लवलीन स्थिति का अनुभव करो
बाबा कहते, यह स्नेह में समाना भी समान बनना है। भक्तों ने इस स्नेह में समाने की स्थिति के लिए ही कहा है कि आत्मा परमात्मा में समा जाती है। तो आओ, हम सभी पूरा ही मास उस लवलीन स्थिति में समाने का अनुभव करें
1. प्यार के सागर बाप के साथ मिलन मनाते प्यार से बाबा कहो और उसी प्यार में समा जाओ। लगन में मगन हो जाओ। यह लवलीन स्थिति और सब बातों को सहज समाप्त कर देगी।
2. आप लवलीन बच्चों का संगठन ही बाप को प्रत्यक्ष करेगा। संगठित रूप में अभ्यास करो, मैं बाबा का, बाबा मेरा। सब संकल्पों को इसी एक शुद्ध संकल्प में समा दो। एक सेकण्ड भी इस लवलीन अवस्था से नीचे नहीं आओ।
3. आपके नयनों में और मुख के हर बोल में बाप समाया हुआ हो। तो आपके शक्तिशाली स्वरूप द्वारा सर्वशक्तिवान नज़र आयेगा। जैसे आदि स्थापना में ब्रह्मा रूप में श्रीकृष्ण दिखाई देता था, ऐसे अभी आप बच्चों द्वारा सर्वशक्तिवान् दिखाई दे।
4. बाप के प्यार में ऐसे समा जाओ जो मैं पन और मेरा पन समाप्त हो जाए। नॉलेज के आधार से बाप की याद में समाये रहो तो यह समाना ही लवलीन स्थिति है, जब लव में लीन हो जाते हो अर्थात् लगन में मग्न हो जाते हो तब बाप के समान बन जाते हो।
5. जैसे कोई सागर में समा जाए तो उस समय सिवाय सागर के और कुछ नज़र नहीं आयेगा। ऐसे आप बच्चे सर्व-गुणों के सागर में समा जाओ। बाप में नहीं समाना है, लेकिन बाप की याद में, स्नेह के सागर में समा जाना है।
6. देह की स्मृति से ऐसे खोये हुए रहो जो देह-भान का, दिन-रात का, भूख और प्यास का, सुख के, आराम के साधनों का किसी भी बात के आधार पर जीवन न हो, तब कहेंगे लव में लवलीन स्थिति। जैसे शमा ज्योति-स्वरूप है, लाइट माइट रूप है, ऐसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रूप बन जाओ।
7. त्यागी और तपस्वी आत्मायें सदा बाप की लगन में मगन रहती हैं। वे प्रेम के सागर, ज्ञान, आनन्द, सुख, शान्ति के सागर में समाई हुई रहती हैं। ऐसे समाने वाले बच्चे ही सच्चे तपस्वी हैं। उनसे हर बात का त्याग स्वत: हो जाता है।
8. जैसे लौकिक रीति से कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है, आशिक है। ऐसे आपके अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज हो तो आपके बोल औरों को भी स्नेह में घायल कर देंगे।
9. यह परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में सदा झूलते रहो, परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती।
10. परमात्म-प्यार अखुट है, अटल है, इतना है जो सर्व को प्राप्त हो सकता है लेकिन परमात्म-प्यार प्राप्त करने की विधि है – न्यारा बनना। जितना न्यारा बनेंगे उतना परमात्म प्यार का अधिकार प्राप्त होगा। ऐसी न्यारी प्यारी आत्मायें ही लवलीन स्थिति का अनुभव कर सकती हैं।
11. जितना बेहद की प्राप्तियों में मगन रहेंगे उतना हद की आकर्षण से परे रह परमात्म प्यार में समाने का अनुभव करेंगे। आपकी यह लवलीन स्थिति वातावरण में रूहानियत की खुशबू फैलायेगी।
12. बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो रोज़ प्यार का रेसपान्ड देने के लिए इतना बड़ा पत्र लिखते हैं। यादप्यार देते हैं और साथी बन सदा साथ निभाते हैं, तो इस प्यार में अपनी सब कमजोरियां कुर्बान कर समान स्थिति में स्थित हो जाओ।
13. बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो सदा कहते बच्चे जो हो, जैसे हो – मेरे हो। ऐसे आप भी सदा प्यार में लवलीन रहो, दिल से कहो बाबा जो हो वह सब आप ही हो। कभी असत्य के राज्य के प्रभाव में नहीं आओ, अपने सत्य स्वरूप में स्थित रहो।
14. जो प्यारा होता है, उसे याद किया नहीं जाता, उसकी याद स्वत: आती है। सिर्फ प्यार दिल का हो, सच्चा और नि:स्वार्थ हो। जब कहते हो मेरा बाबा, प्यारा बाबा – तो प्यारे को कभी भूल नहीं सकते। और नि:स्वार्थ प्यार सिवाए बाप के किसी आत्मा से मिल नहीं सकता इसलिए कभी मतलब से याद नहीं करो, नि:स्वार्थ प्यार में लवलीन रहो।
15. परमात्म-प्यार के अनुभव में सहजयोगी बन उड़ते रहो। परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन है। उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते। माया का कितना भी आकर्षित रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती।
16. यह परमात्म प्यार ऐसा सुखदाई प्यार है जो इस प्यार में एक सेकण्ड भी खो जाओ तो अनेक दु:ख भूल जायेंगे और सदा के लिए सुख के झूले में झूलने लगेंगे।
17. बाप का आप बच्चों से इतना प्यार है जो जीवन के सुख-शान्ति की सब कामनायें पूर्ण कर देते हैं। बाप सुख ही नहीं देते लेकिन सुख के भण्डार का मालिक बना देते हैं। साथ-साथ श्रेष्ठ भाग्य की लकीर खींचने का कलम भी देते हैं, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हो – यही परमात्म प्यार है। इसी प्यार में समाये रहो।
18. बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो अमृतवेले से ही बच्चों की पालना करते हैं। दिन का आरम्भ ही कितना श्रेष्ठ होता है! स्वयं भगवन मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रुहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! बाप की मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं – मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ…..। तो इस प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप ‘सहज योगी जीवन’ का अनुभव करो।
19. परमात्म प्यार में सदा लवलीन, खोये हुए रहो तो चेहरे की झलक और फ़लक, अनुभूति की किरणें इतनी शक्तिशाली होंगी जो कोई भी समस्या समीप आना तो दूर लेकिन आंख उठाकर भी नहीं देख सकती। किसी भी प्रकार की मेहनत अनुभव नहीं होगी।
20. जिससे प्यार होता है, उसको जो अच्छा लगता है वही किया जाता है। तो बाप को बच्चों का अपसेट होना अच्छा नहीं लगता, इसलिए कभी भी यह नहीं कहो कि क्या करें, बात ही ऐसी थी इसलिए अपसेट हो गये… अगर बात अपसेट की आती भी है तो आप अपनी स्थिति अपसेट नहीं करना।
21. बापदादा का बच्चों से इतना प्यार है जो समझते हैं हर एक बच्चा मेरे से भी आगे हो। दुनिया में भी जिससे ज्यादा प्यार होता है उसे अपने से भी आगे बढ़ाते हैं। यही प्यार की निशानी है। तो बापदादा भी कहते हैं मेरे बच्चों में अब कोई भी कमी नहीं रहे, सब सम्पूर्ण, सम्पन्न और समान बन जायें।
