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What do we need to stay calm after fight?

 I have experienced this and learned a lot from this situation. There are two condition, when you do not aware about this. And another one, you already aware about this but still you can not control yourself. Suppose, in the Cigarette packet, it is written, smoking is injurious to health. We know this, but still we can not control this.

So, First of all, Shiv baba(Nirakar, God) says, become introverted(like tortoise) that is, remain silent. Do not say anything with your mouths. Carry out every task peacefully. Never spread peacelessness. This is the first level of staying calm.

Now, if you are practicing to become introberted(like tortoise), you will do mistake, but you do not have to repeat the mistake. You have to learn from every mistake. This is the second level.

Now, If you are practicing, but you have not become complete like GOD, you had a fight. Now, You should have a knowledge to fight with this situation too. This is spiritual knowledge. Where you have to make yourself calm after fight. Once you had a fight, Shiv baba says, you will not able to remember god because of high number of waste or negative thoughts in your mind. So, You have to control your mind first. There are many techniques like :

You have to write a letter To the god(true heart and say everything)

Accept your mistake, say sorry to that soul.

Create high number of positive thoughts to overpower on negative thoughts(I am a peaceful soul, I am god’s child, god is the ocean of peace etc.)

I practice the Rajyoga meditation daily. Every day, we face many situations in life. But We have to recharge our soul and live life like lotus. 

जिस्म से प्यार - खुदा से प्यार - Points From Murli - Brahma Kumaris

जिस्म से प्यार


* खुदा से प्यार *


किसी के प्यार में क्यूं इतने आंसू बहाता है ,


एक प्यारे खुदा का क्यों नहीं बन जाता है


जिस्मानी प्यार जिस्म के साथ मिट जाएगा ,


एक जिस्म मिटा तो दूसरा जिस्म लुभाएगा


जिस्म बदलते ही तेरा प्यार भी बदल जाएगा ,


ऐसे में तूँ अपनी मंजिल से भटकता जाएगा


छोड़ अब जिस्मानी प्यार बात मेरी मान ले ,


भूलकर जिस्म को तूँ खुद को रूह जान ले


छोड़ दे अपनी हर ख्वाहिशें जो विनाशी है ,


एक खुदा का रूहानी प्यार ही अविनाशी है


जिस्म मिटा तो ये कसमे वादे भी मिट जाएंगे ,


कर ले खुदा से प्यार जो जन्नत तुझे दिलाएंगे


ॐ शांति

01-06-2024

“मीठे बच्चे - तुम सब आपस में रूहानी भाई-भाई हो, तुम्हारा रूहानी प्यार होना चाहिए, आत्मा का प्यार आत्मा से हो, जिस्म से नहीं''

15-02-2023

ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठकर रूहों को समझाते हैं अर्थात् बच्चों को समझाते हैं। बाप कहते हैं मुझे भी जिस्म है तब तो बात कर सकता हूँ। तुम भी ऐसे समझो मैं आत्मा हूँ, इस जिस्म द्वारा सुन रहा हूँ।

28-11-1969

एक ही शब्द में यह कहेंगे कि दृष्टि और वृत्ति में रूहानियत आ जाती है । अर्थात् दृष्टि वृत्ति रुहानी हो जाती हैं । जिस्म को नहीं देखते हैं तो शुद्ध, पवित्र दृष्टि हो जाती है । जड़ चीज़ को आँखों से देखेंगे ही नहीं तो उस तरफ वृत्ति भी नहीं जायेगी । दृष्टि नहीं जायेगी तो वृत्ति भी नहीं जायेगी । दृष्टि देखती है तब वृत्ति भी जाती है । रूहानी दृष्टि अर्थात् अपने को और दूसरों को भी रूह देखना चाहिए । जिस्म तरफ देखते हुए भी नहीं देखना है, ऐसी प्रैक्टिस होनी चाहिए । जैसे कोई बहुत गूढ़ विचार में रहते है, कुछ भी करते है, चलते, खाते-पीते है लेकिन उनको मालूम नहीं पड़ता है कि कहाँ तक आ पहुँचा हूँ, क्या खाया है । इसी रीति से जिस्म को देखते हुए भी नहीं देखेंगे और अपने उस रूह को देखने में ही बिजी होंगे तो फिर ऐसी अवस्था हो जायेगी जो कोई भी आपसे पूछेंगे यह कैसी थी तो आपको मालूम नहीं पड़ेगा । ऐसी अवस्था होगी । लेकिन वह तब होगी जब जिस्मानी चीज़ को देखते हुए उस जिस्मानी लौकिक चीज़ को अलौकिक रूप में परिवर्तन करेंगे । अपने में परिवर्तन करने के लिए जो लौकिक चीज़ें देखते हो या लौकिक सम्बन्धियों को देखते हो उन सभी को परिवर्तन करना पड़ेगा । लौकिक में अलौकिकता की स्मृति रखेंगे । भल लौकिक सम्बन्धियों को देखते हो लेकिन यह समझो कि अब हमारी यह भी ब्रह्मा बाप के बच्चे पिछली बिरादरी है । ब्रह्मा वंश तो है ना । क्योंकि ब्रह्मा दी क्रियेटर है, तो भक्त, ज्ञानी व अज्ञानी हैं लेकिन बिरादरी तो वह भी हैं  ना । तो लौकिक सम्बन्धी भी ब्रह्मावंशी हैं लेकिन वह नजदीक सम्बन्ध के हैं, वह दूर के हैं । इसी रीति कोई भी लौकिक चीज़ देखते हो, दफ्तर में काम करते हो, बिजनेस करते हो, खाना खाते हो, देखते हो, बोलते हो लेकिन एक-एक लौकिक बात में अलौकिकता हो । इसी शरीर के कार्य के लिए चल रहे हो तो साथ-साथ समझो इन शारीरिक पाँव द्वारा लौकिक कार्य तरफ जा रहा हूँ लेकिन बुद्धि द्वारा अपने अलौकिक देश, कल्याण के कार्य के लिए जा रहा हूँ । पाँव यहाँ चल रहे हैं लेकिन बुद्धि याद की यात्रा में । शरीर को भोजन दे रहे हैं लेकिन आत्मा को फिर याद का भोजन देते जाओ । यह याद भी आत्मा का भोजन है । जिस समय शरीर को भोजन देते हो ऐसे ही शरीर के साथ में आत्मा को भी शक्ति का, याद का बल देना है ।

