियाँ नहीं आती जो हम चाहते हैं क्या उस बच्चे के अंदर वो ताकत होगी उस Situation को Face करने की जहाँ सामने वाला वैसा नहीं होगा जैसा वो चाहता हैं।

❉ अगर ऐसी कोई आदत हैं जो बच्चे के लिए ठीक नहीं हैं (जैसे अगर बच्चा Mobile चलाते-चलाते खाना खाता हैं उसके बिना नहीं खाता हैं तो Parents यही सोचते हैं की कम से कम कुछ खा तो रहा हैं धीरे-धीरे ये उसकी आदत बन जाती हैं पर ये आदत उसे कौन डालता हैं Parents ही ना वो थोड़ा सा Effort करने की बजाए Easy वे Choose कर लेते हैं चलो ऐसे ही सही खा रहा हैं ये आदत उसकी आगे जाकर उसे कितना नुकसान करेगी) Parents को खुद Effort करना हैं की ये आदत तो इसकी जानी ही हैं।

❉ एक बहुत ही Powerfull Thought अपने बच्चे के लिए आज से ये बच्चा बिना इस चीज के खाना खायेगा खाना खा रहा हैं बहुत प्यार से खा रहा हैं हमें ये आशीर्वाद देनी हैं।

❉ आज Parents कहते ही यही हैं हमारा बच्चा तो इसके बिना खाता ही नहीं हैं Vibration's क्या दे रहे हैं उस बच्चे को ये तो Check करें अब Parents को अपनी ये Thought Change करनी हैं और भोजन बनाते समय उस भोजन मे Vibration's डालनी है इसके लिए ये Thought Create करने हैं मेरा बच्चा तो बहुत प्यार से खाना खाता हैं खा रहा हैं, इस चीज के बिना खाना खा रहा हैं हर तरह की सब्जी खा रहा हैं।

❉ Parents ने आज ये Believe System ही Create कर लिया हैं हमारा बच्चा तो इसके बिना खाता ही नहीं हैं पहले ही Negativity Create कर देते हैं इस Believe System को Change करना हैं अच्छे Vibration's Create करने हैं भोजन बनाते समय देते समय तभी वो आदत खत्म होंगी।

Understanding Children: Part 4: BK Shivani (English Subtitles)







छठ पूजा का आध्यात्मिक रहश्य- Chhath Puja Ka Adhyatik Rahashya - Brahma Kumaris

 छठ पूजा का आध्यात्मिक रहश्य- Brahma Kumaris

छठ पूजा क्यों मनाया जाता है?

☆~☆~☆ छठ पूजन - ज्ञान सूर्य शिव का यादगार ☆~☆~☆
दीपावली के छठे दिन आता छठ पूजा त्योहार
सूर्य की उपासना का पर्व सदाबहार
चार दिन चलने वाला यह उत्सव शानदार
सूर्य की उपासना ज्ञान सूर्य परमात्मा का यादगार
सूर्य कहलाएँ शक्ति और पवित्रता के प्रतीक
जीवन बनाते रोगमुक्त, सशक्त, खुशहाल, स्फटीक
आइए, छठ पूजन के पीछे के जानें रहस्य आध्यात्मिक
और बनाएँ जीवन खुशनुमा, अनुकरणीय एवं स्वर्गिक
धर्म ग्लानि के समय जब छा जाते मानव में पाँच विकार
दिन प्रतिदिन करुणामय होने लगती प्रभु के प्रति हमारी पुकार
तब आना पड़ता परमपिता परमात्मा को एक गुप्त वेश में
धर्म-भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट आत्माओं को बनाने पावन भारत देश में
राजयोग के द्वारा वो मिटाते सर्वव्याप्त पाँच विकार
करते उजियारा विश्व भर में तो दूर हो जाता अंधकार
आत्म ज्योति जागकर, घर-घर में आ जाती सच्ची दीपावली
लक्ष्मी नारायण का होता सुखकारी राज्य, ऋतु भी बड़ी मनभावनी
उनके इन दिव्य कर्तव्यों के कारण, सभी हृदय से व्यक्त करते आभार
उसी ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव के सुंदर कर्तव्यों का छठ पूजन यादगार
आइए, बुराइयों से से रखकर सच्चा उपवास, करें सच्चा ज्ञान स्नान
स्वयं को बनाकर निर्विकारी एवं पवित्र, जागृत करें अपना स्वमान

छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्तव


ओम शांति।ओम शांति।

🌞🙏🌝👏🌞🙏 आइये आज जानते है 4 दिवसीय लोक आस्था का महापर्व 'छठ पर्व' का आध्यात्मिक रहस्य----- छठी इन्द्रिय जागृति यानी परमपिता परमात्मा द्वारा छठी इन्द्रिय जिसको six sence ,तीसरा नेत्र, दिव्य चक्षु ,बुद्धि का नेत्र या आत्मीक नेत्र भी कहते है इसकी जागृति,अथवा दिव्य नेत्र मिलने का यादगार इस *छठ महापर्व की सभी देशवासियों को बहुत बहुत बधाई। छठ महापर्व का आध्यात्मिक रहस्य १.चढ़ते सूरज को प्रणाम करने वाली पूजा करने वाली दुनिया मे भारत ही ऐसा एकमात्र देश है उस देश मे भी छठ ऐसा पर्व है जिसमें ढलते सूर्य को भी पूरी कृतज्ञता के साथ अर्ध्य देने की परंपरा है। २. 4 दिनों तक तक चलने वाली छठ महापर्व बिहार,झारखंड और पूर्वांचल का सबसे बड़ा पर्व है ।परन्तु आज यह पर्व विश्वव्यापी हो गया है।बिहार,झारखंड, बंगाल,पूर्वी उत्तरप्रदेश, दिल्ली में रहने वाले लोग चाहे विश्व के किसी भी कोने में रहते हो वहाँ पे परिवार के साथ इस पर्व को अवश्य मनाते है ।परन्तु उनको देखकर वहाँ के बहुत सारे लोगो ने भी अब ये पर्व मनाने लगे है। ३.भारत में यही एकमात्र पर्व है जो 4 दिनों तक चलता है इसलिए इस पर्व को महापर्व कहा जाता है। ४.भारत का एकमात्र पर्व जिसमे सभी वर्ग जाती के लोग समान रूप से भाग लेते हैं और जिसमें किसी पंडित, पुजारी, पुरोहित की कोई आवश्यकता नहीं है। जनमानस बिना किसी पंडित पुरोहित के स्वयं ज्ञान सूर्य परमात्मा की आराधना, भक्ति, पूजा खुद के भावना, भक्ति,आस्था से करता है। ५.यह दुनिया का एकमात्र पर्व है जिसमे किसी आधुनिक सामग्री की संलग्नता नहीं होती पूजा की जितनी भी सामग्री है सब उस समय खेतों से सहज प्राप्त होने वाले वस्तु,फल, सब्जी आदि होती है। ६.दुनिया का एकमात्र पर्व जो सीधे प्रकृति से मनुष्य को जोड़ता है। ७.दुनिया का एकमात्र पर्व जिसमे सम्पूर्ण शुद्धता, पवित्रता, और सात्विकता होती है। छठी इन्द्रिय जागृति का यादगार है यह छठ महापर्व।
ज्ञानसूर्य परमात्मा के इस धरती पर साकार रूप में अवतरण और सभी मनुष्य आत्माओं को छठी इंद्री अर्थात जिसको तीसरा नेत्र अथवा दिव्य नेत्र या आत्मिक दृष्टि भी कहते है के मिलने का यादगार है यह छठ महापर्व।

