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Mohjeet Raja Ki Katha - मोहजीत राजा की कथा

Mohjeet Raja Ki Katha - मोहजीत राजा की कथा

 एक बार एक राजकुमार अपने कई सैनिकों के साथ शिकार पर गया । वह बहुत अच्छा शिकारी था । शिकार के पिछे वह इतना दूर निकल गया कि सारे सिपाही पीछे छूट गये । अकेले पडने का एहसास होते ही वह रूक गया । उसे प्यास भी लग रही थी । उसे पास में ही एक कुटीया दिखाई दी । वहॉ एक संत ध्यान- मग्न बैठे हूवे थे । राजकुमार ने संत के पास जाकर पानी मॉगा । सन्त ने राजकुमार का परिचय पूछा। राजकुमार ने संत से कहा कि वह एक राजा का लडका है जिसने मोह को जीत लिया है । संत बोला -असंभव।एक राजा और मोह पर विजयी ? यहॉ मै एक संन्यासी हूँ अब भी मोह को जीत नही पा रहा हूँ और तुम कहते हो कि तुम्हारे पिताजी एक राजा है और मोह को जीत चूके हैं । राजकुमार ने कहा , न केवल मेरे पिताजी बल्कि सारी प्रजा ने भी मोह को जीत रखा है । सन्त को इसका विश्वास नही हूवा तो राजकुमार ने कहा कि आप चाहे तो इस बात कि परिक्षा ले लें । सन्त ने राजकुमार कि कमीज मॉगी और उसे कुछ और पहनने को दे दिया । सन्त ने तब एक जानवर को मार कर उसके खून मे राजकुमार की कमीज को डुबोया और वह शहर मे चिल्लाता हूवा गया कि राजकुमार को एक शेर ने मार दिया । शहर के लोग कहने लगे - अगर वह चला गया तो क्या हूआ । आप क्यों चिल्ला रहे हो ? वह उसका भाग्य था । सन्त ने सोचा कि प्रजा नही चाहती होगी कि राजकुमार भविष्य मे राजा बने इसलिए इस तरह कि प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है ।सन्त महल मे गया और राजकुमार कि मौत कि बात उसके भाई और बहन को सुनाई । उन्होंने कहा कि अब तक वह हमारा भाई था, अब किसी और का भाई बन जाएगा । कोई हमेशा के लिए तो साथ नही रह सकता इसीलिए रोने और चिल्लाने कि आवश्यकता नही है । सन्त को लगा कि बहन को दूसरा भाई अधिक पसंद है और भाई खुश है कि उसे अब राज्य मिलेगा इसलिए दोनों ने एैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की । फिर वह पिता के पास गया और खबर सुनाई । पिता बोले , आत्मा तो अमर और अविनाशी है इसलिए चिल्लाने कि कोई जरूरत नही है । वह मेरा पुत्र था इसलिए मैने सोचा कि वह राजा बनने वाला है लेकिन अब दूसरे पुत्र को राज्य मिलेगा । मै उसे वापस नही ला सकता हूँ इसलिए दुःख क्यों करूँ । सन्त सोच मे पड गया । लेकिन अभी और भी दो लोग बाकी थे । राजकुमार की माता और पत्नी । सन्त ने सोचा कि यह दो व्यक्ति तो जरूर व्याकुल होंगे । लेकिन वहॉ से भी वैसा ही उत्तर पाकर संत आश्चर्य मे पड़ गया । उसे अपने आप पर ही विश्वास नही हो रहा था कि वह सच देख रहा है । आखिर हारकर उसने अपने आने का उद्देश्य और राजकुमार के जिंदा होने कि बात सबको सुना दी । राजकुमार ने वापस आकर अपना राज्यभाग्य सँभाला और हर चिज पहले कि तरह चलती रही । 


              आध्यात्मिक भाव


        मोह पॉच विकारों मे से एक है। वह हमारी शांती को छिन लेता है। परखने कि शक्ति को खत्म कर देता है। मोह सच्चाई को खत्म करता है। जिसमे मोह है उसमे बुद्धिमानी नही हो सकती। बाबा इस कथा से शिक्षा देना चाहते है कि ना हमें दुसरों मे मोह हो और ना ही दूसरोंका हममे मोह हो।तब ही हम विश्व के मालिक बन सकते है ।

             🌹अच्छा.....ऊँ शांती🌹

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About Me - BK Ravi Kumar

I am an MCA, IT Professional & Blogger, Spiritualist, A Brahma Kumar at Brahmakumaris. I have been blogging here.