22. आदिकाल, अमृतवेले अपने दिल में परमात्म प्यार को सम्पूर्ण रूप से धारण कर लो। अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियाँ, परमात्म ज्ञान फुल होगा तो कभी और किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता।
23. बाप से सच्चा प्यार है तो प्यार की निशानी है – समान, कर्मातीत बनो। ‘करावनहार’ होकर कर्म करो, कराओ। कर्मेन्द्रियां आपसे नहीं करावें लेकिन आप कर्मेन्द्रियों से कराओ। कभी भी मन-बुद्धि वा संस्कारों के वश होकर कोई भी कर्म नहीं करो।
24. जिस समय जिस सम्बन्ध की आवश्यकता हो, उसी सम्बन्ध से भगवान को अपना बना लो। दिल से कहो मेरा बाबा, और बाबा कहे मेरे बच्चे, इसी स्नेह के सागर में समा जाओ। यह स्नेह छत्रछाया का काम करता है, इसके अन्दर माया आ नहीं सकती।
25. सेवा वा स्वंय की चढ़ती कला में सफलता का मुख्य आधार है – एक बाप से अटूट प्यार। बाप के सिवाए और कुछ दिखाई न दे। संकल्प में भी बाबा, बोल में भी बाबा, कर्म में भी बाप का साथ, ऐसी लवलीन स्थिति में रह एक शब्द भी बोलेंगे तो वह स्नेह के बोल दूसरी आत्मा को भी स्नेह में बाँध देंगे। ऐसी लवलीन आत्मा का एक बाबा शब्द ही जादू मंत्र का काम करेगा।
26. किसी भी बात के विस्तार में न जाकर, विस्तार को बिन्दी लगाए बिन्दी में समा दो, बिन्दी बन जाओ, बिन्दी लगा दो, बिन्दी में समा जाओ तो सारा विस्तार, सारी जाल सेकण्ड में समा जायेगी और समय बच जायेगा, मेहनत से छूट जायेंगे। बिन्दी बन बिन्दी में लवलीन हो जायेंगे। कोई भी कार्य करते बाप की याद में लवलीन रहो।
27 लवलीन स्थिति वाली समान आत्मायें सदा के योगी हैं। योग लगाने वाले नहीं लेकिन हैं ही लवलीन। अलग ही नहीं हैं तो याद क्या करेंगे! स्वत: याद है ही। जहाँ साथ होता है तो याद स्वत: रहती है। तो समान आत्माओं की स्टेज साथ रहने की है, समाये हुए रहने की है।
28. जब मन ही बाप का है तो फिर मन कैसे लगायें! प्यार कैसे करें! यह प्रश्न ही नहीं उठ सकता क्योंकि सदा लवलीन हैं, प्यार स्वरूप, मास्टर प्यार के सागर बन गये, तो प्यार करना नहीं पड़ता, प्यार का स्वरूप हो गये। जितना-जितना ज्ञान सूर्य की किरणें वा प्रकाश बढ़ता है, उतना ही ज्यादा प्यार की लहरें उछलती हैं।
29. परमात्म प्यार इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म का आधार है। कहते भी हैं प्यार है तो जहान है, जान है। प्यार नहीं तो बेजान, बेजहान है। प्यार मिला अर्थात् जहान मिला। दुनिया एक बूँद की प्यासी है और आप बच्चों का यह प्रभु प्यार प्रापर्टी है। इसी प्रभु प्यार से पलते हो अर्थात् ब्राह्मण जीवन में आगे बढ़ते हो। तो सदा प्यार के सागर में लवलीन रहो।
30. कर्म में, वाणी में, सम्पर्क व सम्बन्ध में लव और स्मृति व स्थिति में लवलीन रहना है, जो जितना लवली होगा, वह उतना ही लवलीन रह सकता है। अभी आप बच्चे बाप के लव में लवलीन रह औरों को भी सहज आप-समान व बाप-समान बना देते हो।
31. समय प्रमाण लव और लॉ दोनों का बैलेन्स चाहिए। लॉ में भी लव महसूस हो, इसके लिए आत्मिक प्यार की मूर्ति बनो तब हर समस्या को हल करने में सहयोगी बन सकेंगे। शिक्षा के साथ सहयोग देना ही आत्मिक प्यार की मूर्ति बनना है।
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