८.दुनिया मे सिर्फ यही एक पर्व है जो शाम से शुरू होकर सुबह तक चलता है। ९.दुनिया मे एकमात्र यह पर्व है जिसमे उगते सूरज के साथ अस्ताचल अर्थात डूबते सूरज की भी पूजा होती है। १०.यह पर्व परमात्मा के इस साकार सृष्टि पर अवतरण (उगतेसूर्य)का भी यादगार है तो परमात्मा के इस सृष्टि से अपने धाम परमधाम वापस जाने का (ढलते सूर्य)का भी यादगार है। ११.परमपिता परमात्मा शिव बाबा जब इस सृष्टि पर साकार रूप में अवतरित होते है जिसका यादगार शिवरात्रि अथवा शिव जयंती मनाते है। जैसे कि गीता में कहा गया है यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानि भवति भारतः..... अथार्त गीता में परमात्मा ने हम बच्चों से वायदा किया है की इस सृष्टि में जब जब धर्म की अति ग्लानि होगी तब तब मैं सत धर्म की स्थापना और विकर्म और अधर्म का विनाश करने के लिए खुद इस सृष्टि में कल्प-कल्प अर्थात हर 5000 वर्ष के बाद साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा (बूढ़े ब्राह्मण) के तन में प्रवेश कर फिर से इस सृष्टि पर सत धर्म अर्थात सतयुगी दुनिया नई दुनिया की,स्वर्ग की दुनिया की स्थापना करता हूँ, और आत्माओं को पवित्र देवता और इस दुनिया को पावन स्वर्ग बना देता हूं।

तो परमात्मा शिव अर्थात ज्ञान सूर्य परमात्मा अपने उसी वायदे के अनुसार इस सृष्टि पर आकर इस सृष्टि से अज्ञान अर्थात विकारों रूपी कलियुगी रूपी अंधेरी रात्रि,काल रात्रि और रावण राज्य में आकर हम आत्मा रूपी बच्चों को परम ज्ञान अथवा सच्चा गीता ज्ञान सुनाकर दिव्य नेत्र अर्थात 'छठी इन्द्रिय' प्रदान करते हैं।इसलिए ही शास्त्रों में गायन है--ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अंधेर विनाश..... अर्थात ज्ञान सूर्य परमात्मा शिव बाबा जब इस सृष्टि पर अवतरित होते है तो आत्माओं को तीसरा नेत्र या छठी इन्द्रिय प्रदान करते है तब इस मनुष्यसृष्टि से अज्ञान का नाश होता है और सद्ज्ञान की या सतयुग की पुनः स्थापना होती है। उसी ज्ञानसूर्य परमात्मा के अवतरण का यादगार है यह *छठ का महापर्व।

