Spiritual Significance Of Sri Ganesh Chaturthi
We can learn lot of things from the Lord Ganesha, I have learnt many things watching this video. I am sharing with you.
श्री गणेश जी से शिक्षाएं
Koi bhi acha kam karte hai toh kahte, sri ganesh karo?
Big head ka kiska pratik hain?
Bade bade kaan kiska pratik?
Ek dant dayawant... Ek dant wo bhi tuta hua, kiska pratik?
Buddhi ke devta, raham dil, vighan vinashak, dukh harta, sukh karta
Kya sirf mahima karna kaphi hai ki hame bhi aisa banna hai?
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श्री गणेश से शिक्षाएं: BK Shivani (Subtitles English) | Ganesh Chaturthi
Lord Ganesha
कोई कहता कष्ट निवारक, कोई कहता विघ्न विनाशक।
कोई कहता सिद्धि विनायक, कोई कहता सर्व फलदायक।।
वास्तव में ये सारी विशेषताएँ लिए हुए, सर्व के विघ्नहर्ता गणेश, शिव पुत्र गणेश का उत्सव हम आत्माओं का ही यादगार है।
शिवपुत्र गणेश के एक एक अंग की रचना, एक एक विशेषताओँ को दर्शाता है....जैसे - छोटी अाँखे अर्थात छोटों में भी बड़ाई देखना, विशेषता देखना; लम्बोदर समाने की क्षमता; एकदन्त बुराइयों को मिटाना और अच्छाईयों को धारण करना; बड़े कान ज्ञान श्रवण कर उसे ग्रहण करना; सूंड... जिस प्रकार हाथी अपनी सूंड से विशाल वृक्ष को सरलता से उखाड़ देता है ठीक उसी प्रकार हमें अपने पुराने स्वभाव-संस्कार को अंश व वंश सहित खत्म करना है.....
बाबा हम बच्चों को विघ्न विनाशक गणेश के रूप में ही देखते हैं, बार-बार हमें इस स्वमान में स्थित करते हैं तो गणेश चतुर्थी के इस शुभ पर्व पर हम सभी विघ्न विनाशक की हर एक विशेषता को स्वंय में धारण करने का दृढ़ संकल्प करें और न ही केवल स्वयं को बल्कि सारे विश्व को निर्विघ्न बनाने का सफल पुरुषार्थ करें।
अाप सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाईयाँ और शुभ-कामनाएं!!!.......
गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक” (पार्ट:- 1)*
➳ पौराणिक कथा...... शिवपुराण में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया।
➳ इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका, बाद में भगवान शंकर जी ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।
➳ शिवजी के निर्देश पर विष्णु जी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया।
➳ भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर! तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।
➳ इस कथा को केवल सीधा सीधा पढ़ने या सुनने मात्र से गणेश चतुर्थी का वास्तविक महत्व सपष्ट नहीं होता क्योंकि इसे सुनने पर मन पटल पर बहुत से प्रश्न उठने लगते हैं...
➳ जैसे शिव और पार्वती जी दिव्य व्यक्तित्व को दर्शाते हैं यानि वे सब विकारों से ऊपराम होने चाहिए फिर वह इतने क्रोधित कैसे हो सकते हैं कि शिव एक बालक का शीश काट दें और पार्वती जी पुत्र मोह में सारी सृष्टि के विनाश करने पर उतारू हो जाएं? फिर उन्हें शांत करने के लिए विष्णु जी एक निर्दोष जानवर का शीश काट कर ले आएँ ?
➳ ऐसे हिंसक कर्म करने के लिए तो एक साधारण मनुष्य भी सौ बार सोचेगा और तो क्या शिव, पार्वती व विष्णु जैसे श्रेष्ठ दिव्य व्यक्तित्व पर ऐसे कार्य शोभायमान हैं? इसके अतिरिक्त किसी जानवार का शीश मनुष्य (वह भी छोटे से बालक पर) के धढ़ पर कैसे लग सकता है? इस तथ्य की वैग्यानिक पुष्टि हो सकती है? साथ ही गणेश जी के चित्र में दिखाए गए विभिन्न अलंकार देखने पर बहुत अट्पटे से अनुभव होते हैं जैसे इतने बड़े शरीर के साथ छोटे से चूहे की स्वारी करना आदि आदि! यानि गणेश जी के चित्र को देखने व पूजने मात्र से इस महान पर्व की वास्तविकता समझ नहीं आ सकती लेकिन विवेक और भक्ति भाव के समिश्रण से गणेश जी की कथा व व्रत का वास्तविक अर्थ समझा जा सकता है और गणेश चतुर्थी जैसे महान पर्व को सार्थक रूप में मनाया जा सकता है अतः आइए समझते हैं गणेश चतुर्थी का अध्यात्मिक अर्थ....
➳ कथा में दर्शाए गए शिव व पार्वती जी को देह के रूप में न देखकर अत्मिक रूप में देखें! यहां शिव निराकार ज्योति स्वरूप परमात्मा हैं और पार्वती वास्तव में मनुष्य आत्मा को कहा गया है!
