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राजयोग के अभ्यास से अर्थात मन का नाता परमपिता परमात्मा के साथ जोड़ने से, अविनाशी सुख-शांति की प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही कई प्रकार की अध्यात्मिक शक्तियाँ भी आ जाती है इनमें से आठ मुख्य और बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
"सिकोड़ने और फैलानी की शक्ति"
जैसे कछुआ अपने अंगों को जब चाहे सिकोड़ लेता है, जब चाहे उन्हें फैला लेता है, वैसे ही 🧘♂राजयोगी जब चाहे अपनी इच्छानुसार अपनी कर्मेन्द्रियों के द्वारा कर्म करता है और जब चाहे विदेही एवं शान्त अवस्था में रह सकता है। इस प्रकार विदेही अवस्था में रहने से उस पर माया का वार नहीं होगा।
"समेटने की शक्ति"
इस संसार को मुसाफिर खाना तो सभी कहते हैं,लेकिन व्यवहारिक जीवन में वे इतना तो विस्तार कर लेते हैं कि अपने कार्य और बुद्धि को समेटना चाहते हुए भी नहीं कर पाते, जबकि योगी अपनी बुद्धि को इस विशाल दुनिया में न फैला कर एक परमपिता परमात्मा की तथा आत्मिक सम्बन्ध की याद में ही अपनी बुद्धि को लगाये रखता है। वहz कलियुगी संसार से अपनी बुद्धि और संकल्पों का बिस्तर व पेटी समेटकर सदा अपने घर-परमधाम में चलने को तैयार रहता है ।
"सहन शक्ति"
जैसे वृक्ष पर पत्थर मारने पर भी मीठे फल देता है और अपकार करने वाले पर भी उपकार करता है, वैसे ही एक 🧘♂योगी भी सदा अपकार करने वालों के प्रति भी शुभ भावना और शुभ कामना ही रखता है।
"समाने की शक्ति"
योग का अभ्यास मनुष्य की बुद्धि विशाल बना देता है और मनुष्य गंभीरता और मर्यादा का गुण धारण करता है। थोड़ी सी खुशियाँ, मान, पद पाकर वह अभिमानी नही बन जाता और न ही किसी प्रकार की कमी आने पर या हानि होने के अवसर पर दुखी होता है वह तो समुद्र की तरह सदा अपने दैवी कुल की मर्यादा में बंधा रहता है और गंभीर अवस्था में रहकर दूसरी आत्माओं के अवगुणों को न देखते हुए केवल उनसे गुण ही धारण करता है।
"परखने की शक्ति"
जैसे एक पारखी (जौहरी) आभूषणों को कसौटी पर परखकर उसकी असल और नक़ल को जान जाता है, ऐसे ही🧘♂ योगी भी, किसी भी मनुष्यात्मा के संपर्क में आने से उसको परख लेता है और उससे सच्चाई या झूठ कभी छिपा नही रह सकता। वह तो सदा सच्चे ज्ञान-रत्नों को ही अपनाता है तथा अज्ञानता के झूँठे कंकड़, पत्थरों में अपनी बुद्धि नहीं फँसाता।
"निर्णय शक्ति"
यह शक्ति स्वत: प्राप्त हो जाती है। वह उचित और अनुचित बात का शीघ्र ही निर्णय कर लेता है। वह व्यर्थ संकल्प और परचिन्तन से मुक्त होकर सदा प्रभु चिंतन में रहता है।
"सामना करने की शक्ति"
🧘♂ योग के अभ्यास से मनुष्य को सामना करने की शक्ति भी प्राप्त होती है। यदि उसके सामने अपने निकट सम्बन्धी की मृत्यु-जैसी आपदा आ भी जाये अथवा सांसारिक समस्याऐं तूफान का रूप भी धारण कर लें तो भी वह कभी विचलित नहीं होता और उसका आत्मा रूपी दीपक सदा ही जलता रहता है तथा अन्य आत्माओं को ज्ञान-प्रकाश देता रहता है।
अन्य शक्ति, जो योग के अभ्यास से प्राप्त होती है, वह है -
"सहयोग की शक्ति"
एक योगी अपने तन, मन, धन से तो ईश्वरीय सेवा करता ही है, साथ ही उसे अन्य आत्माओं का भी सहयोग स्वत: प्राप्त होता है, जिस कारण वे कलियुगी पहाड़ ( विकारी संसार) को उठाने में अपनी पवित्र जीवन रूपी अंगुली देकर स्वर्ग की स्थापना के पहाड़ सरीखे कार्य में सहयोगी बन जाते हैं।
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मेरा अनुभव
मेरा बहुत ही अच्छा अनुभव रहा, मेरे अंदर भी यह शक्तियां आ रही हैं | थैंक यू बाबा
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आपने अपना समय दिया, उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद्
ॐ शांति
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