इसलिए हम सभी भक्ति मार्ग में परमात्मा का सच्चा परिचय नही होने के कारण अज्ञानता वश ज्ञानसूर्य परमात्मा को भूलकर स्थूल प्रकृति के सूर्य की पूजा आराधना करने लगते हैं और वही हमारी परंपरा बन जाती है। जब परमात्मा इस सृष्टि पर साकार में अवतरित होकर सब धर्मों का विनाश कर एक आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करते है।और उस कार्य को पूरा करने के लिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थापना करते है क्योंकि परमात्मा की इस साकार सृष्टि में इस दुनिया को बदलने के लिए एक साकार माध्यम की आवश्यकता होती है।तब परमात्मा प्रजापिता ब्रह्मा को अपना साकार माध्यम बनाते है जिसका यादगार भक्ति में कहते है कि ब्रह्मा ने सृष्टि रची और ब्रह्मा को ही भागीरथी भी कहते है और कहते है कि भागीरथ ने गंगा लाया, या शिव की जटा से गंगा निकली जिसको भागीरथ ने धरती पे लाया।वास्तव में ये कोई स्थूल पानी की गंगा की बात नही है,इसका आध्यात्मिक रहस्य है कि ज्ञानसूर्य परमात्मा शिव बाबा जब इस धरती पर आते है तब अपने साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा को बनाते है और ब्रह्मा के द्वारा ज्ञान सुनाकर ब्रह्ममुखवंसवाली ब्राह्मण बनाते है और उसी ज्ञान को ब्रह्मकुमारियाँ धारण कर पूरी दुनिया मे परमात्मा का ज्ञान सुनाने का माध्यम अर्थात ज्ञान की गंगा बनती है और प्रजापिता ब्रह्मकुमारि ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थापना होती है और इसके माध्यम से सारे विश्व मे परमात्मा का सच्चा गीता ज्ञान दिया जाता है।परमात्मा के दिये संदेश को ब्रह्मकुमारियाँ अर्थात चैतन्य ज्ञान गंगाओं के द्वारा मानव को पहुचता है।
और पूरे विश्व मे प्रजापिता ब्रह्मकुमारि ही एक ऐसी संस्था है जहाँ आने वाले लोगो को सबसे पहले सात दिन का कोर्स कराया जाता है अर्थात परमात्मा के द्वारा दिया हुआ गीता ज्ञान तीसरा नेत्र प्रदान करने का ज्ञान दिया जाता है।जो मनुष्य इस ज्ञान को 6 छः दिन तक सुन लेता है या जो इस ज्ञान की गंगा में छः दिन डुबकी लगा लेता हैउसका तीसरा नेत्र अथवा छठी इंद्री खुल जाती है,दिव्य नेत्र मिल जाता है जिससे कि उसको आत्मा और *परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है।स्वयं का परिचय हो जाता है और परमात्मा का भी सच्चा परिचय हो जाता है,ज्ञानसूर्य की ज्ञान की रौशनी आत्मा को मिल जाती है।उसके जीवन मे उजाला आ जाता है।उसके बाद फिर सातवें दिन उसे पवित्रता का ज्ञान दिया जाता है क्योंकि परमात्मा कहते है बिना पवित्र बने तुम मेरे स्थापन किये हुए स्वर्ग में नही जा सकते हो। तो इसी के यादगार स्वरूप द्वापर युग से इस पर्व की शुरुआत होती है।
इस पर्व में पवित्रता ,स्वच्छता का विशेष महत्व इसलिए भी है कि परमात्मा जो हमे पवित्रता का पाठ पढ़ाते है और हम बच्चों को पवित्र दुनिया का मालिक बनाते है इसके यादगार में इस पर्व में पवित्रता का भी बड़ा महत्व है।
1.इस पर्व में पवित्रता स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है जैसे कि -इस पर्व में जो भी वस्तु उपयोग में लाया जाता है जैसे कि सुपली आदि सब नया लिया जाता है पुराना उपयोग नही करते है। पकवान के लिए जो भी अन्न होता है उसे पहले कुएँ के पानी से धुलाई करके पीसने वाले मशीन को भी अच्छे से धुलाई सफाई करके ही यूज़ किया जाता है।
2. और स्थूल वस्तु के साथ साथ मन और तन की भी विशेष पवित्रता का ध्यान रखा जाता है जितना किसी और पर्व में नही रखा जाता है। पर्व में व्रत रखने वाली व्रती या व्रत रखने वाला व्रता 3 दिन पूरी तरह उपवास रखते है।इस पर्व में स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से व्रत रखते और आराधना करते हैं।
2.पहले दिन नहाकर खाने से शुरू होता है और अंतिम दिन तो पूरी तरह अन्न और जल दोनों का उपवास रखती है।और घर के कोई भी सदस्य व्रत के पकवान को नही बना सकता है और नही छू सकता है जबतक सूर्य देवता को भोग न यानी अर्ध्य न दे दिया जाय तब तक न कोई खाते हैं और न ही छूते हैं।
3.और इस पर्व में सीजन के सभी फल डाली में डालकर फिर पानी मे खड़े होकर सुर्य देवता को पहले दिन शाम को और अगले दिन सुबह में अर्पण करने के बाद ही वह प्रसाद ग्रहण किया जाता है। परमात्मा ने जो मन की और तन की पवित्रता बतलाई है और इस पर्व में सब ध्यान रखा जाता है।जो व्रती होती है वो बिना लहसुन प्याज और बिना नमक का खाना खाती है। इस पर्व में अस्ताचल यानी डूबते हुए सूर्य की भी पूजा की जाती है क्योंकि परमात्मा जब इस सृष्टि पर नई दुनिया की स्थापना करके वापस अपने परमधाम जाते है तो उसका भी यादगार के रूप में डूबते हुए सूरज की भी पूजा होती है। इस पर्व में जो लोग अपने कार्य-व्यवहार, धन कमाने या किसी भी कारण से अपने घर से दूर रहते है वो जहाँ तक संभव हो सके अपने पैतृक गांव या घर आकर छठ मनाना चाहते है,छठ करते हैं। इसका मतलब ये है कि जब इस सृष्टि का या इस कल्प का अंतिम समय होता तब ज्ञान सूर्य परमात्मा स्वयं धरती पर आकर सभी आत्मिक रूपी बच्चों को ज्ञान सूर्य अपने साथ हम आत्माओं का अपना घर परमधाम अपने साथ वापस ले जाते है इसलिए इस पर्व में अपने घर वापस आकर खुशी मनाने की परंपरा है। वास्तव में यह पर्व ज्ञानसूर्य परमात्मा के अवतरण का यादगार है लेकिन लोग इसको प्रकृति के सूर्य की उपासना के साथ स्थूल रूप में मनाते है। तो मेरा आप सभी भाई बहनों और माताओं से निवेदन है कि इस पर्व का सच्चा -सच्चा आध्यात्मिक रहस्य जानने के किये अपने नजदीकी ब्रह्माकुमारीज़ सेवाकेंद्र पर अवश्य पहुँचे और ज्ञानसूर्य परमात्मा से अपना सुख- शांति और समृद्धि का वर्सा अवश्य प्राप्त करें।।
पुनः आप सभी भाई बहनों को और आपके परिवार को छठ महापर्व की हार्दिक हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
और आपके सुखमय,सुस्वास्थ मंगलमई जीवन की शुभकामना। धन्यवाद....