➳ मनुष्य आत्मा जब संसार के भोग विलास में स्नान करती है यानि उसमें डूबी होती है तो उसका अहम, देहभान (ego) उसके और ईश्वर (परमात्मा) के बीच में द्वारपाल का कार्य करता है यानि संसार के खेल में मग्न मनुष्य आत्मा स्वयं व ईश्वर की वास्तविकता भूल जाती है क्योंकि वह स्वयं को देह व देह से जुड़े हुए अलंकारों से ही पहचानती है! वह न तो अपना वास्तविक परिचय जानती है और न ही ईश्वर का! ईश्वर है भी या नहीं, इसके बारे में सोचना भी उसे मिथ्या अनुभव होता है लेकिन जब इस सृष्टि चक्र का अंत का समय आता है तो निराकार ज्योति बिन्दु शिव स्वयं धरती पर अवतरित होते हैं!
➳ मनुष्य आत्मा उन्हें पहचान सके इसलिए वे सबसे पहले अपनी आत्मा रूपी पार्वती के अहम ( देह भान) का गला काटते हैं यानि उसे स्वयं को आत्मा निश्चय करवाते हैं और उसे दिव्य बुद्धि व विवेक का शीश प्रदान करते हैं, ( पशु्यों में हाथी को सबसे बुद्धिमान पशु माना जाता है इसीलिए गणेश जी में हाथी का शीश दिखाया जाता है) गणेश जी के चित्र में विभिन्न अलंकार भी बहुत गहरा अध्यात्मिक रहस्य समेटे हुए हैं जैसे !
“गणेश चतुर्थी का आध्यात्मिक” (पार्ट:- 2)
➳ हाथी के बड़े बड़े कान, सांसारिक मोह माया के शोर में भी सत्य ज्ञान को ध्यानपूर्वक सुनने व ग्रहण करने का प्रतीक हैं क्योंकि हर मूल्यवान कथन को कान खोल कर सुनना व ग्रहण करना पड़ता है अलबेला्पन उस सत्य को ग्रहण नहीं करने देता अतः बड़े बड़े कान सत्य ज्ञान को एकाग्रचित हो कर सुनने के प्रतीक हैं!
➳ छोटी छोटी आँखे दूरदर्शी होने व भविष्य को भांप लेने का प्रतीक हैं, साथ ही प्रभु के सुंदर ज्योति स्वरूप पर मन बुद्धि को एकाग्र करने का प्रतीक भी हैं।
➳ बड़ा सिर हर कर्म में बुद्धि ( विवेक ) के अधिक से अधिक प्रयोग को दर्शाता है!
➳ हाथी की लंबी नाक ऊंचा पद, मान, प्रतिष्ठा का प्रतीक है और जैसे हाथी अपनी सूंड से बड़े बड़े पेड़ बड़ी ही सहजता से उखाड़ फेंकता है वैसे ही यदि हम भी संसार में वास्तविक इज्ज़त व मान पाना चाहते हैं हम भी बड़े बड़े कार्य करें लेकिन प्रेम व सहजता से!
➳ सत्य की राह पर कठिनाईयों का सामना तो करना ही पड़ता है तो गणेश जी का बड़ा पेट समाने की शक्ति का प्रतीक है यानि यदि हम वास्तव में अपना व संसार का कल्याण चाहते हैं तो किसी तरह की बड़ी से बड़ी ग्लानि व निंदा के प्रति क्रोध व्यक्त न करें बल्कि उसे समाते जाएं और सत्य की राह पर अडिग रहें!
➳ गणेश जी के हाथ में कमल या गणेश जी का स्वंय कमल पर असीन होना पतित दुनियाँ में भी पवित्रता को बनाए रखने का प्रतीक है जैसे कमल कीचड़ में खिल कर भी कीचड़ से उपराम रहता है!
➳ गणेश जी के हाथ में कुल्हाड़ी विकारों व अवगुणों पर प्रहार करने का प्रतीक है।
➳ गणेश जी के हाथ में पुस्तक, सत्य ज्ञान का बोध व निरंतर उसी का मनन चिंतन करने का प्रतीक है!
➳ इतने भारी भरकम शरीर वाले गणेश जी क्या एक छोटे से चूहे को अपने वाहन के रूप में प्रयोग कर सकते हैं? नहीं...चूहा सांसारिक गन्दगी व चंचलता का प्रतीक है और गणेश जी की उस पर स्वारी यह दर्शाती है कि सांसारिक वृति व विकार सदा गणेश जैसी गुणवान व विवेकशील आत्मा के अधीन रहते हैं।
➳ गणेश स्वरूप गुणवान आत्मा हर मुश्किल को हल करने का सामर्थ्य रखती है अतः वह विघ्नविनाशक कहलाती है और सदा विजय का मीठा फल खाती है जिसका प्रतीक है गणेश जी को लड्डूयों का भोग लगाना!
➳ हर कार्य से पहले यदि मनुष्य आत्मा इन सब गुणों व शक्तियों का अहवान करे तो उसका हर कार्य शुभ व शत प्रतिशत सफल होगा तभी हर कार्य को शुरु करने से पहले गणेश पूजा की रीत है अतः गणेश चतुर्थी के इस पावन पर्व पर व्रत करें, पूजा अर्चना करें, खुशियां मनाएं लेकिन वास्तविकता को मन में समाए रखें ताकि आप स्वयं भी गणेश जी की तरह गुणों व शक्तियों से भरपूर बन अपने जीवन से हर प्रकार के विघ्नों को हटा कर सदा सफलता का मीठा फल खाते रहें!