25-04-2023

तुम जानते हो हम सभी मेल अथवा फीमेल एक शिव परमात्मा की सजनियां आत्मायें हैं। साजन है एक परमात्मा। फिर जिस्म के हिसाब से हम शिवबाबा के पोत्रे और पोत्रियां हैं। हमारा उनकी प्रापर्टी पर पूरा हक लगता है। हम 21 जन्म के लिए सदा सुख की प्रापर्टी दादे से लेते हैं – यह हैं पेचदार बातें।

ओम् शान्ति। जिस्मानी यात्रा और रूहानी यात्रा पर यह गीत बनाया है भक्ति मार्ग वालों ने। जो पास्ट में हो गया है उसका गायन करते हैं। जो भी मनुष्य मात्र हैं उन सभी को जिस्मानी यात्रा का तो पता है। देखते हैं जन्म-जन्मान्तर से चक्र लगाते आये हैं। उन्हों की बुद्धि में बद्रीनाथ, श्रीनाथ … आदि ही याद रहता है। तुम बच्चों को भी यह जिस्मानी यात्रा आदि याद थी और अभी भी याद है। तुमने यात्रायें जन्म-जन्मान्तर की हैं। अब तुम बच्चों की बुद्धि में रूहानी यात्रा का ज्ञान है। मनुष्यों का बुद्धियोग है स्थूल जिस्मानी यात्रा तरफ। तुम्हारा बुद्धियोग है रूहानी यात्रा तरफ। रात-दिन का फ़र्क है। अभी तुम रूहानी यात्रा तरफ कदम बढ़ा रहे हो।

मेल अथवा फीमेल सभी सजनियां हैं। वैसे मेल्स को कोई सजनी थोड़ेही कहेंगे। परन्तु यह है बहुत गुह्य पेचदार बातें। तुम अपने को शिवबाबा के पोत्रे समझते हो – जबकि जिस्म में हो तो इस हिसाब से पोत्रे पोत्रियां ही ठहरे।

यहाँ दादा भी मौजूद है। अवतार भी जरूर यहाँ ही लेगा ना। तुम कहेंगे यहाँ हमारा दादा हमको पढ़ाते हैं। वह परमधाम से आते हैं। वह हमारा दादा है रूहानी और सब जिस्मानी दादे होते हैं। तो दादा कहते खुशी में एकदम उछल पड़ना चाहिए।

आत्मा को मेहनत करनी पड़ती है। रोटी पकाना, धन्धा आदि करना.. यह सब आत्मा करती है। अब बाबा आत्माओं को इस रूहानी धन्धे में लगाते हैं। साथ-साथ जिस्मानी धन्धा भी करना है। बाल बच्चों को सम्भालना है। ऐसे नहीं बाबा हम आपके हैं, यह बच्चे आदि आपको सम्भालना होगा। सबको बाबा सम्भाले, तो इतना बड़ा मकान भी न मिल सके।

18-05-2018

मीठे बच्चे – कभी जिस्म (साकार शरीर) को याद नहीं करना है, ऑखों से भल इन्हें देखते हो परन्तु याद सुप्रीम टीचर शिवबाबा को करना है”

22-07-2018

जैसे वाणी में आने का अभ्यास हो गया है, वैसे रूहानियत का अभ्यास बढ़ाओ तो वाणी में आने का दिल नहीं होगा।जो सम्पूर्ण समर्पण हो जाता है उसकी वृत्ति-दृष्टि शुद्ध हो जाती है, उसमें रूहानियत की शक्ति आ जाती है। वे जिस्म को नहीं देखते हैं। पहले दृष्टि देखती है तब वृत्ति जाती है। रूहानी दृष्टि अर्थात् अपने को वा दूसरों को भी रूह देखना। जिस्म तरफ देखते हुए भी नहीं देखना, अब ऐसी प्रैक्टिस होनी चाहिए। समय प्रमाण अब हर एक नई रौनक देखना चाहते हैं इसलिए हर कर्म में, हर संकल्प में, वाणी में रूहानियत की शक्ति धारण करो लेकिन रूहानियत सदा कायम तब रहेगी जब स्वयं को और दूसरों को, जिनकी सर्विस के लिये निमित्त हो, उन्हें बापदादा की अमानत समझ कर चलेंगे।

About Me - BK Ravi Kumar

I am an MCA, IT Professional & Blogger, Spiritualist, A Brahma Kumar at Brahmakumaris. I have been blogging here.