छठ पूजा का आध्यात्मिक रहस्य - बी.के. ऊषा || Peace of Mind Tv || Brahma Kumaris


भाई दूज का आध्यात्मिक रहश्य - Brahma Kumaris

भाई दूज का आध्यात्मिक रहश्य - Brahma Kumaris

lı ☆ ıllı भैया दूज का वास्तविक अर्थ ıllı ☆ ıllı
अमावस्या की काली, अंधियारी रात को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है और जिस दिन चंद्रमा के दर्शन होते हैं उस दिन भारत मे सर्वत्र भैया दूज या यम द्वितीया का पर्व मनाया जाता है। रक्षा बंधन के पर्व की तरह ही यह भी बहन -भाई के निश्छल प्रेम का प्रतीक है। पर्व से संबंधित कथा:इस पर्व के संबंध मेँ एक कथा प्रचलित हैं। कहते हैं, यमुना और यम दोनों बहन - भाई थे। यमुना की शादी मृत्युलोक मेँ हो गयी और वह धरती पर बहने लगी। यम को यमपुरी में आत्माओं के कर्मों के हिसाब-किताब देखने और कर्मों अनुसार फल देने की सेवा मिली। यमुना अपने भाई यम को याद करती रहती थी और अपने घर आने का निमंत्रण देती रहती थी।

यमराज बहुत व्यस्त रहते थे, रोज़ ही आत्माओं का लेखा-जोखा करना होता था, इसलिए आने की बात को टालते रहते थे। बार-बार बुलावा भेजते-भेजते आखिर एक दिन भाई आने को वचनबद्ध हो गया, वह कार्तिक शुक्ल का ही दिन था। भाई को घर आया देख यमुना की खुशी का ठिकाना न रहा। बड़े प्यार से, शुद्धिपूर्वक भोजन करवाया और बहुत आतिथ्य किया। बहन के निश्चल स्नेह से प्रसन्न होकर यमराज ने वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा, मैं सब रीति भरपूर हूँ, मुझे कोई कामना नहीं है। यम ने कहा, बिना कुछ दिये मैं जाना नहीं चाहता। बहन ने कहा, हर वर्ष इस दिन आप मेरे घर आकर भोजन करें। मेरी तरह जो भी बहन अपने भाई को स्नेह से बुलाए, स्नेह से सत्कार करे, उसे आप सजाओं से मुक्त करें। यमराज ने ‘तथास्तु’ कहा और यमुना को वस्त्राभूषण देकर वापस लौट गए।
इस कहानी का बहुत सुंदर आध्यात्मिक रहस्य है। हमने भक्ति मार्ग में भगवान को कहा, 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव' भावार्थ यह है कि भगवान पिता तो माना ही, सखा और भाई भी माना। एक समय था जब हम आत्माएँ और बंधु रूप परमात्मा - इकट्ठे एक ही घर परमधाम में रहते थे. बाद में हम आत्मायेँ पृथ्वी पर पार्ट बजाने आ गईं और यमुना नदी की भांति, जन्म-पुनर्जन्म में, एक स्थान से दूसरे स्थान पर बहती रहीं। परमात्मा पिता का ही दूसरा नाम यमराज भी है। यम का अर्थ है कि वे आत्माओं के कर्मों का हिसाब करते हैं और दूसरा अर्थ है, नियम – संयम का ज्ञान देते हैं। दोनों ही कर्तव्य परमात्मा के हैं।

