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Tulsi Vivah Ka Adhyatmik Rahashya: तुलसी विवाह का आध्यात्मिक रहश्य

Tulsi Vivah Ka Adhyatmik Rahashya: तुलसी विवाह का आध्यात्मिक रहश्य





तुलसी विवाह की कथा तथा आध्यात्मिक रहस्य

प्राचीन ग्रंथों में तुलसी विवाह व्रत की अनेक कथाएं दी हुई हैं। उन कथाओं में से एक कथा निम्न है।

इस कथा के अनुसार एक कुटुम्ब में ननद तथा भाभी साथ रहती थी। ननद का विवाह अभी नहीं हुआ था। वह तुलसी के पौधे की बहुत सेवा करती थी। लेकिन उसकी भाभी को यह सब बिलकुल भी पसन्द नहीं था। जब कभी उसकी भाभी को अत्यधिक क्रोध आता तब वह उसे ताना देते हुए कहती कि जब तुम्हारा विवाह होगा तो मैं तुलसी ही बारातियों को खाने को दूंगी और तुम्हारे दहेज में भी तुलसी ही दूंगी।

कुछ समय बीत जाने पर ननद का विवाह पक्का हुआ। विवाह के दिन भाभी ने अपनी कथनी अनुसार बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ दिया और खाने के लिए कहा। तुलसी की कृपा से वह फूटा हुआ गमला अनेकों स्वादिष्ट पकवानों में बदल गया। भाभी ने गहनों के नाम पर तुलसी की मंजरी से बने गहने पहना दिए। वह सब भी सुन्दर सोने–जवाहरात में बदल गए। भाभी ने वस्त्रों के स्थान पर तुलसी का जनेऊ रख दिया। वह रेशमी तथा सुन्दर वस्त्रों में बदल गया। ननद की ससुराल में उसके दहेज की बहुत प्रशंसा की गई। यह बात भाभी के कानों तक भी पहुंची। उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उसे अब तुलसी माता की पूजा का महत्व समझ आया। भाभी की एक लड़की थी। 

वह अपनी लड़की से कहने लगी कि तुम भी तुलसी की सेवा किया करो। तुम्हें भी बुआ की तरह फल मिलेगा। वह जबर्दस्ती अपनी लड़की से सेवा करने को कहती लेकिन लड़की का मन तुलसी सेवा में नहीं लगता था। लड़की के बडी़ होने पर उसके विवाह का समय आता है। तब भाभी सोचती है कि जैसा व्यवहार मैने अपनी ननद के साथ किया था वैसा ही मैं अपनी लड़की के साथ भी करती हूं तो यह भी गहनों से लद जाएगी और बारातियों को खाने में पकवान मिलेंगें। ससुराल में इसे भी बहुत इज्जत मिलेगी। 

यह सोचकर वह बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ देती है। लेकिन इस बार गमले की मिट्टी, मिट्टी ही रहती है। मंजरी तथा पत्ते भी अपने रुप में ही रहते हैं। जनेऊ भी अपना रुप नहीम बदलता है। सभी लोगों तथा बारातियों द्वारा भाभी की बुराई की जाती है। लड़की के ससुराल वाले भी लड़की की बुराई करते हैं।भाभी कभी ननद को नहीं बुलाती थी। भाई ने सोचा मैं बहन से मिलकर आता हूँ। उसने अपनी पत्नी से कहा और कुछ उपहार बहन के पास ले जाने की बात कही। 

भाभी ने थैले में ज्वार भरकर कहा कि और कुछ नहीं है तुम यही ले जाओ। वह दुखी मन से बहन के पास चल दिया। वह सोचता रहा कि कोई भाई अपने बहन के घर ज्वार कैसे ले जा सकता है। यह सोचकर वह एक गौशला के पास रुका और जुवार का थैला गाय के सामने पलट दिया। तभी गाय पालने वाले ने कहा कि आप गाय के सामने हीरे-मोती तथा सोना क्यों डाल रहे हो। भाई ने सारी बात उसे बताई और धन लेकर खुशी से अपनी बहन के घर की ओर चल दिया। दोनों बहन-भाई एक-दूसरे को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

उपरोक्त कथा हमें शिक्षा देती है कि हम जैसे कर्म का बीज बोएँगे, हमें वैसा ही फल मिलेगा। अगर हम श्रेष्ठ कर्म करेंगे, तो अवश्य ही हमें फल भी श्रेष्ठ प्राप्त होगा, जबकि यदि हम बुरा कर्म करेंगे, तो हमें फल भी बुरा ही मिलेगा।

उपरोक्त कथा हमें ईर्ष्या, किसी के बारे में बुरा सोचना आदि दुर्गुणों से ऊपर उठकर सत्कर्म करने की प्रेरणा देती है।

✳अतः
यदि हम वर्तमान धरमौ, कल्याणकारी, पुरुषोत्तम संगम युग में, जबकि परमात्मा शिव इस धरती पर आकर हमें सहज राजयोग के द्वारा मनुष्य से देवता बनने की श्रीमत् दे रहे हैं कि हम अपने को आत्मा समझ कर उन्हे याद कर संपूर्ण पावन और देवता अर्थात दैवी गुणों वाला मनुष्य बनें तो हमें उपरोक्त कथा अनुसार ननद के समान आने वाली स्वर्गिक दुनिया - सतयुग में सर्व सुखों से संपन्न होंगे।

🌱आप सभी को तुलसी विवाह के शुभ अवसर की बहुत-बहुत बधाई हो।

💓 से ओम शान्ति 🌹

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About Me - BK Ravi Kumar

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