आधा कल्प के बाद द्वापर युग से हम आत्मायेँ अपने पिता परमात्मा को सभी रूपों मेँ, भाई रूप मेँ भी याद करती आई है और पृथ्वीलोक में आ पधारने का निमंत्रण देती आई हैं। इस संबंध में एक सुंदर भजन भी है, 'छोड़ भी दे आकाश सिंहासन इस धरती पर आजा रे'। परंतु वो समय भक्तिकाल का होता है, परमात्मा पिता के धरती पर अवतरण का नहीं। फिर भी वे हमारी पुकार भरी अर्जियों को सुनते रहते हैं, दिल मेँ समाते रहते हैं और कलियुग के अंत मे जब पाप की अति हो जाती है तब वे साधारण मानवीय तन का आधार ले अवतरित हो जाते हैं ।

आधा कल्प की पुकार का फल - परमात्म अवरतरण के रूप में पाकर हम आत्माएँ धन्य हो जाती हैं। हम आत्माएँ धरती पर अवतरित बंधु रूप परमात्मा को दिल में समाकर, स्नेह से भोग लगाती है, उसका दिल व जान से आतिथ्य करती हैं। भगवान हमारे इस स्नेह को देख हमें वरदानों से भरपूर कर देते हैं और कहते हैं, जो आत्माएँ धरती पर अवतरित मुझ परमात्मा को पहचान कर सत्कारपूर्वक आतिथ्य करेंगी, मेरी श्रीमत पर चलेंगी, उन्हें मैं सज़ाओं से मुक्त कर दूंगा। इस प्रकार यह त्योहार, परमात्मा के साथ बंधु का नाता जोड़ने और निभाने का यादगार है। परमात्मा तो निराकार हैं, साकार शरीर उनका है नहीं, इसलिए कालांतर में बहन शरीरधारी आत्माओं ने भाई शरीरधारी आत्माओं को तिलक लगाने और मुख मीठा करने के रूप में इसे मनाना प्रारम्भ कर दिया।

भगवान के बच्चे हम सब आपस में बहन-भाई हैं। भाई दूज का त्योहार इस निर्मल नाते को सुदृढ़ करने का आधार है। यह पर्व दीपावली के तुरंत बाद आता है, इसका भी रहस्य है। दीपावली, श्री लक्ष्मी, श्री नारायण के राजतिलक का यादगार पर्व है । इनके राजतिलक के बाद विश्व में, ऐसे भाईचारे का राज्य स्थापित होता है जिसमें नर नारी तो क्या- गायशेर तक भी इकट्ठे जल पीएंगे - यह मान लीजिये कि गाय और शेर मेँ भी बहन - भाई का निर्मल नाता स्थापित हो जाएगा भावार्थ यही है, पशु, प्राणी, प्रकृति सभी स्नेहपूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे। परमात्मा पिता से भ्रातृ नाता जुड़ाने वाले, सतयुगी भ्रातृभाव की झलक दिखाने वाले इस भैयादूज के पर्व पर हमारी शुभकामना है कि धरती पर अवतरित धर्मराज भगवान को पहचान कर, उनकी श्रीमत पर चलते हुए आप सभी प्रकार की सज़ाओं से मुक्त हो जाएँ।
-- BK Raj, Sydney, Australia




गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक रहश्य - Brahma Kumaris

 गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक रहश्य - Brahma Kumaris

आज दीपोत्सव के चौथे दिन आप सभी को ढेरों शुभकामनाएं ।

दीपावली की अगली सुबह अर्थात् कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन  उत्सव मनाया जाता है । गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई । इसे लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं । साथ ही आज से नववर्ष भी शुरू होता है ।

प्रसंगानुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के कोप से बचाने के लिए स्वयं एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया और सारे ब्रजवासियों को तथा  गायों को सुरक्षित रखा । उस समय ब्रजवासियों गोप-गोपियों ने भी अपनी उंगली से सहयोग दिया था ।

इसका वास्तविक अर्थ यह है कि  परमपिता परमात्मा शिव धरती पर आ चुके हैं और उनका कर्तव्य सभी आत्माओं को सुख शांति प्रदान कर इस गोवर्धन पर्वत रूपी  विश्व का कल्याण करना है । इस कलयुग में विकारी संसार को उठाने में हम अपने पवित्र जीवन रूपी उंगली देकर, स्वर्ग की स्थापना के पहाड़ सरीखे  कार्य में सहयोगी बनते हैं । यह त्यौहार हमें आपसी सहयोग की भावना व एकता के गुण को सिखाता है । सहयोग से कठिन से कठिन कार्य भी सहज रुप से हो जाते हैं ।

पुरानी और नई दुनिया के संगम पर नववर्ष का नई दुनिया की नई स्मृतियों को ताजा कर रहा है । आज और कल इन दो शब्दों में समाए हुए इस सृष्टि चक्र में आज हम संगमयुग पर हैं और कल सतयुग में होंगे । भारत फिर से सच्चे अर्थों में (भा = प्रकाश + रत = संपन्न) प्रकाशमान बनेगा जहां हर नर नारी चरित्र संपन्न, गुण संपन्न और प्रसन्नता संपन्न होंगे ।

ऐसे स्वर्णिम भारत को भू पर साकार करने के लिए हम मुश्किलों के बीच मुस्कुराना सीखें । परिस्थितियों को स्वस्थिति से जीते । हम यह न कहें कि किसने ऐसा किया है बल्कि स्वयं करके दिखाएं ।

सृष्टि के महापरिवर्तन से पहले के समय स्थापना का कार्य स्वयं भगवान धूमधाम से करवा रहे हैं इसीलिए एक के हैं और एक हैं एकता की इस दृढ़ भावना के साथ असंभव को संभव कर दिखाएं । संस्कार मिलन की रास द्वारा अलौकिक प्रेम को प्रत्यक्ष करें और कमजोर को भी शक्तियों के पंख देकर ऊंचाइयों की ओर ले चलें ।

परिवर्तन की इस वेला में आप सभी को नववर्ष की, नवयुग की, पुरुषार्थ में नवीनता की, सेवा की नवीन योजनाओं की बहुत-बहुत मुबारक हो ।






Spiritual Significance Of Diwali Festival - Brahma Kumaris

THE REAL DIWALI

As per Godly Knowledge, the real Diwali will be the Golden Age or Satyuga. Everything will be pure in Satyuga. Here everybody will be abundant with all virtues, vice-less and non-violent.




Wishing you a very Happy Diwali!

Wherever you are in the world, you can enjoy the significance of Diwali - light a candle, sit quietly, withdraw from the senses, concentrate on the Supreme Light and illuminate the soul. (You also might like to listen to Dadi Janki http://www.youtube.com/watch?v=ffHIFCk7i3s)
Deepawali or Diwali (13th November 2012) is the festival of lights (deep = light and avali = a row i.e., a row of lights) that's marked by four days of celebration, which literally illumines India with its brilliance, and dazzles all with its joy. Diwali is the celebration of life, its enjoyment and goodness.
In each legend, myth and story of Deepawali lies the significance of the victory of good over evil; and it is with each Deepawali and the lights that illuminate our homes and hearts, that this simple truth finds new reason and hope. From darkness unto light — the light that empowers us to commit ourselves to good deeds, that which brings us closer to divinity.

Dadi Janki Message

To celebrate the true Diwali is to keep one's internal light constantly lit. In order to keep one's light constant, without flickering, it is essential to apply the oil of spiritual knowledge and yoga daily. We are in changing times: we are moving towards a world of happiness and lightness. My part in creating such a world is to remain a constantly lit spiritual lamp and to keep donating my virtues to others. Constant donation in life results in happiness now and fortune for the future. Happy Diwali to all. Om Shanti.

Your sister Janki.

Spiritual Significance Of Diwali Festival...By Nalini Didi




About Me - BK Ravi Kumar

I am an MCA, IT Professional & Blogger, Spiritualist, A Brahma Kumar at Brahmakumaris. I have been blogging here.